जहां स्मृतियां जिंदा, वहां भविष्य भी सुरक्षित
संघर्षों और आपदाओं की मार झेलते हुए भी सांस्कृतिक विरासतें आज भी मानव सभ्यता की पहचान बनाए हुए हैं। लेवंत क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहरें, जो कभी समृद्ध संस्कृति की प्रतीक थीं, आज युद्ध की राख में दबती जा रही हैं। बावजूद इसके, इन धरोहरों को बचाने की वैश्विक कोशिशें उम्मीद की किरण बनकर सामने आ रही हैं। विश्व विरासत दिवस हमें यह विश्वास दिलाता है कि शांति की राह पर चलकर हम फिर से अपने अतीत की भव्यता को जीवंत कर सकते हैं।
डॉ. एस.डी. वैष्णव
सांस्कृतिक धरोहरें मानव जाति को अतीत से विरासत में मिलती हैं, जिनके साथ प्रत्येक देश का अपना एक समृद्ध इतिहास जुड़ा होता है, जो वैश्विक संस्कृतियों की सुंदरता में इज़ाफ़ा करता है। वैश्विक धरोहरें हमारी सभ्यता और उनके सांस्कृतिक महत्व को भावी पीढ़ियों के सामने इस तरह रखती हैं कि वे इनके संरक्षण और सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा सके। यूनेस्को इसी ध्येय को लेकर निरंतर प्रयासरत रहा है। लेकिन, इक्कीसवीं सदी मानव निर्मित विनाशक स्थितियों से गुजर रही है। इसका सीधा प्रभाव वैश्विक धरोहरों पर पड़ रहा है। इस बार विश्व विरासत दिवस की थीम ‘आपदाओं और संघर्षों से खतरे में पड़ी विरासत’ है।
इन दिनों युद्धों के कारण मध्य-पूर्व का लेवंत क्षेत्र जिसमें इस्राइल, फलस्तीन, लेबनान, सीरिया आदि आते हैं, वहां की सांस्कृतिक धरोहरें बहुत प्रभावित हुई हैं। इस्राइल-हमास युद्ध के कारण गाज़ा पट्टी तो खंडहरों में तब्दील हो चुकी है। गाज़ा पट्टी में स्थित है सेंट हिलारियन मठ, जिसे टेल उम्म आमेर भी कहा जाता है। यह एक वैश्विक धरोहर है। बलाखिया या एंथेडन एक सांस्कृतिक स्थल और वादी गाज़ा या गाज़ा क्रीक एक प्राकृतिक विरासत स्थल है, ये सभी युद्धों के साये में दम तोड़ रहे हैं। इधर सीरिया लगातार गृह युद्धों में जल रहा है। दमिश्क का प्राचीन शहर, वहां की ग्रेट मस्जिद और अय्यूबिड गढ़ अपनी विशाल रक्षात्मक वास्तुकला और प्रांगण के लिए, पाल्मेरा शहर सिल्क रोड नेटवर्क के लिए और रोमन कालखंड के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध बोसरा का प्राचीन शहर आदि सांस्कृतिक विरासतें सीरियाई ऐतिहासिक चेतना में अपना विशेष महत्व रखती हैं। बशर अल-असद के तख्तापलट के बाद से दमिश्क और उसके आसपास के शहरों पर इस्राइल की बमबारी लगातार जारी है।
उधर एक अस्थिर अतीत के साथ लेबनान हमेशा संघर्षों का पर्याय रहा है। राजधानी बेरूत तो पौराणिक कथाओं में फीनिक्स के रूप में जाना जाता है। इतिहास प्रेमियों के लिए स्वप्ना रहा प्राचीन मध्य-पूर्व का यह देश कभी गृह युद्ध, कभी बंदरगाह पर भयंकर विस्फोट, राजनीतिक अस्थिरता, निरंतर नागरिक अशांति, कभी पेजर ब्लास्ट और अब इस्राइल के साथ युद्ध के चलते ताश के पत्तों की तरह बिखर रहा है। अपने सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के कारण लेबनान कभी अपने समकक्ष देशों को टक्कर देता था। लेकिन अब अतीत के उस सुनहरे युग की वास्तुकला भी खत्म हो रही है। देखा जाए, तो 1975 के सिविल वॉर के बाद से पूरा लेबनान जैसे युद्ध भूमि के रूप में इस्तेमाल होता रहा है।
लेबनान में कई यूनेस्को विश्व विरासत स्थल भी हैं, जिनमें बालबेक, बायब्लोस, टायर, केदिशा घाटी, अंजार और त्रिपोली में स्थित रशीद करामी अंतर्राष्ट्रीय मेला विश्व विरासत सूची में शामिल हैं। बालबेक लेबनान का पूर्वी शहर है, जो प्राचीन रोमन वास्तुकला के लिए जाना जाता है। भूमध्य सागर किनारे दक्षिणी लेबनान में स्थित टायर शहर के खंडहरों को 1984 में विश्व धरोहर घोषित किया गया। इस्राइल के हिज्बुल्लाह के साथ युद्ध के चलते लेबनान की वैश्विक धरोहरें नष्टप्राय हो रही हैं। बेरूत लेबनानी गृह युद्ध के लिए एक संग्रहालय और स्मारक के रूप में कार्य करता है। बेरूत कभी अरब देशों के शरणार्थियों के लिए मिडिल-ईस्ट का ‘पेरिस’ कहलाता था। लेबनान की धार्मिक और जातीय विविधता यानी पूर्व और पश्चिम की परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण इसकी अनूठी सांस्कृतिक पहचान बनाती है।
इस्राइल में तेल अवीव, हाइफ़ा और पश्चिमी गैलीली में बहाई पवित्र स्थान और बाइबल टेल्स, बेत गुवरिन-मारेशा राष्ट्रीय उद्यान, एकर का पुराना शहर तथा यहूदी रेगिस्तान के पूर्वी किनारे पर स्थित मसादा का प्राकृतिक किला जो रोमन सेना के सामने यहूदियों के अंतिम प्रतिरोध का प्रतीक रहा है, इन पर भी ईरानी प्रोक्सी थ्री एच की ओर से लगातार मिसाइल और रॉकेट हमले होते रहे हैं। मध्य-पूर्व में चल रहे युद्धों की इस मटमैली राख से लेवंत का अर्थशास्त्र शांति का स्थाई समाधान कभी नहीं खोज सकता। बहरहाल, युद्धों से किनारा चाहने वाले लेवंत के आम नागरिक ऐसी भयंकर त्रासदी को सहते हुए, अपनी सांस्कृतिक विरासतों का नवाचार किस तरह करेंगे, यह समय के गर्भ में है। मानव सभ्यता से जुड़ी तमाम ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा एवं संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने वाले यूनेस्को के सामने इस तरह के युद्ध प्रश्न चिह्न खड़े कर रहे हैं। चित्र : लेखक