चमके जो खलनायकी के हर किरदार में
पुराने दौर की फिल्मों में विलेन उम्दा अभिनेता थे। हर किरदार में रच-बस जाते थे। हाल में फिल्म ‘हाउसफुल-5’ में मशहूर विलेन रंजीत का रोल इसकी मिसाल है। डैनी व प्राण ने कई फिल्मों में यादगार पॉजिटिव रोल किये। शाहरुख ,रणवीर को छोड़ दें तो किसी नये हीरो को विलेन का रोल रास नहीं आया ।
असीम चक्रवर्ती
हाल ही में आई फिल्म ‘हाउसफुल-5’ में एक छोटे से किरदार में रंजीत के काम की तारीफ ज्यादातर क्रिटीक ने की है। आलोचक नरेंद्र गुप्ता ने माना कि रंजीत ही इस फिल्म के उल्लेखनीय पक्ष हैं। खास बात यह कि कभी दिग्गज विलेन रह चुके रंजीत का यह रूप भी दर्शकों को पसंद आ रहा है। और यह कोई नई बात नहीं। पुराने दौर के विलेन भी मजबूत एक्टर थे। बेशक इन दिनों हीरो ही सब कुछ करता है।
हाशिए पर है विलेन
हाल के वर्षों में हमारी फिल्मों में विलेन की स्थिति बदल गई है। वरना कभी विलेन हिंदी फिल्मों की जान हुआ करते थे। इनमें प्राण, अजीत,जीवन,मदन पुरी,अनवर हुसैन,विनोद खन्ना,अमरीश पुरी, डैनी, गुलशन ग्रोवर,रंजीत,किरण कुमार व शक्ति कपूर आदि ढेरों नाम शामिल हैं। यह सारे उम्दा अभिनेता थे। जब भी अपनी इमेज बदलने का मौका मिला,तो तो आराम से उस किरदार में रच-बस गए। मसलन, मनोज कुमार की कल्ट क्लासिक ‘उपकार’ में बूढ़े मंगल चाचा के रोल में अभिनेता प्राण का जीवंत अभिनय और ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’ में दादाजी के किरदार में मदन पुरी की यादगार भाव-अभिव्यक्ति। नये दौर के अभिनेता भी खलनुमा किरदार करने के लिए बेताब हैं। पर ऐसे रोल में कोई जम नहीं पाया।
कांचा चीना की याद
फिल्म ‘अग्निपथ’ के इस यादगार किरदार यानी अभिनेता डैनी की याद लाजिमी है। विलेन के इस किरदार को उन्होंने जीवंत कर दिया था। कांचा चीना विलेन होते हुए भी विलेन नहीं लगता। डैनी की ही तरह अजीत,अनवर हुसैन आदि पुराने दौर के एक्टर्स में यह क्षमता भरपूर थी। फिल्मों के जानकार राजगोपाल नांबियार कहते हैं,‘ पुराने दिग्गज विलेन उम्दा अभिनेता भी हुआ करते थे। इसलिए किसी चैलेंजिंग रोल के लिए उन्होंने जब चाहा अपना चोला बदल लिया। पर आज कोई एक्टर ऐसा करना चाहता है तो कलई खुल जाती है।’
बेकार की कोशिश
भंसाली की ‘पद्मावती’ में अभिनेत्री दीपिका को हाइप किया गया था। लेकिन फिल्म के असली हीरो अलाउद्दीन खिलजी यानी अभिनेता रणवीर सिंह को एकदम परदे के पीछे रखा गया था। रणवीर की जिद थी कि खिलजी का रोल वह करेंगे। निर्देशक ने उनकी बात भी मान ली। इसमें विलेन होते हुए भी रणवीर हीरो ज्यादा लगते हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि हिंदी फिल्मों में हीरो और विलेन का चेहरा बहुत बदला है।
शाहरुख का वह चेहरा
शाहरुख पहले ऐसे सुपर स्टार हैं,जिन्होंने यह साबित किया कि नायक और खलनायक में कुछ ज्यादा फर्क नहीं होता है। उनकी फिल्में ‘अंजाम’, ‘बाजीगर’ व ‘डर’ आदि देख लीजिए। ये पात्र ऐसे हीरो हैं जो खलनुमा चरित्र को अपने एक खास अंदाज में जीता है। इसके बावजूद वह परदे के बाहर हीरो के तौर पर सामने आते हैं। ‘डर’ के बाद कई हीरो ने खलनुमा किरदार करने की जिद की थी,मगर ज्यादातर असफल रहे।
प्रचार के सहारे सितारे
आज के सितारों का प्रचार तंत्र मजबूत है। ‘बाजीगर’ के अपने खलनुमा रोल के प्रचार के लिए शाहरुख ने खूब पीआर किया। उनकी देखा-देखी कई को यह तरीका अपनाना पड़ा,मगर सफल नहीं हुआ। रजनीकांत की फिल्म ‘रोबोट-2’ के अपने खलनुमा किरदार के लिए अक्षय ने भी बड़े पीआरओ की मदद ली थी, पर कोई तरीका काम नहीं आया। विरले अभिनेता ही इसमें सफल होते हैं।
याद नामचीन विलेन की
ऐसे में ले-दे कर फिर याद पुराने संजीदा खलनायकों की आती है। युवा निर्देशक रंजन सिंह राजपूत कहते हैं,‘ पुराने दौर के ज्यादातर विलेन ने ऐसे किरदार में जोरदार एक्टिंग पॉवर के साथ मैनरिज्म का मिक्सअप बखूबी किया था। वह अपने रोल में कुछ नया रंग भरने की कोशिश करते थे।’ मसलन अभिनेता प्राण का अभिनय और मैनरिज्म उनके कई किरदार में सामने आया। इसकी शुरुआत ‘उपकार’ से हो गई थी। उस दौर के ज्यादातर एक्टर ने अपने लिए खास मैनरिज्म तैयार किया था। वह भीड़ में हमेशा अलग पहचाने गए। जैसे कि अजीत। दूसरी ओर अमरीश पुरी या सदाशिव अमरापुरकर को कई नए अभिनेता फॉलो करते हैं। अमरीश पूरी के किरदार मोगेंबो की गूंज बहुत सुनाई पड़ती है,पर वह अंदाज अपनाने का साहस नहीं कर पाते हैं।