अस्थमा रोग का प्रसार सभी देशों में है और कई वजहों से यह और बढ़ सकता है। हालिया शोध के मुताबिक, इसकी व्यापकता, प्रभावित वर्ग और असर का स्तर सभी देशों के बीच, और उनके भीतर, अलग-अलग है। इसमें खांसी, घरघराहट और श्वास में परेशानी होती है। इनहेलर तक पहुंच बढ़ने के चलते अस्पताल में भर्ती कम हुई वहीं स्कूल व काम में हाजिरी बढ़ी है।
दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। यह बताया गया है अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘लैंसेट’ के एक नवीनतम शोध पत्र में। वर्तमान स्थिर स्थिति के बावजूद, जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और वृद्धावस्था के कारण इस रोग का बोझ बढ़ने की संभावना है। रोग की शुरुआत समय से पहले जन्मे बच्चों, कम वजन वाले शिशुओं, वायरल संक्रमण, गर्भ में पैसिव धुएं के संपर्क, शहरीकरण और अन्य व्यावसायिक जोखिम से जुड़ी है। यह जानकारी यूरोप, एशिया (भारत में जयपुर सहित), अफ्रीका, अमेरिका, मध्य पूर्व और ओशिनिया के अस्थमा विशेषज्ञों द्वारा ‘अस्थमा : महामारी विज्ञान, जोखिम कारक और रोकथाम एवं उपचार के अवसर’ शीर्षक से एक संयुक्त शोध पत्र में दी गई है। लेखक-सह-शोधकर्ता पैनल में डॉ. शमथि एम जयसूर्या, ग्राहम डेवेरेक्स, प्रोफ़ेसर जोन बी सोरियानो, डॉ. निष्ठा सिंह (जयपुर से), प्रोफ़ेसर रेफ़िलो मासेकेला, प्रोफ़ेसर केविन मोर्टिमर और प्रोफ़ेसर पीटर बर्नी शामिल हैं। यह दीर्घकालिक श्वसन रोगों के वैश्विक महामारी विज्ञान पर चार शोधपत्रों की शृंखला का दूसरा शोधपत्र है। बता दें कि अस्थमा की विशेषता वायु प्रवाह में परिवर्तनशील रुकावट है और यह खांसी, घरघराहट और श्वास कष्ट के लक्षणों के साथ-साथ वायुमार्ग में सूजन और अति-संवेदनशीलता से भी जुड़ा है।
देशों के बीच अस्थमा प्रसार का भिन्न स्तर
अस्थमा का प्रसार देश के अनुसार अलग-अलग होता है, जो एक प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक होता है, और विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन और पुर्तगाल में यह दर बहुत अधिक है। इसके विपरीत, नेपाल, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार और इंडोनेशिया में अस्थमा से मृत्यु दर सबसे अधिक है। यद्यपि उप-सहारा अफ्रीका में मृत्यु दर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की तुलना में कम है, फिर भी वे इस क्षेत्र की कम प्रसार दर की तुलना में उच्च बनी हुई है। देश के भीतर अस्थमा प्रसार वितरण में अंतर देशों के बीच के अंतर से भी अधिक है। मोटापा अस्थमा की बढ़ती घटनाओं और गंभीरता से जुड़ा है, जबकि छोटे एलर्जेन कणों के संपर्क में आने से गंभीर बीमारी होती है।
लक्षणों को नियंत्रित करने के उपाय
वयस्कों और किशोरों में, अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए फॉर्मोटेरोल ( सूजन-रोधी उपचार के रूप में) के साथ इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स के संयोजन की व्यापक रूप से अनुशंसा की जाती है। बच्चों के लिए, कम खुराक वाले इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स को प्राथमिक उपचार के रूप में प्राथमिकता दी जाती है। अल्पकालिक β-एगोनिस्ट के साथ मोनोथेरेपी की सख्त मनाही है। गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक कार्य योजना में अस्थमा के लिए किफायती संयोजन इनहेलर की उपलब्धता शामिल है। समन्वित राष्ट्रीय अस्थमा नीतियों, इनहेलर तक पहुंच सुनिश्चित करने के परिणामस्वरूप अस्पताल में भर्ती होने और स्कूल व काम से अनुपस्थिति कम हुई है। भविष्य में अस्थमा के प्रसार को अच्छी मातृ एवं शिशु देखभाल, समय से पहले जन्मों में कमी, शिशु श्वसन संक्रमण में कमी, और सभी उम्र में मोटापे में कमी के साथ कम किया जा सकता है।
भारतीय शहरों में बच्चे ज्यादा प्रभावित
एशिया में अस्थमा के प्रसार की एक विविध तस्वीर प्रस्तुत होती है। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में, अस्थमा का प्रसार अपेक्षाकृत कम है, लगभग 2-5 प्रतिशत। इसके विपरीत, चीन और भारत के शहरी क्षेत्रों में, विशेष रूप से बच्चों में, इसकी व्यापकता दर बहुत अधिक है।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड सेवन का पॉजिटिव असर
जयपुर स्थित अस्थमा भवन की सीईओ निष्ठा सिंह के अनुसार, भारत में, आईएसएएसी (बचपन में अस्थमा और एलर्जी का अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन) चरण 3 और ग्लोबल अस्थमा नेटवर्क चरण 1 के बीच, 2009 और 2022 के बीच बच्चों और किशोरों दोनों में घरघराहट की व्यापकता में उल्लेखनीय कमी आई है। घरघराहट की समस्या से पीड़ित 75-82 प्रतिशत लोगों का चिकित्सकीय निदान नहीं हो पाया। घरघराहट की समस्या से पीड़ित जिन लोगों का कोई निदान नहीं हुआ था, उनमें से 1 प्रतिशत से भी कम लोग प्रतिदिन सांस द्वारा कॉर्टिकोस्टेरॉइड ले रहे थे। घरघराहट की समस्या से पीड़ित जिन लोगों का चिकित्सकीय निदान अस्थमा से हुआ था, उनमें विभिन्न आयु समूहों में प्रतिदिन सांस द्वारा कॉर्टिकोस्टेरॉइड का उपयोग 2-8 प्रतिशत तक बढ़ गया। दक्षिण-पूर्व एशिया में, मृत्यु दर लगातार उच्च रही है, जो प्रति वर्ष लगभग 100,000 में से 13 है; यह उच्च दर कुछ क्षेत्रों में सांस द्वारा कॉर्टिकोस्टेरॉइड की कम पहुंच को दर्शा सकती है। अस्थमा की देर से शुरुआत बढ़ती बहु-रुग्णता के कारण होती है और लोगों में अक्सर आयु-संबंधी कई बीमारियां विकसित हो जाती हैं, सांस फूलने की समस्या का अंतर अक्सर बाद के जीवन में बढ़ जाता है।
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