बीमार विदेशी महिला को अमृता अस्पताल की टीम ने दी नई जिंदगी
अमृता अस्पताल की टीम द्वारा फेफड़ों के कैंसर के कारण मौत के करीब पहुंची कजाखिस्तान की 42 साल की महिला को नयी जिंदगी दी।
उसके गले की सांस की नली (ट्रेकिआ) का निचला हिस्सा ट्यूमर से पूरी तरह बंद हो चुका था। वे वेंटिलेटर पर थीं और खुद सांस नहीं ले पा रही थीं। दिल्ली के एक अस्पताल में कई दिनों तक इलाज की कोशिशें नाकाम रहीं। सर्जरी बेहद जोखिम भरी थी और वेंटिलेटर पर रहते हुए कैंसर का इलाज संभव नहीं था। ऐसे में उन्हें अमृता अस्पताल फरीदाबाद रेफर किया गया, जहां एक विशेष टीम डॉ. अर्जुन खन्ना, डॉ. सौरभ पाहुजा और डॉ. प्रदीप बाजद ने केस अपने हाथ में लिया। मरीज की सांस की नली लगभग पूरी तरह बंद थी और वह एक हफ्ते से वेंटिलेटर पर थीं। डाॅक्टरों ने बताया कि ब्रॉन्कोस्कोप से ट्यूमर का हिस्सा हटाकर नली में स्टेंट डालने का निर्णय लिया। डॉ. सौरभ पाहुजा ने सारी प्रक्रिया का नेतृत्व किया। उन्नत तकनीक से हुई इस प्रक्रिया के बाद नली तुरंत खुल गई थी। अगले दिन ही मरीज वेंटिलेटर से मुक्त होकर खुद सांस लेने लगीं और तीसरे दिन घर जाने के लिए तैयार हो गई थीं। यह हस्तक्षेप न सिर्फ जान बचाने वाला साबित हुआ, बल्कि मरीज फिर से कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसे इलाज के लिए भी सक्षम हो गईं। बिना इस प्रक्रिया के उनकी जान पर गंभीर खतरा
बना रहता। डाॅ. पाहूजा ने कहा कि ऐसे मामलों में हर पल कीमती होता है। इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी ऐसे मरीजों के लिए आखिरी उम्मीद हो सकती है। भावुक मरीज ने कहा कि मैं इलाज की उम्मीद में भारत आई थी, लेकिन वेंटिलेटर पर पहुंच गई थी। आज मैं चल रही हूं, सांस ले रही हूं और जिंदा घर लौट रही हूं। यह मेरे लिए नया जीवन है।