श्रावण शिवरात्रि पर श्री सिद्धदाता आश्रम एवं श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम में हजारों भक्तों की उपस्थिति में अधिपति जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य महाराज ने महादेव शंकर का सविधि अभिषेक किया और भक्तों को शिव चरित्र के बारे में बताया। उन्होंने भक्तों को बताया कि समुद्र मंथन के समय अनेक अमूल्य एवं अनोखी वस्तुएं निकलीं। इनमें कालकूट नामक विष भी निकला। इस विष के निकलने से संसार में त्राहि-त्राहि मच गई और जीव जगत में भय व्याप्त हो गया। तब सभी देवताओं की पुकार पर महादेव शंकर ने इस विष का पान करने का निश्चय किया, परंतु अपने हृदय में विराजे भगवान के प्रति अपनी भावनाओं को देखते हुए विष को गले में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। तब देवताओं ने गंगाजल से उनका अभिषेक किया, इसके बाद ही विष की गर्मी शांत हुई। इसके बाद महादेव का नाम नीलकंठ पड़ गया। तभी से श्रावण शिवरात्रि पर भगवान शिव को गंगाजल से अभिषेक करने की परंपरा प्रारंभ हुई। स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य महाराज ने कहा कि हर देवता को कुछ विशेष वस्तु अथवा विधि प्रिय होती है। ऐसे ही भगवान शंकर को गंगाजल बहुत प्रिय है। जो भी भक्त उन्हें गंगाजल से स्नान करते हैं, भगवान शंकर उनकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण करते हैं। स्वामी ने सभी कांवड़ियों को कठोर तप कर गंगाजल लाकर भगवान का अभिषेक करने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि हम सभी को भगवान के चरित्र से सीखना चाहिए कि किस प्रकार जब जीव जगत पर संकट पड़ा तो भगवान ने जहर को भी धारण कर लिया।
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