1 लाख की ईनामी कुश्ती में ईरान के इरफान को दिल्ली के कलवा ने हराया
महाभारतकालीन महत्व के क्षेत्र सफीदों के हटकेश्वर तीर्थ परिसर में रविवार को श्रावण मास के पारंपरिक 2 दिवसीय वार्षिक मेले का आयोजन किया गया। इस मौके पर कुश्ती प्रतियोगिता में दिल्ली के गुरु हनुमान अखाड़ा के कलवा गुर्जर ने ईरान से आए पहलवान इरफान ईरानी को अंतिम मुकाबले में हराकर 1.01 लाख रुपये का पुरस्कार जीता। 22 वर्षीय कलवा गुर्जर रेल विभाग में टिकट चेकर हैं और वह गुरु हनुमान अखाड़ा में अभ्यास करते हैं। उधर, 30 वर्षीय ईरान निवासी इरफान जो दूसरे देशों में अनुबंध पर कुश्ती लड़ने जाता है। प्रबंधकों से मिली जानकारी के अनुसार आजकल वह भारत में कुश्ती मुकाबले कर रहा है। चंडीगढ़ में ठहरे इरफान को इस दंगल के लिए बुलाया गया था, जहां वह मात खा गया। आयोजकों में बिल्लू बूरा, बलबीर सिंह आदि ने मुख्यातिथि राजिंदर बूरा के साथ मिलकर विजेता पहलवान कलवा गुर्जर को सम्मानित कर पुरस्कार राशि सौंपी। तीर्थ प्रबंधक समिति के अध्यक्ष बिल्लू बूरा ने बताया कि रविवार को ईनामी कुश्ती का आयोजन शिव मंदिर कमेटी ने किया जबकि शनिवार शाम हरियाणवी रागनियों का इंतजाम ग्राम पंचायत द्वारा व प्रसाद की व्यवस्था तीर्थ कमेटी द्वारा की गई।
ये है इतिहास... वृत्रा दानव को मारने के लिए महर्षि दधीचि ने किया था खुद का बलिदान
सफीदों के गांव हाट के हटकेश्वर तीर्थ का इतिहास वृत्रा दानव को मारने के लिए खुद का बलिदान करने वाले महर्षि दधीचि से जुड़ा है। सफीदों में 12 हजार की आबादी के गांव हाट का यह तीर्थ कुरुक्षेत्र की 68 कोस की परिधि में है औऱ इस तीर्थ में भगवान शिव व महर्षि दधीचि के दर्शन और सरोवर में स्नान करने से कुरुक्षेत्र के सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त होता है। सैंकड़ों वर्षों की परंपरा के अनुसार श्रावण मास के अंतिम शनिवार व रविवार को दोनों दिन कुश्ती व हरियाणवी रागनियों का आयोजन प्रबंधकों द्वारा किया जाता है। पुराणों में वर्णित इतिहास के साथ इस तीर्थ को लेकर यह मान्यता है कि ब्रह्मविद्या से किसी को भी अमर करने की शक्ति के धनी, भगवान शिव के परमभक्त महर्षि दधीचि ने शांति की स्थापना के लिय वृत्रा दानव का वध कराने के लिए अपनी हड्डियों का बलिदान दिया जिनसे तैयार बेहद शक्तिशाली वज्र से वृत्रा को मार शांति कायम की गई। महर्षि दधीचि ने वृत्रा राक्षस को मारने के लिए अपनी हड्डियों का दान इसी जगह दिया था औऱ इस महादान से पहले इसी परिसर में उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी।