शॉपिंग का महिलाओं में क्रेज तो पुरुषों को खास परहेज
महिलाएं शॉपिंग को एंजॉय करती हैं जबकि पुरुष अकसर इसमें बोरियत महसूस करते हैं। बेशक कई बार अपनी पत्नी के साथ शॉपिंग के लिए चले भी जाएं लेकिन अनमने रहते हैं। महिलाएं मौका-बेमौका कभी भी खरीदारी कर लेती हैं जबकि उनके पति खास अवसरों पर व केवल जरूरी सामान ही खरीदते हैं। विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक, पुरुष का ध्यान ज्यादा कमाई और कम खर्च पर होता है।
संध्या सिंह
पुरुषों के बारे में अकसर यही कहा जाता है कि उन्हें शॉपिंग करना पसंद नहीं होता। पुरुषों की इस मानसिकता पर किये गये अध्ययन भी इसी बात की पुष्टि करते हैं कि पुरुष अपने दोस्तों के साथ इधर-उधर घूम सकते हैं, सिनेमा जा सकते हैं, रेस्टोरेंट में बैठकर कॉफी पी सकते हैं। ये सब गतिविधियां उन्हें मूड रिफ्रेशिंग लगती हैं। लेकिन पत्नी के साथ जाकर शॉपिंग करना उन्हें पसंद नहीं होता यानी वे कहने को पत्नी के साथ भले ही चले जाएं, लेकिन वे शॉपिंग नहीं करते। इसके विपरीत महिलाएं घर से अगर शॉपिंग के लिए निकलती हैं तो उन्हें पता होता है कि उन्हें क्या लेना है, वो हाथ में कुछ न कुछ लेकर ही लौटती हैं। अगर वे सिर्फ कहनेभर के लिए शॉपिंग के लिए जाती हैं, तो भले ही वार्डरोब में कितने भी कपड़े हों, वे जूते, चप्पल या कपड़े कुछ भी खरीदकर ले आती हैं।
खास मौकों पर ही शॉपिंग पसंद
शॉपिंग को लेकर पुरुषों में अरुचि तो होती है, लेकिन त्योहार के अवसर पर जब उन्हें लगता है कि उन्हें कुछ खरीदना ही है तो उनकी मानसिकता में थोड़ा बदलाव आ जाता है और वो अपने लिए भी शॉपिंग कर लेते हैं। इन दिनों वे पत्नी के साथ बढ़-चढ़कर शॉपिंग करने को इंज्वॉय करते हैं। लेकिन जब उन्हें अपने लिए कुछ न खरीदना हो और पत्नी को ही शॉपिंग करनी हो तो इसमें उन्हें काफी बोरियत होती है।
खर्च के बजाय ज्यादा कमाने पर फोकस
विभिन्न अध्ययन खुलासा करते हैं कि पुरुष महिलाओं की तुलना में ज्यादा मेहनती और महत्वाकांक्षी होते हैं। अपने को ज्यादा कमाने वाला साबित करने का प्रेशर उन पर बना रहता है, इसी वजह से वे खर्च करने की बजाय कमाने को ज्यादा अहमियत देते हैं। दूसरों से आगे रहने के लिए वो अपनी स्किल्स बढ़ाते हैं और ज्यादा से ज्यादा कमाने पर फोकस करते हैं। यही वजह है कि महिलाओं के साथ जबरन शॉपिंग के लिए जाने वाले पुरुष वहां जाकर बोर ही होते हैं। उन्हें अच्छा नहीं लगता कि औरतों की तरह वह भी सेल्समैन से बहुत सारी चीजें दिखाने के लिए कहे और उनमें मीनमेख निकालकर कुछ न खरीदे। इसकी बजाय वे किसी जगह पर बैठकर दूसरों के साथ फोन पर बात करके बोरियत मिटाते हैं या जिस दौरान पत्नी शॉपिंग करती है, तब अपने जरूरी काम करते हैं। जो महिलाएं पति के क्रेडिट कार्ड से खरीदारी करती हैं, उनके साथ वे पेमेंट करने जाते हैं, पत्नी को बुरा न लगे इसलिए साथ रहते हैं।
साथ जाने के प्रति भी अरुचि
पुरुषों की शॉपिंग के प्रति दिलचस्पी न होने की आदत पर रिसर्च करने वालों के अनुसार, जो पति अपनी पत्नी के साथ शॉपिंग के लिए जाते हैं, वे उनके साथ जाने के लिए आसानी से तैयार ही नहीं होते। अगर जाते भी हैं और पत्नी किसी दुकान से कुछ बिना खरीदे आ जाती हैं तो झुंझलाते हैं। यही वजह है कि आत्मनिर्भर, कमाऊ पत्नियां आमतौर पर पतियों के साथ शॉपिंग करने की बजाय अकेले या अपनी किसी फ्रेंड के साथ ही जाती हैं। अगर पति के साथ जाती भी हैं तो वे उनकी शॉपिंग में रुचि नहीं लेते। उनकी पसंद के बारे में जब उनसे पूछा जाता है तो वह पत्नी को ही स्वयं निर्णय लेने के लिए कहते हैं।
पति के लिए भी पत्नियां करती हैं खरीदारी
कुछ पति तो ऐसे भी होते हैं जो अपने लिए भी कभी शॉपिंग करने नहीं जाते। पत्नी उनके साइज और टेस्ट के अनुसार जो कुछ लेकर आ जाती है, उसी को पहनकर खुश रहते हैं। उनकी अपनी कोई च्वाइस नहीं होती। अंजू के पति भी कुछ ऐसी ही नेचर के हैं। अंजू को उनके लिए जूते, चप्पल उनके नाप के अनुसार खुद ही खरीदने पड़ते हैं। सिर्फ पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं खरीदते हैं। वह पत्नी के साथ कभी जाते भी हैं तो दुकान के बाहर ही कहीं बैठे रहते हैं। उन्हें गहनों, कपड़ों और साड़ियों की शॉपिंग में कोई दिलचस्पी नहीं होती।
पुरुष जरूरी शॉपिंग तक सीमित
पुरुषों की शॉपिंग के प्रति बेरुखी को देखते हुए विभिन्न कंपनियां जो विज्ञापन बनाती हैं, उनमें घर से संबंधित चीजों की खरीदारी में पुरुषों और बच्चों की सहभागिता को भी दिखाया जाता है। इसका उद्देश्य पुरुषों में घर से संबंधित चीजों की खरीदारी के प्रति दिलचस्पी पैदा करना है। कुछ हद तक इसका पॉजिटिव असर भी होता है। कुछ घरों में बड़ी और महंगी आइटम खरीदने का निर्णय अकसर पुरुष ही लेते हैं। पुरुष जब बहुत जरूरी हो, तभी खरीदारी करने में यकीन करते हैं। जबकि महिलाएं इंपल्सिव होकर खरीदारी करती हैं यानी कई बार अपने बजट की परवाह किये बगैर अगर कोई चीज सस्ती मिल रही है, तो उसे भविष्य में जरूरत पड़ेगी की मानसिकता के तहत खरीद लेती हैं। ट्रेंडी, फैशनेबल चीजों को खरीदना वे शान समझती हैं। कोई चीज रिश्तेदार या सहेली के यहां देखी, तो उसे होड़ में खरीद लेती हैं। जो महिलाएं कामकाजी होती हैं, तो कुछ खरीदने से पहले पूछना भी जरूरी नहीं समझतीं।
बहरहाल महिला और पुरुष दोनों में शॉपिंग को लेकर मानसिकता बिल्कुल अलग होती है। जब कमाई कम होती है तो कई पुरुष दुकानों पर पत्नी के साथ बहस करते दिखते हैं। वह जिस चीज को खरीदना चाहती है, वे उसे फिजूलखर्ची कहकर न खरीदने की चेतावनी देते हैं। बहरहाल पुरुषों को शॉपिंग से परेशानी होती है, जिसकी बड़ी वजह है मेहनत की कमाई को वे यूं खर्च करते नहीं देखना चाहते। वहीं एक दुकान से दूसरी दुकान जाने में उन्हें बोरियत होती है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पुरुषों और औरतों की शॉपिंग के प्रति अलग-अलग मानसिकता दोनों के बीच तनाव की वजह भी बनती है। -इ.रि.सें.