नेपाल, भारत का पड़ोसी देश, बिना पासपोर्ट की विदेशी सैर का शानदार विकल्प है। हिमालय की गोद में बसा यह देश अपने प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर, तीर्थस्थलों और ऐतिहासिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। काठमांडो, पोखरा और नागरकोट जैसे शहर इसकी पहचान हैं। यहां हर मौसम में घूमने का अलग ही आनंद है।
नेपाल और उसकी राजधानी काठमांडो भारतीय पर्यटकों के दिल से जुड़ा है। एक तो पड़ोसी देश है, और दूसरा, नेपाल के अलावा बिना पासपोर्ट विदेश की सैर किसी और देश में मुमकिन नहीं है। यानी नेपाल जाने-आने के लिए भारतीय पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि, अपनी पहचान के तौर पर पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार वगैरह में से कोई एक डॉक्यूमेंट ले कर जाना पड़ता है।
नेपाल हिमालय की ऊंचे-ऊंचे शिखरों का देश है। खास बात है कि समुद्र तल से 8000 मीटर ऊंचे दुनिया के 14 शिखरों में से 8 नेपाल में ही हैं। देश छोटा है तो राजधानी भी छोटी-सी ही है। काठमांडो 20 किलोमीटर चौड़े और 25 किलोमीटर लम्बे इलाके में फ़ैला है। सड़कों पर इलेक्टि्रक ट्रॉली, बस, टैक्सी, ऑटो और रिक्शा चलते हैं। ट्रेन है ही नहीं। चोरी-चकारी और जेबकतरों का कोई भय नहीं है। गांवों के घरों में आज भी कुंडी-चिटकनी लगाने का इंतजाम ही नहीं है। काठमांडो के आसपास के कस्बों के घरों के खिड़की-दरवाजे देखने लायक हैं। गजब की बारीक नक्काशी दंग करती है। पाटान और भक्तपुर नाम के पुराने शहरों के मकानों की बनावट-निर्माण शैली खासतौर से लुभाती है।
बताते हैं कि नेपाल की धरती पर ढाई हज़ार साल पहले भगवान बुद्ध ने जन्म लिया था। भगवान बुद्ध का जन्म 623 ईसा पूर्व में दक्षिणी नेपाल के तराई मैदानों में स्थित लुम्बिनी में हुआ था। इसका प्रमाण मौर्य सम्राट अशोक द्वारा 249 ईसा पूर्व में स्थापित स्तंभ पर अंकित शिलालेख से मिलता है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक प्राचीन काल में नेपाल पर गोपाल, अमीर और किरानों का शासन रहा। नौवीं सदी तक लिच्छिवियों ने राज किया। आगे 12वीं सदी तक मल्लवंश का राज रहा। मल्लवंश के आखिरी शासक यक्षमाला के निधन के बाद नेपाल तीन स्वतंत्र राज्यों—काठमांडो, भक्तपुर और ललितपुर में बंट गया। सन् 1769 में, राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल को एक करके शाह वंश की स्थापना की। आज लोकतंत्र है।
रातभर चलते कसीनो
नेपाल में क्या नहीं है? कुदरती नजारे हैं, सुहावना मौसम है, तीर्थ है, राज दरबार है, पार्लियामेंट है, विदेशी सामान से अटे बाजार हैं, पंचतारा होटल हैं और रात-रात भर चलते कसीनो हैं। नेपाल कसीनो का पुराना अड्डा है। सभी कसीनो 24 घंटे खुलते हैं। कसीनो का नारा है—‘नेपाल वेअर मदर नेचर एंड लेडी लक मीट’। यानी प्रकृति की देवी और सौभाग्य की देवी के मिलन का देश है। नेपालियों को कसीनो में खेलने की सख़्त मनाही हैं। केवल विदेशी ही कसीनो में जुआ खेल सकते हैं। बहादुर शाह मार्ग, पृथ्वी नारायण मार्ग, भख्तापुर वगैरह साफ-सुथरे इलाकों के बीच काठमांडो की सबसे खूबसूरत सड़क दरबार मार्ग है। शान दिल्ली के कर्तव्य पथ (पुराना नाम राजपथ) जैसी है, लेकिन कर्तव्य पथ के इर्द-गिर्द बाग-बगीचे हैं, जबकि दरबार मार्ग पर होटल, रेस्तरां, शोरूम और ऑफिस हैं। दरबार मार्ग के बीचोंबीच एकदम सामने राज दरबार है।
न्यू रोड स्थित ‘विशाल बाजार’ नाम की सुपर मार्केट में ख़रीदारों के दीवानों का रश रहता है। यहां चीन, जापान, ताइवान, कोरिया वगैरह देशों का सामान जो मिलता है। काठमांडो में 400 साल पुरानी लोककला की वस्तुएं भी खूब बिकती हैं। प्राचीन कलाकृतियां, हथबुने गलीचे, खुखरी, गोरखा चाकू, मुखौटे और शालें नेपाल की खासमखास सौगातें हैं। तमाम नेपाली सौगातें आलीशान शोरूमों से लेकर पटरी बाजारों तक पर मिलती हैं। वहां इतवार की बजाय हर शनिवार साप्ताहिक अवकाश होता है। यानी तमाम स्कूल, कॉलेज और सरकारी-प्राइवेट दफ़्तर शनि के शनि छुट्टी करते हैं।
पशुपतिनाथ की प्रतिष्ठा
काठमांडो में दुनिया का सबसे बड़ा शिव मन्दिर श्री पशुपतिनाथ भी है। अपनी गंगा की तरह नेपाल की पावन नदी बागमती के तट पर है। केवल हिन्दू ही मन्दिर में दर्शन कर सकते हैं। इतिहास बताता है कि मन्दिर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का है। शुरू-शुरू में मन्दिर लकड़ी का था, जिसे 1962 में फिर से बनवाया गया। मन्दिर के मुख्य द्वार के ऐन सामने विशाल सोने से जगमगाते नंदी जी के दर्शन होते हैं। आगे चांदी-सोने से मढ़े प्रमुख कक्ष के बीचोंबीच पंचमुखी पशुपतिलिंग है। एक-एक मुख चारों दिशाओं में और पांचवां ऊपर की ओर है।
नेपाल महात्म्य के मुताबिक भगवान शिव कैलास छोड़ कर, हिरण के रूप में, यहीं बस गए थे। भगवान विष्णु ने शिव जी को पशु योनि से मुक्ति दिला कर, लिंग रूप में यहीं स्थापित किया। एक दंतकथा है कि श्री पशुपतिनाथ मंदिर के पंचमुखी शिवलिंग के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। इसमें पारस पत्थर के करिश्माई गुण हैं। काठमांडो में ही है युप्त विष्णु की प्रतिमा। कहते हैं कि यह दुनिया की सबसे बड़ी विष्णु प्रतिमा है। बालाजू, शम्भूनाथ स्तूपा, दरबार स्कवेयर, बौनाथ स्तूपा, कोतिपुर वगैरह भी देखने लायक हैं।
पोखरा के दिलकश लेक
नेपाल के सैर-सपाटे में पोखरा और नागरकोट हिल स्टेशन कैसे छूट सकते हैं? काठमांडो से पोखरा की 200 किलोमीटर की दूरी सड़क से तय करन में 6-7 घंटे और उड़ान से करीब आधा घंटा लगता है। दिलकश लेक पोखरा की आकर्षण है। यहां बर्फ से ढके ऊंचे शिखरों को हवाई उड़ान में देखना रोमांचक है।
उधर काठमांडो से एक घंटे का सड़क सफ़र तय करके नेपाल के अन्य मशहूर हिल रिसोर्ट नागरकोट जा सकते हैं। मौसम साफ़ रहे, तो यहां से माउंट एवरेस्ट की चोटी तक दिखाई देती है। रोज सुबह-सवेरे सूर्योदय और शाम सूर्यास्त का नजारा खुश कर देता है। धेलीखेत नेपाल का एक और हिल रिसोर्ट है। और है काठमांडो से 165 किलोमीटर दूर भारतीय सरहद से जुड़े तराई इलाके में रॉयल चितवन नेशनल पार्क।
बारहमासी सैर का सुकून
दिल्ली से काठमांडो तक हवाई और सड़क रास्ते से पहुंचा जा सकता है। त्रिभुवन राजपथ काठमांडो को अपने देश से जोड़ता है। उड़ान से दिल्ली से काठमांडो पहुंचने में करीब सवा घंटा लगता है। अपने देश की तरह नेपाल में भी रुपया चलता है। भारतीय 100 रुपये आजकल नेपाली 160 रुपये के बराबर हैं।
सारा साल ही काठमांडो का सैर-सपाटा जारी रहता है। मौसम मॉनसून हवाओं से प्रभावित रहता है। ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती, साल भर सुहावना रहता है। फिर भी, घूमने-फिरने के लिए बेस्ट महीने हैं अक्तूबर से अप्रैल तक। जून से अगस्त तक मूसलाधार बारिश का दौर चलता है। दिसम्बर-जनवरी में कड़ाके की ठंड पड़ती है। सो, बारिश और सर्दी के दिनों में नेपाल न जाएं, तो बेहतर रहेगा।