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मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी तकनीक की मदद से बचायी स्ट्रोक पीड़ित 72 वर्षीय मरीज़ की जान

मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स की नयी टक्नोलॉजी

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फरीदाबाद के मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में ठीक होने के बाद मरीज सत्यवीर सिंह और साथ में हैं न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोग्राम क्लीनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. कुणाल बहरानी। -हप्र
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फरीदाबाद, 5 फरवरी (हप्र)

ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसी गंभीर समस्या है जो अकसर समय पर सही इलाज न मिलने पर मरीजों के लिए विकलांगता का कारण बनती है। यहां तक कि कई बार मरीज की जान भी जा सकती है। लेकिन अब एडवांस्ड तकनीकों की मदद से स्ट्रोक जैसी गंभीर स्थिति का प्रभावी ढंग से इलाज संभव है। हाल ही में मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद में न्यूरोलॉजी टीम के डॉक्टरों ने स्ट्रोक पीड़ित फरीदाबाद निवासी 72 वर्षीय सत्यवीर सिंह के दिमाग की मुख्य धमनियों से क्लॉट (खून का थक्का) निकाल उसे नया जीवन दिया। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फरीदाबाद में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. कुणाल बहरानी ने बताया कि जब यह मरीज हमारे पास आया तो उसके दाहिने तरफ के हाथ और पांव काम नहीं कर रहे थे और मरीज बोल भी नहीं पा रहा था। मरीज की हालत को देखते हुए हॉस्पिटल में तुरंत कोड फास्ट को एक्टिवेट किया गया। एमआरआई करने पर पता चला कि ब्रेन में एक तरफ क्लॉट बना है। मरीज को बड़ा स्ट्रोक हुआ था तो तुरंत क्लॉट को पिघलाने के लिए तुरंत दवाई दी गई। खून की नलियों का विश्लेषण किया तो एक आर्टरी जिसे एमसीए आर्टरी कहते हैं, बाएं साइड की मुख्य आर्टरी बंद पड़ी थी। इसे मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी तकनीक के जरिए तुरंत ही खोलने का निर्णय लिया गया क्योंकि आईवी थ्रोम्बोलिसिस (खून के थक्के को पिघलाने के लिये, दवा का इंजेक्शन देना) से यह नली पूरी तरह खुल नहीं पाती है। फिर तार के जरिए दिमाग की नली तक पहुंच कर क्लॉट को खींचकर बाहर निकाल दिया। उसके बाद पूरी तरह से बंद पड़ी नली खुल गई और खून का फ्लो फिर से शुरू हो गया। ठीक उसी वक्त मरीज के हाथ-पैरों ने थोड़ा-थोड़ा काम करना शुरू कर दिया। अगले 48 से 72 घंटों के अंदर मरीज के हाथ-पैर सामान्य रूप से कार्य करने लगे। डिस्चार्ज होने पर मरीज हॉस्पिटल से खुद चलकर गया। उनकी आवाज भी पूरी तरह से ठीक हो गई। अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है।

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