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साहित्यकार एवं लेखक संतराम देशवाल को राष्ट्रपति ने दिया पद्मश्री पुरस्कार

सोनीपत, 27 मई (हप्र)साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देशवाल ने मंगलवार शाम को नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म के हाथों पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण किया। यह पुरस्कार उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में...
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नयी दिल्ली में मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म के हाथों पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करते साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देसवाल। -हप्र
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सोनीपत, 27 मई (हप्र)साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देशवाल ने मंगलवार शाम को नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म के हाथों पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण किया। यह पुरस्कार उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर दिया गया है। उन्होंने उप राष्ट्रपति प्रधानमंत्री, कई केंद्रीय मंत्रियों की गौरवशाली मौजूदगी के बीच यह पुरस्कार ग्रहण किया। खास बात यह है कि इस दौरान उनकी धर्मपत्नी, बेटा व पुत्रवधू समेत परिवार के कई सदस्य भी मौजूद रहे।

बता दें कि 25 जनवरी को केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई थी। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए सोनीपत निवासी साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देशवाल को पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामित किया गया था।

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मंगलवार शाम को राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित कार्यक्रम में जब डॉ. संतराम देशवाल के नाम की घोषणा हुई तो हाल तालियां से गूंज उठा। कारण अभी तक हरियाणावासी खेल, कृषि आदि क्षेत्रों में यह पुरस्कार पाते रहे हैं मगर यह पहला अवसर था जब प्रदेश के किसी साहित्यकार एवं लेखक को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। पुरस्कार पाते समय न केवल डॉ. संतराम देशवाल बल्कि उनके परिवार के सदस्य भी भावुक हो गए।

बेटे ने बिना बताए पद्मश्री के लिए किया था आवेदन

गुरुग्राम पावर ग्रिड में उपमहाप्रंबधक के पद पर कार्यरत डॉ. संतराम देशवाल के बेटे ने अपनी पत्नी (विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार) के साथ मिलकर अपने पिता की ओर से पद्मश्री के लिए आवेदन किया था। 25 जनवरी को उनके नाम की घोषणा हुई तो उन्हें एकबारगी विश्वास ही नहीं हुआ। बाद में उनके बेटे से फोन कर उन्हें सारा किस्सा सुनाया तब जाकर विश्वास हुआ।

बचपन में उठा पिता का साया, शिक्षा के लिए करना पड़ा संघर्ष

झज्जर के गांव खेड़का गुज्जर में जन्मे डॉ. देसवाल ने 6 साल की उम्र में पिता को खो दिया। ऐसे में एक बार ऐसे हालात आ गए लगा कि अब स्कूल छोड़कर परिवार के साथ खेतीबाड़ी के काम में हाथ बटाना पड़ेगा। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और रोजाना 15 किलोमीटर का सफर कभी पैदल तो कभी साइकिल पर पूरा करते हुए स्कूल शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक डिग्री हासिल करते चले गये। हिंदी व अंग्रेजी में एमए, एलएलबी, एमफिल, पीएचडी, अनुवाद में डिप्लोमा और जर्मन भाषा में डिप्लोमा किया है।

प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. चंद्र त्रिखा को मानते हैं अपना आदर्श

डॉ. संतराम देशवाल बताते हैं कि मुझे वह दिन आज भी याद है जब साहित्यकार डॉ. चंद्र त्रिखा का फोन आया और उन्होंने मुझसे कहा कि आपसे एक किताब लिखवानी है। उन्हीं की हौसला अफजाई से ‘हरियाणा, संस्कृति और कला’ नाम की रचना तैयार हुई। उसके बाद से कविता, संस्मरण, यात्रा वृतांत और ललित निबंध लिखने का सिलसिला अनवरत जारी है।

30 से अधिक पुस्तकें लिखीं

सोनीपत के छोटूराम आर्य कॉलेज में 30 वर्ष से अधिक समय तक एसोसिएट प्रोफेसर रहे डॉ. देशवाल 30 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। उनकी धर्मपत्नी डॉ. राजकला देशवाल भी राजकीय कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर रही हैं। इससे पहले डॉ. देशवाल को महाकवि सूरदास आजीवन साधना सम्मान, लोक साहित्य शिरोमणि सम्मान और लोक कवि मेहर सिंह पुरस्कार समेत एक दर्जन से अधिक सम्मान मिल चुके हैं।

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