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नारनौल की धरोहरें फिर होंगी जीवंत

अरावली की गोद में सांस्कृतिक पुनर्जागरण
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‘गुज़रे हुए ज़माने की ख़ुशबू है इन हवाओं में, पत्थरों पे लिखी हुई दास्तानें बोलती हैं।’ अरावली की तलहटी में बसा नारनौल, जहां हर दीवार और हर गुम्बद में इतिहास सांस लेता है, अब अपनी खोई हुई पहचान वापस पाने जा रहा है। तालाब, बावड़ियां और गुम्बद, जो उपेक्षा की धूल में ढक गए थे, अब 14 करोड़ रुपये से अधिक की बहु-स्थापत्य जीर्णोद्धार योजना से न केवल फिर से रोशन होंगे बल्कि पर्यटकों के लिए नए आकर्षण भी बनेंगे। सरवर तालाब से लेकर बीरबल का छत्ता और ट्रिपोलिया द्वार तक यह पहल नारनौल को हरियाणा के पर्यटन नक्शे पर प्रमुख स्थान दिलाएगी। धरोहरों के जीर्णोद्धार में 9 से 15 माह का समय लगेगा। पर्यटन व संस्कृति मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा ‘सेवा पखवाड़ा’ कार्यक्रम के तहत 18 सितंबर को नारनौल पहुंचकर इस नई यात्रा की शुरुआत करेंगे। पुरातत्व विभाग की देखरेख में कार्य होंगे और केंद्र सरकार ने इस योजना को तुरंत मंजूरी दी है।

ऐतिहासिक धरोहरों में सबसे प्रमुख ‘बीरबल का छत्ता’ है। इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण शाहजहां काल (1628–1658 ई.) में दीवान राय बल्मुकुंद दास ने कराया था, लेकिन लोककथा ने इसे अकबर दरबार के नवरत्न बीरबल से जोड़ दिया। पांच मंजिला यह महल संगमरमर से सुसज्जित दीवान-ए-खास, भूमिगत कक्ष और फव्वारों के लिए प्रसिद्ध है। अब 2 करोड़ 56 लाख रुपये की लागत से संगमरमर की सफाई, दीवारों और स्तंभों की मरम्मत, भूमिगत फव्वारों को पुनः चालू करना और आगंतुक सुविधाएं जोड़ी जाएंगी। नारनौल की सभी धरोहरों को मिलाकर सरकार यहां एक बड़ा पर्यटन सर्किट विकसित करना चाहती है। ट्रिपोलिया द्वार, बावड़ियां, सरवर तालाब और मकबरे मिलकर ऐसा पैकेज देंगे जो शोध और पर्यटन दोनों के लिए उपयोगी होगा।

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तो आखिर में कह सकते हैं-‘गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।’

फिर से चमकेगा ट्रिपोलिया द्वार

यह तीन मंजिला द्वार शाह कुली खां ने अकबर के समय बाग़ "अराम-ए-कौसर’ के लिए बनवाया था। 16वीं सदी का यह द्वार मुगलकाल की शान और स्थापत्य को प्रदर्शित करता है। मजबूत मलबे की चिनाई, मोटे चूने की पलस्तर, नक्काशीदार अंदरूनी दीवारें और शिलालेख जो बाग़ का नाम व निर्माता दर्शाते हैं। केंद्र ने इसकी मरम्मत के लिए 3 करोड़ 68 लाख 47 हजार रुपये का बजट मंजूर किया है। का शुरू हो चुका है। दीवारों और छतों की मरम्मत होगी। पलस्तर और नक्काशी को संरक्षित किया जाएगा। परिसर के प्रकाश व स्वच्छता प्रबंध होंगे।

मिर्जा अलीजान की बावड़ी

मिर्जा अलीजान की बावड़ी अकबर काल (1556–1605) में नवाब अलीजान ने बनवाई थी। जल भंडारण और यात्रियों के ठहराव हेतु बनी यह तीन मंज़िली बावड़ी मेहराबदार प्रवेशद्वार, छतरी, अष्टकोणीय कुआं (19.7 मीटर गहराई) और सीढ़ियों से युक्त है। इसके जीर्णोद्धार पर 5 करोड़ 35 लाख रुपये खर्च होंगे।

फिर जी उठेगा सरवर तालाब

नारनौल का सरवर तालाब मुग़लकाल में जलापूर्ति हेतु बना विशाल जलाशय है, जिसमें हिंदू स्थापत्य के प्रभाव दिखते हैं। सीढ़ीनुमा मार्ग, छतरियां और सजावटी तत्व इसकी पहचान हैं। 1929 में स्नान कक्ष जोड़ा गया। अब 7 करोड़ 43 लाख रुपये से इसका जीर्णोद्धार व पर्यटक सुविधाओं का विकास होगा।

कैबिनेट मंत्री अरविंद शर्मा।

नारनौल की धरोहरें केवल ईंट-पत्थर नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की जड़ें हैं। इनका संरक्षण आने वाली पीढ़ियों को अपनी पहचान से जोड़ने का काम करेगा। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर इन्हें विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा लक्ष्य है कि नारनौल आने वाला हर पर्यटक न सिर्फ इतिहास को देखे बल्कि उसे महसूस भी करे।   

-डॉ. अरविंद शर्मा, संस्कृति एवं 

विरासत मंत्री चोर गुम्बद

चोर गुम्बद, अफ़ग़ान सरदार जमाल ख़ान का मक़बरा, तुग़लक काल (1351–1388) की शैली दर्शाता है। चौकोर संरचना, नुकीली मेहराबें, मीनारें और बरामदा इसकी पहचान हैं। लोककथा अनुसार यह चोरों का ठिकाना भी रहा। सवा एक करोड़ रुपये से दरार मरम्मत, गुम्बद सुदृढ़ीकरण, बरामदा बहाली व पार्क संवर्द्धन होगा।

मकबरा–मस्जिद परिसर

यह परिसर तुगलक, पठान, मुगल और ब्रिटिश काल की वास्तुशिल्प शैलियों का अनोखा मिश्रण है। इसमें तुगलक की सादगी व मजबूती, पठान शैली के गुंबद, मुगल सजावट और ब्रिटिश बरामदे स्पष्ट झलकते हैं। शिलालेखों में 1137 ई. का उल्लेख इसकी ऐतिहासिक गहराई को दर्शाता है। अब 3 करोड़ 34 लाख 72 हजार रुपये की लागत से दीवारों का सुदृढ़ीकरण, दरारों की मरम्मत, पेंटिंग और सजावट की बहाली होगी। परिसर की सफाई और सुविधाओं का विकास भी किया जाएगा।

और नाम पड़ा बीरबल का छत्ता’

यह महल शाहजहां काल (1628–1658) में दीवान राय बालमुकुंद दास द्वारा बनवाया गया माना जाता है, पर लोककथा इसे बीरबल से जोड़ती है। पांच मंजिला ‘बीरबल का छत्ता’ संगमरमर सुसज्जित दीवान-ए-खास, भूमिगत कक्ष और फव्वारों से विशिष्ट है। शाहजहांकालीन भव्यता झलकाते स्तंभ व सजावट अब 2 करोड़ 56 लाख रुपये से बहाल होंगे।

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