वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा ऑनलाइन वैश्विकलघुकथा पर संगोष्ठी
कथा-परिवार की महत्त्वपूर्ण लघु विधा है लघुकथा। इसका विस्तार भारत और भारत से बाहर, पूरे विश्व में देखा जा सकता है। यह कहना है वरिष्ठ लघुकथाकार तथा सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) में हिंदी के प्रोफेसर एवं सांस्कृतिक संकाय के अधिष्ठाता डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का। विश्व हिंदी सचिवालय, मोका (माॅरिशस), केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (उत्तर प्रदेश), अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद, नयी दिल्ली, वातायन, लंदन (यूके) और भारतीय भाषा-संघ, एम्स्टर्डम (नीदरलैंड) के संयुक्त तत्त्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार, नयी दिल्ली द्वारा आयोजित वैश्विक ऑनलाइन लघुकथा-संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने कहा कि लघुकथा की धार पैनी और मारक क्षमता अचूक होती है, जो पाठक पर गहरा असर करती है। इसकी तुलना रोमांचकारी टी-20 क्रिकेट मैच से की जा सकती है। बर्मिंघम (यूके) की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शैल अग्रवाल ने, लघुकथा की तुलना फास्ट फूड से करते हुए, अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि इसे पढ़ते ही पाठक पर तुरंत प्रभाव होता है और उसमें नई ऊर्जा आ जाती है। इससे पूर्व विषय-प्रवर्तन करते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉ. अनिल जोशी ने लघुकथा के स्वरूप एवं महत्त्व को रेखांकित किया।
डॉ. वेंकटेश्वर राव द्वारा स्वागत के उपरांत डॉ. पूजा अनिल के कुशल संचालन में संपन्न हुई इस अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन प्रेरक संगोष्ठी में टोक्यो (जापान) की डॉ. रमा पूर्णिमा शर्मा ने ‘अनमोल सलाह’, कोलोन (जर्मनी) की डॉ. शिप्राशिल्पी सक्सेना ने ‘धनाढ्य’, आसन (नीदरलैंड) की डॉ. ऋतु शर्मा ने ‘आधुनिक गिरमिटिया’, मोका (माॅरिशस) की अंजू घरभरन ने ‘परम सुख’, वर्जीनिया (अमेरिका) की डॉ. आस्था नवल ने ‘बहूरानी’, टोरंटो (कनाडा) की डॉ. शैलजा सक्सेना ने ‘कीमत’, बर्मिंघम (यूके) की डॉ. शैल अग्रवाल ने ‘तड़प’, मैड्रिड (स्पेन) की डॉ. पूजा अनिल ने ‘पत्र’ और भारत से नयी दिल्ली के सुभाष नीरव ने ‘चिड़िया की दोस्ती’, फरीदाबाद की अनीता वर्मा ने ‘यही सत्य है’ तथा भुवनेश्वर की अर्पणा संतसिंह ने ‘बी पाॅजिटिव’ शीर्षक लघुकथा का पाठ किया। तत्पश्चात् पठित लघुकथाओं पर डॉ. शैलजा सक्सेना ने सारगर्भित तात्त्विक समीक्षा प्रस्तुत की। इस अवसर पर सुनीता पाहुजा (नोएडा), कांता राॅय (भोपाल) और डॉ. तोमियो मिजोकामी (ओसाका, जापान) ने भी अपने विचार प्रकट किये।
विश्व-भर के अनेक साहित्यकारों, साहित्यानुरागियों और हिंदी-प्रेमियों की उपस्थिति में डेढ़ घंटे तक चली यह संगोष्ठी डॉ. सुरेशकुमार मिश्र द्वारा धन्यवाद-ज्ञापन के साथ संपन्न हुई।