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50 साल बाद नगर परिषद के नाम दर्ज हुआ जमीन का इंतकाल

रंग लाई डीसी की मेहनत दैनिक ट्रिब्यून एक्सक्लूसिव   जसमेर मलिक/ हप्र जींद, 1 जुलाई शहर के पुराने बस अड्डे के पास की अरबों रुपए कीमत की 37 एकड़ जमीन की मालिक अब जाकर नगर परिषद बनी है। अरबों रुपए...
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रंग लाई डीसी की मेहनत

दैनिक ट्रिब्यून एक्सक्लूसिव

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जसमेर मलिक/ हप्र

जींद, 1 जुलाई

शहर के पुराने बस अड्डे के पास की अरबों रुपए कीमत की 37 एकड़ जमीन की मालिक अब जाकर नगर परिषद बनी है। अरबों रुपए कीमत की इस जमीन की मलकियत नगर परिषद के नाम करवाने में खुद डीसी मोहम्मद इमरान रजा ने लगभग 2 साल कड़ी मेहनत की।

पुराने बस अड्डे के पास 1974 में तत्कालीन नगर सुधार मंडल ने स्कीम नंबर 19, जिसे विवेकानंद नगर भी कहा जाता है, विकसित की थी। इसके लिए सरकार ने लगभग 37 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। जमीन मालिकों को उनके मुआवजे का भुगतान भी कर दिया गया था। इस जमीन का इंतकाल नगर सुधार मंडल और नगर परिषद के नाम दर्ज नहीं हुआ। स्कीम नंबर 19 में जींद का मुख्य डाकघर, नगर परिषद और पुराने नगर सुधार मंडल का कार्यालय भी है। जींद की स्कीम नंबर 19 शहर की सबसे महंगी और पाॅश कालोनियों में शुमार है। यहां तक सब ठीक था, लेकिन दिक्कत तब शुरू हुई, जब नगर सुधार मंडल द्वारा विकसित की गई और अब नगर परिषद के अधीन आने वाली स्कीम नंबर 19 की अरबों रुपए कीमत की जमीन पर नरेंद्र पहल नामक एक व्यक्ति ने अपनी मलकियत होने का दावा ठोक दिया।

इंतकाल दर्ज नहीं होने के कारण ही जमीन पर इसके मूल मालिकों ने अपना मालिकाना अधिकार जताते हुए अमीर सिंह के बच्चों ने नरेंद्र पहल को इस जमीन की जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी दे दी। इस जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर नरेंद्र पहल ने कोर्ट में केस डाले। नगर परिषद ने भी इस मामले में एफआईआर दर्ज करवाई।

जींद डीसी मोहम्मद इमरान रजा।

मामला डीसी मोहम्मद इमरान रजा के नोटिस में उनकी जींद में तैनाती के समय ही आ गया था। डीसी मोहम्मद रजा ने इसे गंभीरता से लिया और 1932 के रिकॉर्ड को आधार मानकर जांच शुरू करवाई। जांच के लिए जींद के डीएमसी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई। इस कमेटी में जींद के जिला राजस्व अधिकारी राजकुमार, उचाना के तहसीलदार और नगर परिषद जींद के कार्यकारी अधिकारी को शामिल किया गया। अधिकारियों की कमेटी ने 1932 से इस जमीन के राजस्व रिकॉर्ड को चेक किया। इसमें यह बात सामने आई कि जमीन के मालिक ने अपने हिस्से की जमीन बेच दी थी। अमीर सिंह ने जिसे जमीन बेची, उन्होंने इस जमीन का मुआवजा ले लिया था।

जमीन बेचने वाला अमीर सिंह खाना कास्त में जमीन का मालिक रहा, लेकिन मलकियत नगर परिषद की रही। अधिकारियों ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि अमीर सिंह ने अपने हिस्से की सारी जमीन बेच दी थी। जमीन खरीदने वाले को जमीन का मुआवजा दे दिया गया और यह जमीन सरकारी हो गई। डीसी मोहम्मद इमरान रजा ने सरकार और नगर परिषद को अरबों रुपए कीमत की जमीन की मलकियत उसके नाम करवाने में लगभग 2 साल तक अब अथक मेहनत की। इसके बाद जाकर जमीन का इंतकाल नगर परिषद के नाम दर्ज हो पाया है। इस जमीन का इंतकाल नगर परिषद के नाम दर्ज होने को दूसरे पक्ष ने हालांकि चुनौती दी है, लेकिन फिलहाल और आज की तारीख में स्थिति यह है कि इस जमीन का इंतकाल नगर परिषद के नाम है। नगर परिषद इस जमीन की मालिक है।

सीएम के सामने पेश की गई थी गलत तस्वीर

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जींद में अरबों रुपए कीमत की स्कीम नंबर 19 की इस जमीन को लेकर सीएम नायब सैनी के सामने कुछ लोगों ने गलत तस्वीर पेश की। सीएम को बताया गया कि जमीन की मालिक नगर परिषद नहीं, बल्कि एक व्यक्ति विशेष है। उसके बाद सीएम ने जिला प्रशासन और डीसी से जमीन को लेकर जानकारी मांगी। तब डीसी मोहम्मद इमरान रजा ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत करवाया। इसके बाद सीएम ने कहा कि इस मामले में जो भी सही हो, वही किया जाए।

यह कहते हैं जींद के जिला राजस्व अधिकारी

जींद के जिला राजस्व अधिकारी राजकुमार ने कहा कि डीएमसी की अध्यक्षता वाली जांच कमेटी ने जांच में पाया कि जमीन की मालिक नगर परिषद है। अमीर सिंह ने जिन लोगों को जमीन बेची थी, वह जमीन का मुआवजा ले चुके हैं। अब इस जमीन का इंतकाल नगर परिषद के नाम दर्ज हो गया है।

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