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अंग्रेजों ने सितम ढाये, जगाधरी के मास्टर पृथ्वीनाथ बिल्कुल न घबराये

अरविंद शर्मा परिवार की गाथा सुनाते स्वतंत्रता सेनानी स्व. मास्टर पृथ्वीनाथ गर्ग के भतीजे अशोक गर्ग। देश को गोरों की गुलामी से आजाद कराने में जगाधरी के गर्ग परिवार की भूमिका भी अहम रही। यहां के दो सगे भाइयों ने...
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स्वतंत्रता सेनानी स्व. मास्टर पृथ्वीनाथ गर्ग के निधन पर उर्दू अखबार में छपा लेख। - निस
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अरविंद शर्मा

परिवार की गाथा सुनाते स्वतंत्रता सेनानी स्व. मास्टर पृथ्वीनाथ गर्ग के भतीजे अशोक गर्ग।

देश को गोरों की गुलामी से आजाद कराने में जगाधरी के गर्ग परिवार की भूमिका भी अहम रही। यहां के दो सगे भाइयों ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जेल में दी गई घोर यातनाएं भी एक भाई ने झेली, लेकिन अपने संकल्प से नहीं डगमगाये। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मास्टर पृथ्वीनाथ गर्ग जगाधरी के स्वाईयान परिवार में 15 दिंसबर, 1899 में हुआ। इनके पिता का नाम लाला घसीटूमल गर्ग और माताजी का नाम श्रीमती गोदावरी देवी था। पृथ्वी नाथ जी की शिक्षा मिडिल तक हुई। ये गणित के विषय में बहुत तेज तर्रार थे। कुछ समय वकील के मुंशी भी रहे। इसके पश्चात स्कूल में शिक्षक भी रहे। उन्होंने अध्यापन का कार्य किया, लेकिन मन में ललक तो देश को गुलामी से मुक्त कराने की थी। सो मास्टर जी कानपुर मे दिसंबर 1925 के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए। उसके पश्चात स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। मास्टर जी के भतीजे अशोक गर्ग (रिटायर्ड बैंक अधिकारी) के अनुसार ताऊ जी लाहौर के रावी के किनारे कांग्रेस अधिवेशन में वालंटियर के रूप में शामिल हुए। अक्तूबर 1930 में दफा -169 के तहत उनके घर पर दबिश दे अंग्रेजी हुकूमत ने तीव्र बुखार होने पर भी गिरफ्तारी कर ली। अशोक गर्ग के अनुसार सियालकोट, फरीदकोट इत्यादि की जेलों में लंबे समय तक कैदी के रूप में सजा काटी। अंग्रेजों ने बी क्लास की जेल में भेजा, लेकिन मास्टर जी ने सी क्लास के कैदी के रूप मे ही रहकर की सजा काटी। सन् 1946 में मास्टर पृथ्वीनाथ गर्ग जगाधरी वापस आए। यहां आकर उनका मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ। जेल में लंबे समय तक यातनायें भुगतने के कारण शरीर काफी अस्वस्थ हो गया और 28 -12-1955 की रात को दूनिया को अलविदा कह गए। अशोक गर्ग ने उनके पिता जी दर्शन लाल गर्ग भी बड़े भाई के पद चिन्हों पर चलते हुए स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। श्री दर्शन लाल गर्ग ने शिमला में नेशनल ग्रीनलैंड बैंक में जॉब करते समय खादी टोपी पहंनी मंजूर की। अशोक के अनुसार इसी टोपी पहनने पर प्रतिदिन अंग्रेजी पुलिस रोजाना दो डंडे मारती थी। पिता जी ने डंडे खाये, लेकिन टोपी पहननी नहीं छोड़ी। आजादी के पश्चात श्री दर्शन लाल को दरबारी लाल जगाधरी स्टेट बिजली बोर्ड जैस्को में अपने साथ जगाधरी ले आए। अशोक के अनुसार मास्टर पृथ्वी नाथ गर्ग और दर्शन लाल गर्ग के नाम जो भी पत्र आते थे, अंग्रेजी सरकार के आदमी उन्हें खोलकर अवश्य पढ़ते थे। उन्होंने बताया कि उस समय मास्टर पृथ्वीनाथ, दर्शन लाल गर्ग, शिवप्रसाद गर्ग, पंडित बृजराज शरण, पंडित मधुसुदन, जगदीश माशा, अभय कुमार सिंह इत्यादि साथियों के साथ चौक बाजार में चबूतरों पर एकत्र हो आजादी को लेकर चुपके से रणनीति बनाते थे। वहीं अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के पदाधिकारी आशीष मित्तल आदि का कहना है कि उनका प्रयास इनकी स्मृति में शहर में कुछ बनवाने का है। उनका कहना है कि इन महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से संबंधित एक पुस्तक भी प्रकाशित कराई जाएगी।

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