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मेवात में बूचड़खानों का विरोध ठंडा, दो नई एनओसी से बढ़ी चिंता; गांव-गांव बढ़ते कैंसर ने मचाई दहशत

मेवात में अवैध व प्रदूषण फैलाने वाले बूचड़खानों के खिलाफ महीनों तक चला जोरदार विरोध ठंडा पड़ गया है। विरोध के शांत होते ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो और बूचड़खानों को संचालन की एनओसी जारी कर दी है। सामाजिक...

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मेवात में अवैध व प्रदूषण फैलाने वाले बूचड़खानों के खिलाफ महीनों तक चला जोरदार विरोध ठंडा पड़ गया है। विरोध के शांत होते ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो और बूचड़खानों को संचालन की एनओसी जारी कर दी है। सामाजिक कार्यकर्ता हैदर अली की आरटीआई से सामने आए आंकड़ों के अनुसार अब जिले में कुल 10 बूचड़खाने सक्रिय हैं, जबकि 20 को स्थापना व संचालन की अनुमति मिल चुकी है।

नई एनओसी वाली इकाइयों में नूंह के वीर सिंह क्षेत्र में फ्रेगरेंस फूड लिमिटेड प्राइवेट लिमिटेड और मांडीखेड़ा की केरबो फूड प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन विरोध को शांत होने का मौका मानकर बूचड़खानों को एक-एक कर मंजूरी दे रहा है।उधर, बूचड़खानों के आसपास बसे गांवों में कैंसर के तेजी से बढ़ते मामलों ने डर और गुस्सा दोनों बढ़ा दिए हैं।

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ग्रामीणों का कहना है कि जहरीली गंदगी, बदबूदार पानी और वायु प्रदूषण गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। सटकपुरी बूचड़खाने से जुड़े एक पदाधिकारी का चालक लास्ट स्टेज कैंसर से जूझ रहा है। शिकरावा गांव का एक युवक भी कैंसर के अंतिम चरण तक पहुंच चुका है। मामलिका और फलेंडी गांव में भी कई ऐसे मामले हैं जहां युवा महंगी इलाज लागत के कारण घर पर अंतिम सांसें गिन रहे हैं।

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ग्रामीणों का आरोप है कि दर्जनों कैंसर रोगी होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग कोई स्पष्ट रिपोर्ट नहीं दे रहा। फलेंडी में पानी की जांच की गई थी, लेकिन रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई। डिप्टी सिविल सर्जन ने डीसी के साथ मीटिंग का हवाला देकर जवाब देने से बचा। जिला प्रदूषण अधिकारी आकांक्षा तवर का कहना है कि समय-समय पर जांच कर ही एनओसी दी जाती है।

ग्रामीणों का कहना है कि संघर्ष समिति, महापंचायतों और ज्ञापनों के बाद भी समाधान नहीं निकला। यदि ऐसे ही कैंसर के मामले बढ़ते रहे, तो आने वाले दिनों में मेवात में बड़ा आंदोलन खड़ा होना तय है।

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