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स्वस्थ तन-मन का विज्ञान है योग

योग दिवस : 21 जून
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योग एक अनुशासित और समग्र जीवनशैली है। जो हमारी शारीरिक,मानसिक सेहत के साथ ही आध्यात्मिक पक्ष को भी बेहतर बनाता है। यौगिक दिनचर्या में आसन, प्राणायाम और ध्यान के नियमित अभ्यास के अलावा खानपान व संगति भी मायने रखती है। दरअसल, योग व अच्छी संगति से विचार सकारात्मक बनते हैं जो आरोग्य प्रदान करने में सहायक हैं।

अरुण नैथानी

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ऋषियों-योगियों की सदियों की साधना से हमें विरासत में मिला योग निस्संदेह, स्वस्थ शरीर का विज्ञान है। एक अनुशासित जीवनशैली है। जीवन जीने की कला है। अष्टांग योग हमारा मार्गदर्शन इसके आठ अंगों के माध्यम से करता है। योग हमें अंतर्मुखी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। नियमित ध्यान और योगासन से हमारे शरीर में गुणवर्धक हार्मोन का स्राव होता है। वहीं आसन और प्राणायाम से मन और प्राण की शक्ति मजबूत होती है। हमारा जीवन तनावरहित रहता है। शरीर में स्वास्थ्यवर्धक श्वेत तथा लाल रक्त कणिकाओं का स्तर बेहतर होता है। निश्चित रूप से बीमारियां कम होती हैं। प्रकृति के सान्निध्य में धूप में योग करने से शुद्ध आक्सीजन और विटामिन डी मिलती है, जिससे हमारे शरीर की वायरस और बैक्टीरिया मारने की क्षमता बढ़ती है। कुल मिलाकर आसन-मुद्राओं से हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। निर्विवाद रूप से योग से तन, मन और आत्मा का स्वास्थ्य पाया जा सकता है।

प्रकृति अनुकूल जीवनचर्या

इसके साथ ही योग हमें प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन जीना सिखाता है। सूर्योदय से पूर्व उठने और सूर्यास्त के बाद जल्दी सोने की प्रेरणा देता है। समय पर उठना, सोना, संयमित खान-पान और व्यायाम हमें स्वस्थ बनाते हैं। यही वजह है कि योग अवसाद, माइग्रेन और हृदय रोग दूर करता है। लेकिन योग करते समय सावधानी भी जरूरी है। कुछ रोगों में कठिन आसनों से बचना चाहिए। योग शिक्षक की सलाह लेना आवश्यक है। ऑपरेशन कराने के बाद, खासकर सिजेरियन ऑपरेशन करा चुकी महिलाओं को छह माह तक परहेज करना चाहिए। जुकाम, खांसी, पेचिश और मासिक धर्म के दौरान योग नहीं करना चाहिए।

तन-मन संग आध्यात्मिक पक्ष को संबल

ऐसा नहीं है कि योग का प्रभाव सिर्फ हमारे शरीर पर ही पड़ता है। हमारा शारीरिक अस्तित्व बहुआयामी है। योग हमारे शरीर और मन के साथ ही आध्यात्मिक पक्ष को भी संबल देता है। यह हमें संपूर्ण निरोगता की ओर ले जाता है। दरअसल, जब हम षट्कर्म की क्रियाओं से विजातीय द्रव्यों को शरीर से निकाल देते हैं तो हम आरोग्य प्राप्त करते हैं। हमारा शरीर अनियंत्रित खान-पान और अराजक आहार-विहार से परेशान रहता है। आसन और प्राणायाम शरीर को राहत देते हैं। आसन सीधे-सीधे शरीर का उपचार नहीं करते, लेकिन रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

मानसिक सेहत के लिए ध्यान-प्राणायाम

उल्लेखनीय है कि जब बात मानसिक विकारों की आती है तो ध्यान और प्राणायाम इनके उपचार में खासे मददगार होते हैं। ध्यान और प्राणायाम नियमित रूप से करने से हमारी समझ विकसित होती है। जब हम अपने शरीर के बारे में गंभीरता से सोचने लगते हैं तो वह स्वस्थ रहता है। हमारे शरीर पर विचारों का गहरा प्रभाव पड़ता है। आज योगी कहने लगे हैं कि ’यह समय दवा से अधिक विचार से उपचार का है।’ सकारात्मक विचार होने से हम अपने तथा परिवार के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों का समाधान करने लगते हैं। दरअसल, शरीर हमारे अराजक व्यवहार से परेशान होता है। ध्यान करने से हम शांत और संयमित होते हैं। खाने की गुणवत्ता और मात्रा पर ध्यान देने लगते हैं।

जैसी संगति, वैसी सोच

निस्संदेह, जैसी संगति होती है, वैसे ही विचार बन जाते हैं। संतों की संगति में सात्विक विचार उत्पन्न होते हैं, जबकि अपराधियों की संगति में नकारात्मक विचार पनपते हैं। जब हम ध्यानपूर्वक अपने विचारों का निरीक्षण करते हैं, तो जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है। उपनिषदों में ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की अवधारणा भी इसी ओर संकेत करती है। आम आदमी अपनी दिनचर्या में पारिवारिक जिम्मेदारियों से निरंतर जूझता रहता है। जब वह आसन-प्राणायाम का अभ्यास करता है, तो उसकी एकाग्रता बढ़ती है और वह सद्गुणों के प्रति जागरूक होता है।

अच्छे शिष्य बनने का करें प्रयास

अक्सर कहा जाता है—‘आम आदमी योग कैसे सीखेगा? अच्छा गुरु कहां मिलेगा?’ दरअसल, यदि हम एक अच्छे शिष्य बनने का प्रयास करें, तो गुरु स्वतः मिल जाते हैं। हमारी सकारात्मक सोच सकारात्मक सहयोगियों को आकर्षित करती है। हमारे माता-पिता, मित्र और शिक्षक भी हमारे मार्गदर्शक बन सकते हैं। योग शिविर इस दिशा में सहायक हो सकते हैं। सोशल मीडिया भी मार्गदर्शन का माध्यम बन सकता है। एकल प्रयास भी रंग लाते हैं। एकलव्य का उदाहरण हमारे सामने है।

रोगों का उपचार

आम भारतीयों की आदत है कि हम तब तक स्वास्थ्य पर खास ध्यान नहीं देते जब तक किसी गंभीर रोग की चपेट में न आ जाएं। यदि अपने खानपान को सुधारें और नियमित आसन-प्राणायाम करें, तो रोगों को पनपने से रोका जा सकता है। सवाल उठाया जाता है कि क्या योग से असाध्य रोग ठीक हो सकते हैं? हकीकत यह कि नियमित योग और ध्यान से असाध्य रोगों की तीव्रता कम की जा सकती है। पीड़ा और तकलीफ़ में कमी आती है। कई कैंसर रोगी सात्विक जीवनशैली, योग और ध्यान के माध्यम से रोग के बावजूद लंबा और बेहतर जीवन जीने में सफल रहते हैं। योग से कठिन परिस्थितियों में ऊंचा मनोबल प्राप्त होता है। ऐसा ही सवाल अनुवांशिक रोगों को लेकर भी उठता है कि योग इन पर कितना प्रभाव डालता है। जब हम कहते हैं कि हमारे माता-पिता को मधुमेह या उच्च रक्तचाप था, तो यह आवश्यक नहीं कि हमें भी होगा। यह कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं है। यदि हम जीवनशैली में परिवर्तन करें और नियमित योग-प्राणायाम करें, तो इन रोगों से बचाव संभव है। संतुलित आहार-विहार से शारीरिक और मानसिक कष्टों को टाला जा सकता है।

वातावरण का असर

दूसरी ओर शहरी जीवन में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। वायुमंडल प्रदूषित होता जा रहा है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रदूषित हवा में प्राणायाम करना लाभदायक है? वास्तव में, प्राणायाम से फेफड़े मज़बूत होते हैं, रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और शरीर में रक्तसंचार बेहतर होता है। मानसिक रूप से भी व्यक्ति अधिक सजग और सशक्त होता है।

कैसा हो योगी का आहार

यौगिक आहार की बात भी प्रायः की जाती है। एक योगी का आहार कैसा होना चाहिए, इस पर हठयोग में संकेत दिए गए हैं। योग कहता है कि भोजन की मात्रा, गुणवत्ता और भोजन करते समय हमारी मनोदशा, हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। भोजन हमारे शरीर को सात्विक दृष्टिकोण प्रदान करने वाला हो—इसका ध्यान रखना चाहिए। अपने भोजन में सलाद की मात्रा बढ़ाएं, पर्याप्त जल पिएं। योग बताता है कि पेट का एक-चौथाई भाग खाली रखा जाए, आकाश तत्व के लिए। इससे अपच, अम्लता और अजीर्ण जैसी समस्याएं नहीं होतीं। यदि हम भोजन को प्रसाद की तरह ग्रहण करें, तो उसका प्रभाव भी सकारात्मक होता है। भोजन ऐसा हो जो ‘रज’ और ‘तम’ गुण को कम कर ‘सत्त्व’ गुण बढ़ाए। निस्संदेह, भोजन का प्रभाव हमारी मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। देर रात को किया गया भोजन अनेक प्रकार की व्याधियों का कारण बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद शीघ्र ही भोजन कर लेना चाहिए। किंतु हम देर रात को भारी भोजन करते हैं, जिससे प्राकृतिक चक्र बाधित होता है। इससे पाचनतंत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। बौद्धिक श्रम करने वालों या लंबे समय तक बैठकर कार्य करने वालों के लिए दो बार भोजन करना ही उपयुक्त है। साथ ही, आहार में मिनरल्स की पर्याप्त मात्रा का ध्यान रखना चाहिए। दरअसल, भोजन का संबंध हमारी भावनात्मक सोच से भी है। आज यह भी सवाल उठता है कि क्या हमें गेहूं और चावल से परहेज करना चाहिए? इसका उत्तर हमारे भौगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भ पर निर्भर करता है। जैसे पंजाब में गेहूं का अधिक उपयोग होता है, तो बंगाल में चावल। फिर भी, आहार में विविधता आवश्यक है। मिलेट्स का उपयोग लाभकारी होता है, लेकिन उनकी गर्म तासीर का ध्यान रखना चाहिए।

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