सुषमा रामचंद्रन
वैश्विक महामारी कोविड ने दुनियाभर की जीवनशैली को अनगिनत तरीकों से बदल डाला है। जो एक बदलाव रोजगार प्रक्रिया में लंबे समय तक बने रहने की संभावना लिए है, वह है वर्क-फ्रॉम-होम (घर बैठे काम) वाली व्यवस्था। यह चलन अब लगभग सभी कंपनियों के कामकाज का अभिन्न अंग बन गया है, फिर चाहे यह देशी हो या विदेशी। हालांकि किसी उद्योग-धंधे या निर्माण कार्य में कामगार-मजदूरों की जगह कोई अन्य नहीं ले सकता या सेवा-क्षेत्र के कर्मियों की जगह कोई नहीं ले सकता जहां उपभोक्ता से सीधे जुड़ने की जरूरत पड़ती है। लेकिन अन्य गतिविधियां, जो दूर से की जा सकती हैं, वे अब घर से संचालित हो रही हैं।
बतौर एक मीडिया कर्मी, मैं स्वयं स्टूडियो पहुंचकर काम करने की जगह अब घर के आरामदायक माहौल में स्काइप काल के जरिए अपने काम को अंजाम दे रही हूं। ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवारों में यही आलम है, जहां रोजाना दो-चार पहिये वाले वाहनों से दफ्तर पहुंचकर काम करने के बजाय लोग अब अपने घरों से काम कर रहे हैं। अब जबकि लग रहा है कि कोविड की दूसरी लहर का अवसान हो रहा है, लगातार यह सवाल उठ रहा है कि क्या मौजूदा चलन हमारे लिए स्थायी व्यवस्था अथवा जीवनशैली बनने जा रहा है। या पहले की तरह दफ्तरों में भौतिक उपस्थिति वाली रीत वापस आ जाएगी।
फिलहाल उक्त सवाल का उत्तर जटिल है। कई कंपनियां कार्यस्थल पर कर्मचारी की भौतिक उपस्थिति को चरणों में वापस लागू करने की योजना बना रही हैं तो कुछ अन्य घर बैठे काम वाले इंतजाम से संतुष्ट हैं और इसे लंबे समय तक जारी रखने के पक्ष में हैं। कुछ आईटी कंपनियां, मसलन-टीसीएस ने पहले ही घोषणा कर दी है कि 75 फीसदी कार्यबल अगले पांच साल तक घर से काम करेगा। यहां तक कि पेप्सीको और यूनीलीवर जैसी कंपनियां, जिनका धंधा उपभोक्ता की रोजमर्रा इस्तेमाल की वस्तुओं पर टिका है, उन्होंने भी अपने कम-से-कम एक-तिहाई कर्मियों को अगले कुछ सालों तक घर से काम करने को कहा है। यह साफ है कि अंततः आगे चलकर एक संकरित कार्य व्यवस्था बनेगी, जिसमें कुछ कर्मियों को घर से काम करवाया जाएगा तो अन्यों की वापसी दफ्तरों में होगी। यह भी हो सकता है कि कार्यबल रोजाना दफ्तर आने के बजाय हफ्ते में कुछ दिन ही आया करेगा। प्रत्येक कंपनी अपने हिसाब से ऐसा फार्मूला लागू करने का यत्न कर रही है ताकि कामकाज प्रभावशाली होने के साथ अधिकतम कार्यकुशलता वाला बन पाए।
सबको नहीं आ रहा रास
परंतु यह प्रक्रिया एकदम लकीर-रहित नहीं हो सकती। इसके पीछे कारण यह है कि घर बैठे काम सभी कर्मियों को रास नहीं आ रहा। तथ्य यह है कि सेवा क्षेत्र की वैश्विक कंपनी जेएलएल ने अपने अध्ययन में पाया है कि 82 फीसदी तक कर्मी दफ्तरों में अपने सहयोगियों के साथ पारस्परिक व्यवहार को बेतरह याद कर उदास हैं। इसके पीछे कारण अनेकानेक हैं। एक तो यह कि घर सामान से भरा रहता है और परिवार वालों के बीच काम करना थकाऊ और ध्यान बंटने वाला हो जाता है। अन्य वजहों में से एक है दफ्तरी सहयोगियों के साथ परस्पर मेलजोल हमारी रचनात्मकता एवं नवीनता को पंख लगाने को महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा वरिष्ठों से सीखने की प्रक्रिया और सहयोगियों के साथ चुनौतीपूर्ण स्पर्धा जूम काल की बनिस्पत दफ्तरों की भौतिक उपस्थिति में कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से हो पाती है। तीसरा कारण, यह तथ्य कि घर बैठे काम करना अंततः दफ्तर और घर के बीच फर्क की लकीर को धूमिल कर देता है, इसलिए कि घर वापसी पर चैन पड़ने की अनुभूति या कार्यस्थल पहुंचकर काम की जो ललक बनती है, वह नहीं रही। घर से काम करने का एक घाटा यह भी है कि जहां एक ओर कार्यावधि के घंटे अनंत हो जाते हैं वहीं मालिकों को लगता है कि जब मर्जी चाहें अपने मातहतों से फोन करके जवाबतलबी कर लो, चाहे दिन हो या रात।
इससे एक ऐसा मानसिक स्वास्थ्य मसला बनता जा रहा है, जो घर से काम करने की वजह से निरंतर बढ़ता रहा है। ऐसी खबरें हैं कि इस मुद्दे को लेकर मनोचिकित्सकों से परामर्श लेने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। मिलान (फ्रांस) स्थित रोजगार कंपनी आई ग्रुप का अध्ययन बताता है कि सर्वे में भाग लेने वाले 48 प्रतिशत लोगों का कहना है कि कोविड-19 जनित परिस्थितियों ने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाला है, हालांकि कुछेक ने ही इससे निपटने के कोई उपाय किए हैं। अन्य संबंधित कारण यह हैं कि सामान्य काल में सामाजिक मेलजोल या अन्य गतिविधियों से जो सुकून मिलता है, वह अब नदारद है, इससे कर्मियों में घुटन महसूस हो रही है। अब कॉर्पोरेट कंपनियों को घर से काम वाली व्यवस्था के फलस्वरूप बने कठिन माहौल से अपने कर्मियों के अंदर पैदा हो रहे मानसिक स्वास्थ्य मसलों पर मददगार सहायता देने पर गंभीर रूप से विचार करने की जरूरत है।
नये किस्म का बना कार्य माहौल
इतना सब कहने के बाद, इसमें कोई शक नहीं कि कोविड ने एक पूरा नये किस्म का कार्य माहौल बना डाला है जो विश्व में क्रांतिकारी परिवर्तन कर देगा। मसलन, रोजगार उपलब्धि केवल नियोक्ता के भौतिक पते तक सीमित नहीं रही। छोटे शहरों-कस्बों के प्रशिक्षित लोगों को अब घर बैठे वह काम मिल सकता है जो पहले बड़े शहरों में बसने वाले पा लिया करते थे, क्योंकि अधिकतर कॉर्पोरेट कार्यालय वहीं होते हैं। महिलाओं को भी बहुत फायदा हुआ है। एक शिक्षित महिला के लिए पहले यह असमंजस रहता है कि घर रहकर बच्चे-गृहस्थी संभालने को तरजीह दे या फिर बाहर निकलकर पूर्णकालिक नौकरी करे, घर बैठे काम वाली व्यवस्था ने यह समस्या हल कर दी है। आने वाले सालों में इस इंतजाम से कार्यबल में महिलाओं की संख्या में बहुत भारी इजाफा हो सकता है। जैसा कि विदित है, पिछले कई सालों से महिला कार्यबल की भागीदारी में भारी कमी दर्ज होने लगी थी।
घर बैठे काम करना अपाहिजों के लिए भी वरदान है। जो लोग एक ही जगह बैठकर काम कर सकते हैं, किंतु उन्हें दूरदराज दफ्तर पहुंचने में शारीरिक दुश्वारियां पेश आती हैं, वे अब निर्बाध रूप से कामकाजी हो सकते हैं। घर से काम वाली व्यवस्था ने उन्हें नये विकल्प प्रदान किए हैं, क्योंकि अब रोजगार की संभावना उसी खित्ते तक सीमित नहीं रही जहां कोई रहता है। जरूरी नहीं कि भावी नियोक्ता उसी देश का हो जहां कोई बसता है और दुनियाभर में कहीं भी कार्यबल में शामिल होने का विकल्प अब एक हकीकत है। घर बैठे काम ने उन लोगों के लिए नये मौकों का पूरा संसार खोल दिया है, जिनके पास कौशल तो है, लेकिन वे वहां तक भौतिक रूप से नहीं पहुंच पाते थे जहां अक्सर भीड़भाड़ भरे दफ्तरों का समूह हुआ करता है। बेशक यह व्यवस्था सभी के लिए हल नहीं हो सकती, क्योंकि ज्यादातर कार्यस्थलों पर आगे भी काम पहले की भांति अधिकांशतः कर्मियों की मार्फत होगा। परंतु इससे उन लोगों में उम्मीद जगी है जो आम दिनों में आवाजाही की दिक्कतों के चलते रोजगार नहीं पा सके थे। अब उनके सामने कई राहें खुल गई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि घर बैठे काम में कमियां भी हैं, जिन्हें सुधारने की जरूरत है। तथापि दूरदराज के इलाकों से काम करने वाली प्रणाली, जो पिछले साल बनी वैश्विक महामारी के बाद पैदा हुई है, निश्चित रूप से मौजूदा रिवायती रोजगार माहौल में एक स्वागतयोग्य क्रांति है।