काला सागर के तट पर बसे यूक्रेन में पहली सदी से लेकर 20वीं तक सागर और नदियों के जरिये कई शासक-शासन आये-गये। साथ ही व्यापार, साहित्य भी खूब फला-फूला। रूस में मास्कोवाइट पीरियड से भी पहले वहां सृजन जारी था, कई शताब्दी से। लेकिन क्या रूस की किसी जबरन वैचारिक-बौद्धिक मुहिम से ऐतिहासिक तथ्य व सांस्कृतिक विरासत मिटायी जा सकती है?
पुष्परंजन
2002 में सर्दियों के ही दिन थे, जब मैं विएना में था। अंतर्राष्ट्रीय एटमी ऊर्जा अधिकरण (आईएईए) के पंद्रह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम से फुर्सत के क्षण हम पैदल डान्यूब नदी की ओर निकल जाते। विएना शहर को दो हिस्सों में बांटती है यह नदी। जीवन में पहली बार किसी नदी पर पैदल चलने का अवसर मिला था मुझे। जिस माइनस पंद्रह डिग्री मौसम में मैं वहां था, डान्यूब नदी पूरी तरह से जम चुकी थी। जो जहाज दूर से दिख रहे थे, जहां भी थे, जमे हुए। बच्चे नदी पर क्रिकेट खेलते हुए, और चंद लोग जब नदी पार करते नज़र आये, तो खुद की इच्छा जाग्रत हुई कि नदी पर चल कर देखूं। मगर, स्थानीय लोगों ने हिदायत दे रखी थी, कि आसपास कोई दिखे तब चलना। दूसरा, जहां दरार दिखे, वहां क़दम मत रखना। इतनी हिदायत की वजह से डान्यूब नदी पर बमुश्किल आधा-पौना किलोमीटर मैं चलता, और किनारे लौट आता। वहीं पता चला कि नदी में जम चुके जो जहाज नज़र आ रहे हैं, वो रोमानिया, यूक्रेन तक जाते हैं।
वोल्गा के बाद, 2850 किलोमीटर लंबी डान्यूब ऐसी नदी है, जो नौ देशों का लंबा सफ़र करती है। दक्षिण-पश्चिम जर्मनी के ब्लैक फाॅरेस्ट से निकलकर ब्लैक सी में समाहित हो जाती है डान्यूब। नदी और समंदर दोनों इंसानी सभ्यता का हिस्सा इसलिए बने, क्योंकि कृषि से परिवहन तक आदिम व मध्ययुगीय इंसान इन्हीं पर आश्रित रहा करता था। ब्लैक सी के बारे में बताते हैं कि यह यूक्रेन का एकमात्र नेचुरल बाउंड्री रहा है। काला सागर के गर्भ से तथ्यों का मंथन कर अमृत और विष सामने रख देने से आज वाले रूसी इतिहासकार क्यों कतराते हैं? केवल इसका डर कि यूक्रेन के अस्तित्व का सच सामने ले आये तो पुतिन प्रशासन निकाल बाहर करेगा रूस से। आबोदाना-आशियाना के भय ने रूसी पत्रकारों, इतिहासकारों के आगे अदृश्य लक्ष्मण रेखा खींच रखी है।
काला सागर के गर्भ में गर्क इतिहास
काला सागर और सी ऑफ आज़ोव के 2782 किलोमीटर तट पर बसे इस देश को रूसी, ‘यूक्रेन’ से नहीं जानते। रशियन उच्चारण है, ‘उक्रेनिना’। काला सागर यूक्रेन, रूस, जार्जिया, रोमानिया, बल्गारिया और तुर्की की हदों को छूता है। सागर और नदियों के माध्यम से शासक आये, व्यापार समृद्ध हुआ। इस दृष्टि से ‘वारंजियन रूट’ को यूरोप के इतिहासकार याद करते हैं, जब बाल्टिक और काला सागर के कोई तीन हज़ार किलोमीटर जल मार्ग एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। वारंजियन जलमार्ग का पहला इस्तेमाल नौवीं सदी में हुआ था। नेवा रीवर, लेक लाडेगा, लेक इल्मन, वोल्खोव और लोगाट रीवर -ये सारी कीव की द्नीप्रो नदी से जुड़ती थीं। और अंत में द्नीप्रो की धारा काले सागर में समाहित हो जाती थी। ऐतिहासिक डान्यूब नदी कीव के दूसरे छोर को स्पर्श करती निकलती थी।
जल यातायात की वजह से पहली सदी में स्कैंडेनेविया से जर्मन मूल की जनजाति ‘गोथ’ का आगमन डान्यूब नदी होते हुए कीव वाले इलाके में हुआ। ओस्ट्रोगोथ कहे जाने वाले कबीलाई राजाओं ने काला सागर क्षेत्र में आधिपत्य जमाना आरंभ किया। गोथ ने एरियन क्रिश्चियनिटी को अपनाया। यूक्रेन समेत पूर्वी यूरोप के देशों में गोथिक वास्तुकला वाली इमारतें बननी तभी आरंभ हुई थीं। क्रिमिया में 17वीं सदी तक ओस्ट्रोगोथ की पीढ़ियां दिखीं। 375 में हून आये, और ओस्ट्रोगोथ के कुछ अधिकार क्षेत्रों पर कब्ज़ा जमाने में सफल रहे।
उसके प्रकारांतर स्लाव जनसंख्या ने कीव में बसना आरंभ किया था। स्लाव या स्लाविक आये कहां से? बोहामिया, मोराविया, हंगरी, बाल्कन में इनकी बसावट देखकर यूरोपीय विद्वानों की अलग-अलग दावेदारी है। ये इन इलाकों में छठी शताब्दी में अस्तित्व में थे। चेक, स्लोवेनिया, पोलैंड वाले इलाक़ों में जो स्लाविक आबादी थी, वेस्ट स्लाव के रूप में उनकी पहचान बनी। दक्षिणी स्लाव वो थे, जो सर्व, क्रोट, बोस्निया, मैसेडोनिया, मोंटेनीग्रो से आये थे। इनकी ज़मीनों पर मंगोल और बाइज़ेंटान तुर्कों ने समय-समय पर कब्ज़ा किया था।
चेरनेहिव और कीव के बाद एक तीसरा प्राचीन नगर है पेरेस्लाव, जहां 907 में प्रिंस ओलेह और बाइजेंटाइन सम्राट जाॅन प्रथम त्जिमिस्क के बीच समझौता हुआ था। उनके बाद आये बाज़िल द्वितीय, जिनके समय बाइजेंटाइन साम्राज्य का उत्कर्ष यूक्रेन ने देखा। बाज़िल द्वितीय ख़लीफत के विरुद्ध अभियान छेड़ने की वजह से शत्रुओं की संख्या बढ़ा चुके थे। 15 दिसंबर 1025 में बाज़िल द्वितीय की मृत्यु के बाद बाइजंेटाइन साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। मगर, उससे पहले एक तारीखी घटना की चर्चा ज़रूरी है। 988 में बाइजंेटाइन राजकुमारी अन्ना पोर्फीरोज़नेटा का विवाह ब्लादीमिर द ग्रेट से हुआ था। यह वह कालखंड था, जिसके बारे में इतिहासकार कहते हैं कि रूस के ईसाईकरण का आरंभ तभी से हुआ था। कीव इसका भी गवाह रहा है।
पेरेस्लाव के ही प्रिंस वोलोदीमिर ह्लीवोयिच ने 1187 में यूक्रेन का नाम ‘उक्राइना’ रखा था। कीव में विद्यूवेशी मोनिस्ट्री 1070 में निर्मित हुई थी। प्राचीन स्लाविक विरासत को समेटे हुए स्लाव लोग गैर स्लाव के प्रति दोस्ताना नज़रिया रखते थे, उसके कई सारे उदाहरण हैं। 1188 से 1190 के बीच फ्रीडरिख प्रथम बारबरोसा ने धर्मयुद्ध किया था, उसका गवाह भी कीव है।
कीवियन पीरियड
सभ्यता के साथ-साथ भाषा और साहित्य की भी बुनियाद पड़ती है। रूसी भाषा और साहित्य के संदर्भ में यही हुआ। इसकी चर्चा कीवियन पीरियड (988 से 1240) से शुरू करनी होगी। उस दौर में कीव, साहित्य और संस्कृति का अधिकेंद्र था। ब्लादीमिर मोनोमाख द्वितीय के समय कीव में बाइजेंटाइन ईसाईयत और लातिनी सभ्यता अपने शबाब पर थे। 11वीं सदी में निर्मित कीव का सेंट सोफिया कैथेड्रल इसका साक्षात गवाह है। वहां मंगोल साम्राज्य के शासक जिन्हें तातार कहते हैं, 1240 में कीव आये थे और कीवन गणराज्य का पतन हो गया। ज़ार शासकों ने उसे कीवियन रूस कहना शुरू किया। चंगेज ख़ान ने वोल्गा-यूराल के तातार, क्रीमियाई तातार, साइब्रेरियन तातार और वोल्गा तातार को एकीकृत करना शुरू किया। तातारियों की मातृभाषा तुर्कों से भिन्न थी।
रूस से भी प्राचीन यूक्रेनी साहित्य
राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावज़ूद यूक्रेनी साहित्य में सृजन का काम रुका नहीं। 16वीं शताब्दी में वहां नाटकों का विकास हुआ। व्यंग्य लेखन में स्कोवोरोटा (1722-1794) प्रसिद्ध हुए। कोत्लारेवस्की (1769-1838) कवि व गद्यकार के रूप में स्थापित हुए। तरास ग्रिगोयेर्विच शेव्चेंको (1814-1864) यूक्रेन के क्रांतिकारी जनकवि के रूप में जाने गये। कवि, नाटककार फ्रांको, यूक्रेनी जनजीवन पर निरंतर लिख रहे थे। कवयित्री लेस्या उक्राइन्का (1871-1913), उन्हीं के समकालीन कोत्स्यूबिंस्की यूक्रेनी जनता के क्रांतिकारी संघर्ष को लगातार कविताओं में उकेर रहे थे। यूक्रेनी साहित्य रचना जबतक मास्को के लाइन ऑफ एक्शन पर चलने वालों को ठीक लगी, उसे मान्यता दी गई। जिस दिन लगा कि ये हमारे विपरीत है, वो ख़ारिज़ होते चले गये।
पंद्रहवीं सदी में मस्कवा का उदय
मस्कवा का भाग्योदय हुआ है 1480 से 1598 के बीच, जिसे मास्कोवाइट पीरियड भी कहते हैं। इसके कोई एक सदी बाद, सेंट पीटर्सबर्ग रूसी साहित्य का अधिकेंद्र बनता है, वह 1703 से 1917 का लंबा कालखंड था, जब रूसी साहित्य, जिसे यूरोप का दरीचा बोलते हैं, समृद्ध हुआ। 1703 से 1809 ‘रूसी साहित्य में क्लासिकी का स्वर्णकाल’ के रूप में याद किया जाता है। तारस श्वेचेंको, यूक्रेन के राष्ट्रकवि थे। उनकी कृति ‘कोब्ज़ार’ की वजह से उन्हें ‘कोब्ज़ार तारस’ के रूप में ख्याति मिली थी। तारस श्वेचेंको यूक्रेनी राष्ट्रवाद के प्रतीक बन चुके थे। प्रथम से द्वितीय विश्वयु़द्ध के कालखंड में जो कुछ राजनीतिक हलाहल पैदा हुए, उसमें यूक्रेनी मूल के साहित्यकारों की बड़ी भूमिका रही है।
मास्को में वैचारिक धरातल पर दो बातें लगातार गढ़ी जा रही हैं, पहला यह कि यूक्रेन का अपना ओरिजिनल कुछ भी नहीं है। उसे मज़बूत करने के वास्ते विश्वविद्यालयों, मीडिया और वैचारिक मंचों का सहारा लिया जा रहा है। वहां बोला जा रहा है कि यूक्रेनी मूल के लोग बमुश्किल पांच प्रतिशत हैं। 1920 तक उक्राइना जैसा कोई देश नहीं था। इनकी न तो प्राचीन भाषा रही है, न संस्कृति। दूसरा, पुतिन पिछले कई वर्षों से यह कहे जा रहे हैं कि आधुनिक उक्राइना का अभ्युदय लेनिन की वजह से हुआ। मार्च, 2014 में पुतिन ने क्रीमिया के राज्य हरण के समय भाषण देते समय कहा था कि रूसी और क्रीमियाई एक ही मूल के लोग हैं, और कीव रूसी शहरों का मातृ स्थल है। जुलाई 2021 में पुतिन ने पांच हज़ार शब्दों का एक लेख, ‘ ऑन द हिस्टोरिकल यूनिटी ऑफ रशियंस एंड यूक्रेनियंस’ लिखा, जिसमें बताया कि यह ब्लादीमिर लेनिन का यूक्रेन है, और जिस यूक्रेन को हम जानते हैं, वह बोल्शेविक का यूक्रेन रहा था।
निर्माण और विध्वंस के मंसूबे
मगर, बात यह है कि अतीत के हवाले से यूक्रेन पर एकाधिकार का मंसूबा बांध लेना कौन से अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के अंतर्गत आता है? पश्चिमी यूक्रेन का भू-भाग दो द्वितीय विश्वयुद्धों के दरम्यान पोलैंड, रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया के अधीन भी रहा था, तो कल को ये देश भी दावा ठोक दें। यह तो जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली बात हो गई। यूक्रेन में रूसी, बेलारूसियन, माल्दोवियन, क्रीमियाई तातार मूल के वासी रह रहे हैं। किसी ज़माने में यूक्रेन के द्नीपर नदी के तटीय इलाक़ों में पोलैंड और यहूदी मूल के लोग बड़ी संख्या में बसते थे। 22 जून 1941 को नाजियों ने यूक्रेन पर कब्ज़ा किया। 1944 तक नाज़ियों ने यहूदी और पोलैंड के डेढ़ लाख लोगों को मार डाला था। बेबी यार से आठ लाख लोग उजड़ चुके थे। अक्तूबर 1944 में यूक्रेन दोबारा से सोवियत संघ के नियंत्रण में आया। तब स्तालिन सत्ता में थे। रोमानिया का कुछ हिस्सा जिसे नार्दन बुकोविना कहते हैं, 1947 में पेरिस शांति समझौते के बाद यूक्रेन में मिलाया गया। पोलैंड भी बोलिनिया और गेलिशिया वाले हिस्से को यूक्रेन को देने को विवश हुआ। सात देशों से घिरे, चार करोड़ 34 लाख की आबादी वाले यूक्रेन के पश्चिम में हैं पोलैंड, स्लोवाकिया और हंगरी। उत्तर में बेलारूस, दक्षिण-पश्चिम में माल्दोवा व रोमानिया, और पूर्वी सीमा पर है रूस। पिछले महीने से पूरी दुनिया की निगाहें यूक्रेन पर है। कूटनीति से लेकर मीडिया के गलियारे तक रूसी हमले और विस्थापन की कहानियों से गरम है। रोज़-ब-रोज़ हम पुतिन की धमकियों से बावस्ता होते हैं कि वो यूक्रेन को छोड़ेंगे नहीं, बर्बाद करके दम लेंगे। कीव की तस्वीरें देखकर कोई कह सकता है कि यह कुछ हफ्ते पहले एक खुशहाल मुल्क की राजधानी थी? जिधर देखिये अपार्टमेंट्स के मलबे। बम से तबाह सड़कें। यूक्रेन के हर बड़े नगर में तबाही का मंज़र। विध्वंस देखकर यही महसूस होता है, मानो मास्को वाले यूक्रेन का स्वर्णिम इतिहास मिटा देना चाहते हैं।
भारत की यूक्रेन में दिलचस्पी
एक आम भारतीय का यूक्रेन से क्या लेना देना? मुख्य वजह भारत-यूक्रेन की सहकार वाली कंपनियों में काम कर रहे कोई दो हज़ार भारतीय, और 18 हज़ार छात्र रहे हैं। उन्हें जैसे-तैसे यूक्रेन से सुरक्षित ले आया गया। मगर, छात्रों के आधे-अधूरे करिअर का सवाल अब भी अधर में अटका हुआ है। क्षेत्रफल की दृष्टि से फ्रांस और जर्मनी से भी बड़ा, छह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला यूक्रेन 24 अगस्त 1991 को सोवियत संघ से मुक्त हो चुका था। दिसंबर 1991 में भारत ने इस देश को मान्यता दी थी, और जनवरी 1992 में हमारे उभयपक्षीय कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए। 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम यूक्रेन गये थे, और उनके समकक्ष प्रेसिडेंट विक्टर यानूकोविच दिसंबर 2012 में भारत आये थे। इसके बाद दोनों तरफ से मंत्रिस्तरीय विजिट बहुत सारे हैं। इसके आर्थिक परिणाम को तलाशेंगे, तो 2021 तक भारत-यूक्रेन के बीच 2 अरब 80 करोड़ डाॅलर का उभयपक्षीय व्यापार दिखता है। यूक्रेन से हम कृषि, धातु, प्लास्टिक, पॉलिमर जैसे उत्पाद आयात करते हैं। फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, केमिकल्स, फूड प्रोडक्ट भारत से वहां निर्यात करते हैं। रैनबैक्सी, डाॅ. रेड्डी लेबोरेट्री, सन ग्रुप जैसी कंपनियों के कार्यालय कीव और दूसरे शहरों में दिखेंगे। इंडियन डांस, योगा, कुछ अन्य कला संबंधी गतिविधियां यूक्रेन के 22 बड़े शहरों में दिखेंगी। एक्शन-रोमांस वाली भारतीय फ़िल्म ‘विनर’ की शूटिंग यूक्रेन में हुई थी, बाहुबली-टू के विजुअल इफेक्ट्स वहीं से लिये गये थे। 2017 में एआर रहमान के ‘99 सांग्स’ यूक्रेन में ही फिल्माए गये थे। हम इन बातों से खुश हो सकते हैं, कि तीन दशकों में इतना सारा कुछ कर लिया। लेकिन हमारे लिए उदासी का सबब यह है कि मालूम नहीं यूक्रेन अपनी खुशहाली, समृद्धि को वापस ला पाता भी है, या नहीं। प्रधानमंत्री मोदी बहुत संभलकर यूक्रेन समस्या पर टिप्पणी करते हैं। उसका सबसे बड़ा कारण कश्मीर है। भारत न तो क्रीमिया के अलगाववाद को समर्थन दे सकता है, न दोनबास को!
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।