अल-फ्लाह यूनिवर्सिटी की जमीन की पैमाइश रिपोर्ट तैयार, जांच अगले चरण में
तीन राज्यों की पुलिस व केंद्रीय एजेंसियों की मौजूदगी से परिसर में बढ़ी संवेदनशीलता
आतंकी हमले के बाद सवालों के घेरे में आई अल-फ्लाह यूनिवर्सिटी की जमीन संबंधी जांच अहम चरण में पहुंच गई है। राजस्व विभाग द्वारा की गई पैमाइश की रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है। अधिकारियों के अनुसार जांच का मुख्य बिंदु यह है कि विश्वविद्यालय ने जिस कीला नंबर में निर्माण की मंजूरी प्राप्त की थी, क्या भवन वास्तव में उसी भूमि पर बना है या नहीं।
राजस्व विभाग ने मसावी, जमाबंदी, सीमांकन और स्वीकृत बिल्डिंग प्लान का मिलान करते हुए विस्तृत जानकारी रिपोर्ट में दर्ज की है। बताया जा रहा है कि यूनिवर्सिटी का भवन लगभग 20 एकड़ भूमि पर निर्मित है और उसका बिल्डिंग प्लान भी जांच टीम के अध्ययन में शामिल रहा। प्रशासन अब इस रिपोर्ट की तकनीकी जांच करेगा, जिसके बाद आगे की कार्रवाई तय होगी।
इस बीच यूनिवर्सिटी परिसर तथा उससे जुड़े संस्थानों पर तीन राज्यों हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता के कारण माहौल अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है।
ट्रस्ट के दफ्तर पर पुलिस कर चुकी है छापेमारी
इसी बीच जांच की रफ्तार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि फरीदाबाद के बाद दिल्ली के जामिया नगर स्थित अल-फ्लाह चैरिटेबल ट्रस्ट के कार्यालय पर भी हरियाणा पुलिस की तीन सदस्यीय टीम ने गुरुवार सुबह अचानक छापेमारी की। करीब डेढ़ घंटे की पूछताछ में पुलिस टीम ने ट्रस्ट के पदाधिकारियों से कई सवाल किए और महत्वपूर्ण दस्तावेज अपने साथ ले गई। एक दिन पहले भी यूनिवर्सिटी की जमीन संबंधी कई दस्तावेज ईमेल के माध्यम से मांगे गए थे।
अल-फ्लाह यूनिवर्सिटी व ट्रस्ट के पुराने मामले सामने आए
पुलिस सूत्रों के अनुसार अल-फ्लाह यूनिवर्सिटी और ट्रस्ट से जुड़े पुराने मामले भी जांच में सामने आए हैं। बताया गया कि यूनिवर्सिटी के चांसलर और ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी जवाद अहमद सिद्दीकी पर लगभग 25 वर्ष पूर्व वित्तीय धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था। आरोप था कि उन्होंने अल-फ्लाह इन्वेस्टमेंट कंपनी में निवेशकों के लगभग 7.5 करोड़ रुपये जाली शेयर सर्टिफिकेट बनवाकर निजी खातों में ट्रांसफर किए।
वर्ष 2001 में उनकी गिरफ्तारी हुई थी और 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फॉरेंसिक साक्ष्यों के आधार पर जमानत याचिका खारिज कर दी थी। बाद में 2004 में निवेशकों के धन वापसी पर सहमति जताने के बाद उन्हें जमानत मिली। ट्रस्ट के लीगल एडवाइजर का कहना है कि सिद्दीकी को 2005 में सभी मामलों में बरी कर दिया गया था।
