यहां परिंदों के सपने फिर पंख फैलाते हैं
हरीश भारद्वाज/हप्र
रोहतक, 7 जुलाई
शहरों की भीड़भाड़, पक्के मकान और लगातार कटते पेड़... इंसानों की तरक्की की रफ्तार ने जहां ऊंची इमारतें खड़ी कीं, वहीं पक्षियों के आशियानों को जमींदोज कर दिया। लेकिन हर अंधेरे में कहीं न कहीं एक दीप जलता है... और महम में यह रोशनी बनकर उभरे हैं दो टावर, जिन्हें ‘पक्षी घर’ कहा जाता है।
65 फीट ऊंचे ये दो टावर अब उन परिंदों की उम्मीद बन चुके हैं, जिन्हें शहर ने आसमान तो दिया, मगर जमीन छीन ली थी। कुल 1568 घोंसलों के साथ, ये टावर न सिर्फ तकनीक और संवेदनशीलता का अनूठा मेल हैं, बल्कि इस बात का प्रमाण भी हैं कि अगर इरादे नेक हों तो परिंदों की चहचहाहट फिर लौट सकती है।
पहला टावर फरमाणा चुंगी से खेड़ी रोड पर, लाला हनुमंत राम व रामेश्वर दयाल की बगीची में खड़ा हुआ है। इसे ब्रह्म प्रकाश पुत्र रत्न लाल ने खड़ा किया। दूसरा टावर, खेड़ी गांव के पास गोहाना रोड पर स्थित दादी सती मंदिर के पास मुक्तिधाम में बना है, जिसे अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्य टोनी गोयल ने ‘पक्षी घर’ नाम देकर नयी पहचान दी है।
इन टावरों में प्रत्येक में 784 ओ-छोटे घोंसले बनाए गए हैं, जिन्हें इस तरह डिजाइन किया गया है कि पक्षी न केवल आराम से बैठ सकें, बल्कि सुरक्षित रूप से अंडे भी दे सकें। इसके अलावा, उनके लिए पीने के पानी की भी समुचित व्यवस्था की गई है।
क्यों जरूरी था यह कदम?
अग्रवाल सभा के प्रधान ललित गोयल और सचिव कैलाश गोयल के अनुसार, 'पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और पक्के मकानों ने पक्षियों के पारंपरिक आवास छीन लिए हैं। पहले गोरैया (चिड़िया) हर आंगन में दिखती थी, अब उसकी चहचहाहट केवल याद बन गई है। इसलिए यह टावर सिर्फ ईंट-पत्थर की संरचना नहीं है। ये पक्षियों के लिए उम्मीद, समाज के लिए चेतावनी और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक है कि हम इस धरती पर अकेले नहीं हैं।'
टोनी गोयल कहते हैं, 'हर शहर, हर मोहल्ला अगर ऐसा एक टावर भी बना दे, तो न जाने कितने परिंदों को नया आसमान मिलेगा।' एक टावर की लागत भले ही छह लाख रुपये हो, लेकिन इसके मायने अनमोल हैं। इन टावरों की ऊंचाई से ऊंचा है इनका उद्देश्य और वो है, प्रकृति के साथ समरसता की ओर लौटना। यह पहल सिर्फ परिंदों की वापसी नहीं, बल्कि इंसानियत की भी वापसी है।