मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

विष्णु चक्र जहां ठहरा वहीं बही ज्ञान की अविरल धारा

नैमिषारण्य
Advertisement

जहां विष्णु का चक्र एक क्षण को थमा, वहीं जन्मी कथा, आस्था और ज्ञान की अविरल धारा। नैमिषारण्य सिर्फ एक पौराणिक स्थल नहीं, वह भारतीय सभ्यता का सांस्कृतिक वन है—जहां ऋषियों की वाणी, वेदों की गूंज और वृक्षों की छाया आज भी हमारी स्मृति में जीवित है।

वनकथा शब्द सुनते ही मन में कई किस्म की जादुई तस्वीरें उभरती हैं, जिनमें रहस्य, रोमांच, छिपे खजाने, डर और आकर्षण का सघन भाव होता है। घने जंगल, रहस्यमयी जीव-जंतु, खंडहर, गुफाएं, लोककथाओं में बसी आत्माएं या लक्षित देवता—कहने का मतलब यह कि वनकथा सिर्फ वन्य जीवन की कथा नहीं होती बल्कि इसमें इंसानी कल्पनाओं, डर, आस्था और अनुभवों की वृहद गाथाएं होती हैं। वन केवल पेड़ों का समूह नहीं होते बल्कि सभ्यता, संस्कृति, पर्यावरण और पारिस्थितिकी के मूल स्तंभ होते हैं। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जड़ें वनों में ही हैं। भारत की असंख्य लोककथाएं, योग-ध्यान की परंपराएं सभी वनों से जुड़ी हैं।

Advertisement

वनों की रक्षा—एक जिम्मेदारी

यूं तो हमारे पास अब अतीत के बेहद सम्पन्न वनों की विरासत नहीं बची, फिर भी जो थोड़े बहुत वन बचे हैं, अगर हम उन्हें भी लापरवाही से खो देंगे, तो यह सिर्फ प्राचीन वनों का खोना ही नहीं होगा बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति का क्षरण होगा। इसलिए सिर्फ जलवायु और पारिस्थितिकी को बचाने के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी सभ्यता, संस्कृति और लोकगाथा को बचाने के लिए भी हमें अपने बचे-खुचे वनों की बहुत संवेदनशीलता से रक्षा करनी होगी। हम पौराणिक वन आख्यान के सबसे महत्वपूर्ण अरण्य नैमिषारण्य की बात कर रहे हैं।

जीवित एक पौराणिक वन

भारत की सांस्कृतिक स्मृति, पुराणों, महाकाव्यों और लोककथाओं में कई ऐसे महावन (महान वन) वर्णित हैं, जो हमारी परंपरा और जातीय मानस के मूल में बसे हुए हैं। ये वन केवल पेड़-पौधों का समूह नहीं रहे बल्कि आध्यात्मिक साधना, आख्यान, युद्ध, शिक्षा और लोकस्मृति के केंद्र रहे। नैमिषारण्य, जिसका अब भौतिक वजूद वैसा नहीं मौजूद, जैसा उसका वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, मगर इसका महत्व और हमारी स्मृतियों में इसकी आख्यानिकता अभी भी मौजूद है।

शाश्वत महत्व

नैमिषारण्य का सांस्कृतिक महत्व यह है कि पुराणों और महाभारत का पाठ यहीं पर वैशम्पायन ने जनमेजय को सुनाया था। सभी 18 पुराणों की रचना-कथा इसी महावन से जुड़ी हुई है। इसलिए इसे पुराणों में ‘ज्ञान का कानन’ कहा जाता है।

यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में अपने वन रूप में तो मौजूद नहीं है, मगर इसकी पवित्रता और तीर्थ के रूप में इसकी महत्ता पूर्ण रूप से कायम है। इसलिए आज इसका नाम नैमिषारण्य धाम है। इसे भारतीय ज्ञान परंपरा, श्रुति, स्मृति और कथा संस्कार की भूमि माना जाता है।

अरण्य और आध्यात्मिक केंद्र

पुराणों और महाभारत में वर्णित यह महावन, नैमिषारण्य, हरा-भरा और ऋषियों का निवास स्थल था। यहां हर समय ज्ञान और विज्ञान की वाणी गूंजती थी। माना जाता है कि यहां हजारों वर्षों तक आश्रमों और यज्ञों का वजूद रहा है।

भारतीय ऋषि परंपरा के अनेक महान ऋषि—जैसे वेदव्यास, शौनक और दधीचि—की कथाएं नैमिषारण्य वन से ही जुड़ी हुई हैं। इसलिए इसे ‘कथा-कानन’ और भारत का आध्यात्मिक विश्वविद्यालय भी कहा जाता है।

वर्तमान स्वरूप और तीर्थ महत्ता

उत्तर प्रदेश के जिस सीतापुर जिले में इसके चिन्ह मौजूद हैं, वहां अब बड़े पैमाने पर जंगल नहीं रहे बल्कि तीर्थस्थल, मंदिर, कुंड और कुछ प्राचीन बस्तियां ही बची हैं। यहां 84 कोसी परिक्रमा का मार्ग, चक्र तीर्थ, ललिता देवी मंदिर, व्यास गद्दी, दधीचि कुंड जैसे धार्मिक और पौराणिक आकर्षण मौजूद हैं।

गोमती नदी इसके निकट से होकर बहती है, लेकिन समय के साथ नैमिषारण्य का वन रूप नष्ट हो चुका है। लगातार जंगलों का कटना, खेती, आबादी, सड़क और जन बस्तियों के विस्तार से इसका अरण्य रूप समाप्त हो गया है।

हालांकि, आज भी यहां हजारों साधु-संत रहते हैं और पूरे साल तीर्थयात्रियों का आवागमन बना रहता है। इस तरह, नैमिषारण्य का वन स्वरूप तो नहीं रहा, लेकिन एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में इसकी उपस्थिति बनी हुई है।

स्मृति वन का निर्माण

वर्तमान सरकार ने 8,511 हेक्टेयर क्षेत्र को प्राचीन स्मृति वन के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। अगर यह योजना अपने वास्तविक रूप में आकार लेती है, तो संभव है कि एक-दो दशकों में पौराणिक नैमिषारण्य की झलक फिर से दिखाई दे।

पौराणिक अर्थ और धार्मिक गौरव

नैमिषारण्य नाम के पीछे की कथा यह है कि जब देवताओं ने ब्रह्मा से निवेदन किया कि पृथ्वी पापों से बोझिल हो गई है, तो उन्होंने विष्णु का चक्र घुमाया। जहां यह चक्र एक क्षण के लिए ठहरा, वही स्थान नैमिष या नैमिषारण्य कहलाया। ‘नैमिष’ का अर्थ है—वह पवित्र स्थल जो भगवान विष्णु के चक्र के क्षणिक ठहराव से बना।

नैमिषारण्य का उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और पुराणों में बार-बार हुआ है। इसे 88 हजार ऋषियों की तपोभूमि का गौरव प्राप्त है। माना जाता है कि यहीं पर सूत जी ने शौनक ऋषि तथा अन्य ऋषियों को महाभारत की ज्ञान कथाएं सुनाई थीं।

पारिस्थितिक भूमिका

पारिस्थितिकी की दृष्टि से नैमिषारण्य गंगा-गोमती दोआब की हरित पट्टी का हिस्सा है, जो उत्तर भारत के भूजल और वायु संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यहां पीपल, बरगद, बेल, अशोक और आंवले के पवित्र वृक्ष मिलते हैं, जिन्हें आयुर्वेद और धार्मिक परंपरा में जीवनदायी माना गया है। इसलिए यह क्षेत्र आज भी स्थानीय जैव विविधता का संरक्षक है और उत्तर प्रदेश के लिए एक प्रकार का हरित फेफड़ा है।

आस्था और पर्यावरण का संगम

देखा जाए तो नैमिषारण्य केवल एक प्राचीन पौराणिक स्थल भर नहीं है, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा का आनंद स्रोत है—जहां कथा, आस्था और पर्यावरण तीनों का अद्भुत संगम मिलता है। इ.रि.सें.

Advertisement
Show comments