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फिर हिट की बयार का इंतजार

बॉलीवुड की फ्लॉप फिल्में
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पिछले दो-तीन साल से बॉलीवुड हिट फिल्मों के लिए जैसे तरस गया है। करोड़ों के बजट की फिल्में धराशायी हो रही हैं। इस साल की हिट फिल्में हैं– ‘छावा’ और ‘सैयारा’। दरअसल बॉलीवुड ने मसाला फिल्मों को छोड़ प्रयोगधर्मी फिल्मों को बढ़ावा दिया। लगता है वह दर्शकों की पसंद भूल गया। अच्छी स्क्रिप्ट नजरअंदाज करना भी एक वजह है।

एक दौर था, जब कई हिट फिल्में बॉलीवुड की रीढ़ होती थीं। नब्बे के दशक के अंत तक भी हर साल दो-तीन ब्लॉकबस्टर, पांच-छह सुपरहिट और दर्जन भर हिट फिल्मों के सहारे बॉलीवुड में खुशहाली छाई रहती थी। मगर पिछले दो-तीन साल से हिट फिल्मों को जैसे एक ग्रहण लग गया है। करोड़ों के बजट की फिल्में धराशायी हो रही हैं। यही वजह है कि बॉलीवुड में एक अरसे से किसी नए स्टार तक का भी उदय नहीं हुआ। फिल्म समीक्षक इसकी वजह बढ़ती फ्लॉप फिल्मों को मानते हैं। जाहिर है, इसके कई कारण हैं।

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अपर्याप्त सफलता का स्वाद

अब तक की इस साल की कुछ हिट फिल्में हैं– ‘छावा’, ‘महाअवतार नरसिंह’, ‘सैयारा’ और ‘कुली’। इनमें से ‘महाअवतार नरसिंह’ और ‘कुली’ साउथ की हैं। बस इसका थोड़ा-बहुत लाभ बॉलीवुड को भी मिला है। पिछले कुछ सालों में लगातार फ्लॉप हो रहीं बॉलीवुड की फिल्मों के बीच ‘बाहुबली’ 1-2, ‘केजीएफ’ 1-2 और ‘पुष्पा’ 1-2 की धमाकेदार सफलता ने कुछ पुरानी ब्लॉकबस्टर फिल्मों की सफलता की याद को ताजा कर दिया है। इसकी सबसे बड़ी मार बॉलीवुड फिल्मों पर पड़ी है। अरसे से बॉलीवुड को करोड़िया हिट फिल्में नहीं मिली।

ऐसा होता है धमाका

बॉलीवुड ने भी कभी ऐसी करोड़िया हिट फिल्मों का मजा खूब चखा था। मगर जब से उसने मसाला फिल्मों को छोड़ अंट-शंट फिल्मों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया, तब से धमाकेदार सफलता नहीं मिलती। क्या वह दर्शकों की पसंद भूल गया? उसके सामने बजट कोई समस्या नहीं। मगर उसके महंगे बजट की फिल्में ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘हाउसफुल-5’, ‘वॉर-2’ आदि दर्शकों को खास प्रभावित नहीं करती हैं। जबकि साउथ की बिग बजट की फिल्में जेहन में छा जाती हैं। ब्लॉकबस्टर हिट की बाजी फिलहाल साउथ की फिल्मों के कब्जे में है। ट्रेड पंडित इसकी एक बड़ी वजह ‘बाहुबली’ के बाद ‘पुष्पा’, ‘केजीएफ’, ‘आरआरआर’ और साउथ की कई फिल्मों को मानते हैं। ताजा उदाहरण मलयालम में बनी ‘मिराई’ है।

बदला है हिट का अंदाज़

ट्रेड पंडितों की यह एक आम धारणा है कि जब तक सौ करोड़ में बनी कोई फिल्म 200 करोड़ का बिजनेस नहीं करती है, उसे हिट की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। ऐसे में चार-पांच सौ करोड़ के बजट की फिल्म किसी बड़े रिस्क से कम नहीं है। ऐसे में ‘पुष्पा-2’ की कमाई जब 1000 करोड़ के बजट को पार कर गई, तभी उसे मेगा हिट कहा गया। और यही इस समय बॉलीवुड की सबसे बड़ी चुनौती है। उधर जब से थलाइवा रजनीकांत की ‘एंथीरन’ यानी ‘रोबोट’ ने पांच सौ करोड़ के भारी-भरकम बजट में बनकर भरपूर कमाई की, तो मेगा बजट फिल्मों को भी बड़ा आधार मिला। साउथ के निर्माता भव्य बजट की फिल्में बनाकर भी जोरदार कमाई करने लगे। ऐसे ही डेढ़ साल पहले आई सनी देओल की ‘गदर-2’ की सफलता भी इस तर्क को एकदम गलत साबित कर देती है। मात्र 60 करोड़ में बनी अनिल शर्मा की इस फिल्म ने 700 करोड़ की कमाई की।

स्टारडम एक हौवा

कई गंभीर आलोचकों की बात मानें तो स्टारडम महज एक हौवा होता है, जिसे हवा देने में प्रचार का बहुत योगदान होता है। मगर जब 70 करोड़ में बनी बिल्कुल नए लोगों की फिल्म ‘सैयारा’ 400 करोड़ से ज्यादा की कमाई करती है, तो स्टारडम की सारी हवा निकल जाती है। वहीं हमारे तीनों खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे हीरो ऐसी सीधी-सादी फिल्मों की सफलता नजरअंदाज कर देते हैं। कार्तिक आर्यन, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना जैसे कई नए दौर के हीरो भी अच्छी स्क्रिप्ट का दंभ भरने लगे थे। मगर फिर सस्ती स्क्रिप्ट में काम करना शुरू कर दिया। वहीं रजनीकांत, चिरंजीवी, मोहनलाल, नागार्जुन, ममूटी, प्रभास, पवन कल्याण, अल्लू अर्जुन जैसे साउथ के नायक फिल्म की स्क्रिप्ट में दखलअंदाजी नहीं करते हैं।

लेखकों की वेल्यू

सफल और अच्छी फिल्म की सफलता में फिल्म के लेखकों का बड़ा योगदान होता है। दक्षिण की फिल्मों में गहरी रुचि लेने वाले फिल्म आलोचक राजगोपाल नांबियार बताते हैं, ‘अब यह मानी हुई बात है कि जब भी लेखक एक अच्छे विषय को पेश करता है, दर्शकों का ध्यान झट उस फिल्म पर जाता है। एक साधारण बजट में बनी तेलुगु की फिल्म ‘मिराई’ कमाल दिखा रही है!’

 

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