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Velentines Day प्रेम तो हाट बिकाय

प्यार के इजहार का खास मौका है वेलेंटाइन डे

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सोशल मीडिया मंचों के जरिये बसती प्रेम की नयी दुनिया
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प्यार के इजहार का खास मौका है वेलेंटाइन डे। एक जमाने में प्रेमी इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते थे। फिर चोरी-छिपे प्रेमपत्र पहुंचाने और मिलने का सिलसिला। इसका विरोध भी होता था। प्रेम टैबू जो था। लेकिन अब इंतजार व विरोध, दोनों ही गायब हैं। दरअसल साइट्स-एप्स के जरिये इंस्टैंट लव तारी है। बेशक कहा जा रहा है कि आजकल युवाओं के पास न टिकाऊ प्यार की फुर्सत और न ही कोमल भावनाएं? लेकिन बिल्कुल ऐसा भी नहीं। दरअसल, प्रेम की कांसेप्ट बदल गयी। नयी पीढ़ी प्रेम निभाना भूल गयी। तभी तो कुछ डेटिंग पर बातचीत और मैसेजिंग की कोचिंग लेने लगे हैं।

क्षमा शर्मा

नब्बे के दशक में जब वैलेंटाइन डे अपने देश में पहुंचा तब एक प्रकार का शोर हर जगह उठा। बहुत से लोग उसका विरोध करने लगे। कहा जाने लगा कि प्रेम का ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन उचित नहीं है। वैलेंटाइन क्यों, डांडिया रास क्यों नहीं। यह भी बताया जाने लगा कि अपने देश में तो प्रेम सदियों से रहा है, अब अलग से वैलेंटाइन जैसे नए दिन की क्या जरूरत है। साहित्य की बातें की जाने लगीं। ऩख-शिख वर्णन और नायिका भेद के उदाहरण दिए जाने लगे। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय की बातें की जाने लगीं। पुराने जामाने के प्रेम के गानों जैसे कि ‘तुम मुझे न चाहो तो कोई बात नहीं, मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है’ के बारे में बताया जाने लगा। शरतचंद्र के उपन्यास देवदास के उद्धरण देखने को मिलने लगे। देवदास फिल्म की बातें होने लगीं। लेकिन वक्त के साथ यह विरोध हवा में विलीन हो गया। अब कोई वैलेंटाइन का विरोध करते नहीं दिखता। यह भी कि अब वैलेंटाइन का शोर भी कम हो चला है।

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प्रेम की अवधारणाएं पड़ी पुरानी

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आज तो प्रेम की सबसे ज्यादा बातें डेटिंग एप्स और वेबसाइट्स के जरिये हो रही हैं। इनके अनुसार प्रेम की वे अवधारणाएं पुरानी पड़ गईं जिनमें कहा जाता था कि प्रेम तो बस एक ही बार किया जाता है। बल्कि कहा तो यह जाने लगा है कि प्रेम शादी के बाद नहीं रहता। इसलिए हर बार उसे नए सिरे से खोजना पड़ता है। अब वियोग या विप्रलम्भ के दिन नहीं बचे हैं। जब मर्जी आए प्रेम कीजिए। शादीशुदा हैं या गैर शादीशुदा, प्रेम के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं। लोककथाओं में ऐसी कहानियां आती हैं न कि किसी राजकुमार ने एक सुनहरा बाल नदी में बहते देखा और सोच लिया कि जिसका बाल इतना सुंदर है, वह खुद कितनी सुंदर होगी और उसे ढूंढ़ने निकल पड़ा, ऐसी सोच के दिन गए। ‘भरे भौन में करत हैं नैनन ही सौं बात’ को कोई पूछने वाला नहीं रहा। अब तो प्रेम में दो नए शब्दों का बोलबाला है-सिचुएशनशिप और नैनोशिप यानि कि प्रेम किसी सिचुएशन में जन्मा और खत्म हुआ या कि एक मुस्कराहट या मीठा बोलना भर प्रेम का प्रतीक है। एक समय में प्रेम पत्र खूब लिखे जाते थे, लेकिन अब कौन है जो प्रेम पत्र लिखता होगा। उनका इंतजार करता होगा। जीवन से चिट्ठियां ही गायब हो गई हैं।

रिलेशनशिप के लिए फुर्सत का सवाल

कई साल पहले यह खबर आई थी कि इटली में एक ऐसा स्कूल खुला है, जिसमें प्रेम पत्र लिखना सिखाया जा रहा है। इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य बताया गया था कि युवा यह भूल गए हैं कि अपने प्रेम को लिखकर कैसे अभिव्यक्त किया जाए, इसलिए यह स्कूल खोला जा रहा है। गुलाम अली की गायी वह गजल तो सुनी होगी कि ‘तुम्हारे खत में वो इक नया सलाम किसका था।’ लेकिन सलाम का पता तो तब चलेगा, जब कोई खत लिखेगा। आज तो पोस्ट ऑफिस अपने दुर्दिनों पर रो रहे हैं। लैटर बाक्स खाली पड़े हैं। डाकिए दिखाई नहीं देते। क्योंकि अब पत्र तो मेल , मैसेज में सिमट चुके हैं। मध्य वर्ग की युवा पीढ़ी के बारे में कहा जाता है कि वह पढ़ाई और अपने कैरियर में इतनी व्यस्त है कि उसे रिलेशनशिप और संबंधों के लिए वक्त ही नहीं है। ऐसे में प्रेम की बात कौन करे। प्रेम सहना और एक-दूसरे की बात सुनना भी सिखाता था, लेकिन अब किसके पास इतनी फुरसत है कि चांदनी रात में छत पर लेटे हुए, वह अपने किसी प्रिय के बारे में सोचे। इसलिए आज अगर रिलेशनशिप में हैं भी, तो कल सिंगल हैं।

जब प्रेम टैबू की तरह था

वैसे की प्रेम की कितनी भी दुहाई देते रहें, आज भी अपने देश में तो प्रेम एक टैबू की तरह है। इस अपराध में न केवल लड़के-लड़कियों बल्कि उनके परिवार वालों की गर्दनें तक उड़ा दी जाती हैं। अपनी पीढ़ी में वे दिन भी याद हैं कि जब सिर्फ किसी की तरफ देखने के अपराध में लड़कियों का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया जाता था। उनकी पढ़ाई छुड़वा दी जाती थी। यही नहीं कुछ लफंगे, लड़कियां जहां पढ़ती थीं, उन स्कूलों में गुमनाम प्रेम पत्र नमक-मिर्च लगाकर लिखते थे। और फिर भरी प्रार्थना सभा में वे पत्र पढ़े जाते थे। लड़की को तरह-तरह से लानतें भेजी जाती थीं। उसके घर वालों को स्कूल में बुलाकर शिकायत की जाती थी। कई बार तो लड़की को बदनामी के डर से स्कूल से निकाल दिया जाता था। अगर लड़की ने किसी को पत्र लिख दिया और वह उस लड़के ने किसी और को दिखा दिया, तो लड़की की शामत आ जाती थी। ब्लैक मेलर्स की फौज इकट्ठी हो जाती थी। लड़की की कहीं शादी भी तय हो, तो वहां तक जा पहुंचते थे और शादी टूट जाती थी। प्रेम करने से बड़ा अपराध कोई नहीं था। कहने को यह था कि ढाई आखर प्रेम का पढ़े, सो पंडित होय।

कोमल भावनाओं की तलाश

ऐसे में यदि आज की पीढ़ी प्रेम करना भूल भी गई हो तो क्या आश्चर्य। यों दुनिया में लोग बड़ी संख्या में वैलेंटाइन डे मनाते रहे हैं, लेकिन वास्तविक प्रेम और उसकी कोमलता कितनी बची है। एक जमाने में प्रेम से जुड़े फिल्मी गीत सबकी जुबान पर चढ़ जाते थे। आज तक भी उनकी मधुरता नहीं भूली। लेकिन इन दिनों तो साहित्य, फिल्मों, धारावाहिकों सब में मारामारी मची है। जितनी मारामारी,जितना कनफ्लिक्ट, जितना आई हेट यू, उतनी ही रिकार्ड तोड़ सफलता।

रिश्ते बनाने-निभाने की भी ट्रेनिंग

ऐसे में अभी जब यह पढ़ा कि लड़के इन दिनों डेटिंग पर जाने से पहले लाखों रुपए खर्च करके बातचीत के तरीके और कैसे कोई मैसेज लिखें, इसके लिए युवा कोच की मदद ले रहे हैं, तो इटली में खुला वह स्कूल याद आ रहा है। लड़के पूछ रहे हैं कि जो लड़की पसंद आए, उससे रिश्ता बढ़ाने के लिए आगे कैसे बढ़ें। इसलिए प्रेम की ट्रेनिंग देने वाले बता रहे हैं कि महिलाओं के मनोविज्ञान को कैसे समझा जाए। यही नहीं वे लड़कों को सजना, संवरना भी सिखाते हैं। इसमें एक सलाह यह होती है कि अगर कोई स्त्री आपकी तरफ देखकर मुस्कराती है या अपने पैर आपकी ओर बढ़ाती है, तो समझिए कि वह आप में दिलचस्पी रखती है। है न मजेदार, जबकि लड़कियां सदियों से इस बात के लिए परेशान होती रही हैं कि अगर वे मुस्करा भर दें, तो लड़के समझते हैं कि वे उन्हें लिफ्ट दे रही हैं। लड़कों को ट्रेनिंग देने वाले बहुत से कोचों का यह भी मानना है कि भारतीय पुरुष अकेले हैं। तमाम तरह की वर्जनाओं के कारण वे नहीं जानते कि लड़कियों से बात कैसे की जाए। वे यह भी बता रहे हैं कि किसी लड़की या स्त्री के सामने ऐसे न दिखाएं कि बस आप ही उसकी तरफ आकर्षित हैं। उसका पीछा मत कीजिए, बल्कि उसे पीछा करने दीजिए। दिलचस्प यह है कि इन सलाहकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये लाखों की नौकरी छोड़कर, लड़कियों के साथ कैसे सम्बंध बनाएं, ये सिखा रहे हैं और नौकरी के मुकाबले बहुत अधिक पैसा कमा रहे हैं। प्रेम जैसी कोमल भावना को भी व्यापार में तब्दील कर दिया गया है। अब प्रेम सिखाने के बहुत से ऑनलाइन कोर्स भी उपलब्ध हैं। मोटी फीस भरिए और प्रेम करना सीखिए। न सीख पाएं, तो ऐसे सेंटर्स में जाइए जहां आपकी और लड़कियों की हर गतिविधि की फिल्म बनाई जाती है और कोच महोदय हर एक्शन के बारे में बताते हैं कि ऐसा हुआ, तो प्रेम है और ऐसा न हुआ, तो प्रेम नहीं है। लड़की, लड़के में रुचि ले रही है या नहीं और नहीं ले रही है, तो कैसे उसे इसके लिए तैयार किया जा सकता है।

प्रेम के सृजन की बात

लैला मजनूं, शीरीं-फरहाद, देवदास, काश इन बातों को पढ़ पाते। महान बांग्ला उपन्यासकार शरतचंद्र यदि आज जन्मे होते, तो शायद वह देवदास न लिख पाते । और प्रसिद्ध लेखक धर्मवीर भारती तो ‘गुनाहों के देवता’ जैसा उपन्यास न लिखते। शायद कमलेश्वर भी कभी न कहते कि दुनिया में सबसे ज्यादा अच्छी कहानियां असफल प्रेम पर लिखी गई हैं। और न गीता दत्त ये गा पातीं-‘न ये चांद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे।’

सुनते तो ये थे कि प्रेम कोई सिखाता नहीं यों ही हो जाता है-प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। लेकिन अब प्रेम करने के लिए भी कोचिंग की जरूरत है। जब पुराने जमाने में न इस तरह के कोई स्कूल थे, न कोच, तब लोग छिप-छिपकर प्रेम करते थे, खूब पत्र लिखते थे। लड़कियां प्रेमी के दोस्त को भाई और लड़के प्रेमिका की सहेली को बहन बना लेते थे जिससे कि संदेशों और पत्रों का आदान-प्रदान आसानी से हो सके और किसी को पता भी न चले।

लेकिन अब वक्त बदल गया है। मध्य वर्ग के लोग अब पैसे खर्च करके प्रेम करना सीख रहे हैं। तो क्या यह बात गलत है कि मध्य वर्ग के युवाओं के पास प्रेम के लिए वक्त नहीं या कि यह इकतरफा सोच है। लोग प्रेम करना चाहते हैं, मगर कैसे करें यह पता नहीं। जीवन की भागदौड़ में जिसे स्थायित्व कहते थे, स्टेबिलिटी के मानक थे, वे खत्म हो चले हैं । प्रेम जो स्थायित्व मांगता है, उसे पुराने जमाने की बात कहा जाने लगा है। ऐसे में यदि आज प्रेम है और कल नहीं है तो इसमें कैसा आश्चर्य। मगर सच यह भी है कि प्रेम के बिना दुनिया अधूरी है। मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक इसे पहचानते हैं और प्रेम करने वाले को कभी नहीं भूलते। -लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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