पुष्परंजन
पूरी दुनिया जहां कोरोना महामारी से जूझ रही है और लाखों लोगों की जान जा रही है, वहीं इजराइल और फिलस्तीन के बीच भीषण संघर्ष में अनेक निर्दोष मारे गये और हजारों की संख्या में लोगों को बेघर होना पड़ा। इस इलाके में विवाद का बारूद इस कदर बिखरा पड़ा है कि जरा सी चिंगारी से बदले की आग ऐसी भड़कती है कि मानवता का जबरदस्त नुकसान होता है। गनीमत है कि और भयावह हालात से पहले संघर्ष विराम की घोषणा हो गयी। बेशक इसे दोनों पक्ष अपनी जीत मान रहे हों, लेकिन नुकसान तो इंसानियत का ही हुआ है। अब उजड़ चुकी जिंदगानियों को फिर से बसाने की बड़ी चुनौती है।
बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से फोन पर बातचीत के बाद, इज़राइली पीएम नेतन्याहू का बयान आया कि हम युद्ध जारी रखेंगे, और इस हमले को अंजाम तक पहुंचाएंगे। क्या यह किसी ख़ास रणनीति के तहत दिया बयान था? ऐसा बयान, जिससे युद्ध की आग में पेट्रोल झोंकने वाली विप्लवकारी शक्तियां कन्फ्यूज़ हो जाएं? ईरान-तुर्की यहां तक कि भारत का पड़ोसी पाकिस्तान तक शुक्रवार की अल्ल सुबह दो बजे यह सुनकर हैरान हुआ कि युद्धविराम हो गया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन मिडिल-ईस्ट में शांतिदूत के रूप में उभरे हैं, उन्होंने यूएन के सहयोग से गाज़ा पट्टी को संवारने का संकल्प किया है। इसमें सबसे अहम रोल मिस्र के राष्ट्रपति फतेह अल-सिसी का था, जिनकी हमास नेता इस्माइल हानिया से दोस्ती ने अग्निशमन का काम किया है। फ्रांस, जॉर्डन, जर्मनी के नेता भी शांति प्रयास में लगातार लगे हुए थे।
बृहस्पतिवार देर रात नेतन्याहू ने जो बाइडेन से फोन पर संवाद के बाद, सिक्योरिटी कैबिनेट की बैठक बुलाई, और सीजफायर की स्वीकृति ले ली। इजराइली प्रतिरक्षा मंत्री बेनी गांज ने सबसे पहले यह ख़बर एक ट्वीट के ज़रिये दी, जिसके बाद हमास ने इस ख़बर पर मुहर लगाई कि शुक्रवार सुबह दो बजे से हमारे लड़ाके शांत बैठ जाएंगे। हमास ने अपने बयान में कहा कि यह सीज़-फायर फिलस्तीनियों की जीत है।
यह एक ऐसी लड़ाई हुई, जिसमें हर पक्ष अपने-आपको जीता हुआ महसूस कर रहा है। हमास नेता इस्माइल हानिया की तरह इज़राइली प्रधानमंत्री बेन्जमिन नेतन्याहू भी विजयी मुद्रा में हैं। नेतन्याहू अपनी घरेलू राजनीति में ख़म ठोक सकते हैं कि देखो हमारा कम से कम नुकसान हुआ, फिलस्तीनियों को हमने कीड़े-मकोड़ों की तरह मारा है। हालिया संसदीय चुनाव में हारने के बावजूद, नेतन्याहू शायद इस युद्ध की ‘उपलब्धियों’ के बिना पर मिली-जुली सरकार बना लें। दरअसल, पराजय हुई है दोनों तरफ के आम लोगों की। 10 मई, 2021 से आरंभ 11 दिनों के युद्ध में 227 फिलस्तीनी मारे गये, जिनमें 64 बच्चे और 38 महिलायें हैं। दूसरी ओर इज़राइल में 12 लोगों की मौत हुई, जिसमें दो बच्चे शामिल हैं।
अब उजड़े लोगों को बसाना, घायलों को चिकित्सा और शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की बड़ी ज़िम्मेदारी आन पड़ी है। यूएन के सेक्रेट्री जनरल एंतोनियो गुटरस ने कहा, ‘युद्ध की वजहों को समझने और उसके निदान की आवश्यकता है। गाज़ा फिलस्तीनी राष्ट्र का अभिन्न अंग बना रहेगा।’ इस समय सबसे अधिक उत्साह में व्हाइट हाउस है। वहां से ऐलान हुआ कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन अगले हफ्ते मिडल-ईस्ट की यात्रा पर जाएंगे, और फिलस्तीनी-इज़राइली नेताओं से मिलेंगे। राष्ट्रपति जो बाइडेन का यह बयान महत्वपूर्ण है कि इज़राइली और फिलस्तीनियों को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व से रहने के वास्ते बराबर का अधिकार है। क्या यह ट्रंप की मिडल-ईस्ट पाॅलिसी को पलट देने का प्रयास है? ट्रंप प्रशासन पूरे समय मानता रहा कि इज़राइल को अपनी रक्षा का अधिकार है।
वैसे, वाशिंगटन की ओर से इज़राइल को हर साल 3.8 अरब डाॅलर की मिलिट्री मदद दी जाती रही, जो बाइडेन उसे रोकना नहीं चाहेंगे। अमेरिका से इज़राइल का 73 अरब 50 लाख डाॅलर वाले ‘प्रिसिज़न गाइडेड मिसाइल’ का सौदा हुआ था। युद्धकाल में उसे रद्द करने के वास्ते जो बाइडेन पर उन्हीं के सांसद दबाव बनाये हुए थे, यही कारण था कि 10 दिनों मेें जो बाइडेन ने नेतन्याहू से छह दौर की बातचीत की थी। इस सीज़फायर के बाद, सबसे बड़ी राहत जो बाइडेन को मिली है।
नेतन्याहू इस लड़ाई को और भड़काना इसलिए चाह रहे थे, क्योंकि 23 मार्च, 2021 को 120 सदस्यीय संसद के चुनाव परिणाम में सत्तारूढ़ राइट विंग लीकुड पार्टी व सहयोगियों की मात्र 52 सीटें आईं थीं, और विरोधियों येश आतिद पार्टी व यायर लापिड को 57 सीटें मिलीं। नेतन्याहू, अरब पार्टी ‘राम’ के चार सांसदों, न्यू होप पार्टी और कुछ दूसरे नये सांसदों को पटाकर मिली-जुली सरकार बनाने की जुगत में थे। इस युद्ध से यही हुआ कि थोड़े दिनों के वास्ते सबका ध्यान बंटा, नेतन्याहू को अपना सियासी क़िला दुरुस्त करने की मोहलत मिल गई।
यूं, सियासी क़िला हमास ने भी मज़बूत किया है। गाज़ा पट्टी, जहां हमास का शासन है, उससे शेख़ जर्रा की दूरी 80 किलोमीटर है। मगर, जिस तरह से गाज़ा को गरम किया गया, जेरूसलम को लक्ष्य कर हमास की मिलिट्री विंग अल-कसम और इस्लामिक जिहाद से जुड़े अल-क़द्स ब्रिगेड ने रॉकेट दागे उससे उसका मनोबल मज़बूत हुआ है। अब सवाल यह है कि शेख़ ज़र्रा का क्या होगा?
शेख़ जर्रा वह इलाक़ा है, जो पूर्वी और पश्चिमी जेरूसलम को बांटता है। 1956 में जब शेख़ जर्रा पर जाॅर्डन का फरमान चलता था, उसने 28 फिलस्तीनी परिवारों को बसने की अनुमति दी थी। इनके लिए भवन निर्माण में माली मदद यूएन एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए ने की थी। 1967 में आधिपत्य के तीन साल बाद, 1970 में इज़राइल ने एक क़ानून बनाया, जिसके आधार पर जो फिलस्तीनी 1948 या 1967 में पश्चिमी जेरूसलम छोड़ गये थे, उनकी अचल संपत्ति को ‘एब्सेंटी प्रॉपर्टी’ घोषित कर उस जगह को सरकार अपने अधिकार में ले सकती थी। और जो यहूदी 1948 से पहले पूर्वी जेरूसलम में थे, जाॅर्डन के ज़ुल्मों की वजह से उन्हें भागना पड़ा, उनकी अगली पीढ़ियां दस्तावेज़ों के बिनाह पर भूमि वापसी का दावा कर सकती हैं। इसी क़ानून के आधार पर पूर्वी-पश्चिमी जेरूसलम समेत शेख़ जर्रा के कुछ फिलस्तीनी परिवारों से जगह खा़ली कराने का मामला इज़राइल की अदालत में चल रहा है।
अदालती लड़ाई लड़ रहे फिलस्तीनी परिवारों को भूमि आवंटन वाले दस्तावेज़ों की पुरानी काॅपी जाॅर्डन के विदेश मंत्रालय ने मुहैया कराई थी, वह भी इज़राइल की सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करने से मना कर दिया था। 6 मई, 2021 को शेख़ जर्रा के चार परिवारों को घर ख़ाली करने का आदेश कोर्ट से हुआ।
10 मई को शेख़ ज़र्रा की वजह से हिंसा भड़की थी। सवाल अब भी अनुत्तरित है कि क्या इज़राइल अपने भूमि अधिग्रहण कानून में कोई रद्दोबदल करेगा?