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तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा : उत्तराधिकारी के यक्ष प्रश्न

जन्म दिवस आज
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आध्यात्मिक नेता और तिब्बती स्वायत्तता के शांतिपूर्ण संघर्ष के अग्रणी नेतृत्वकर्ता दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो जीवन के दसवें दशक में प्रवेश कर गये। ऐसे में उनके उत्तराधिकारी का सवाल उठना स्वाभाविक है। परंपरानुसार, दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज तत्कालीन दलाई लामा की मृत्यु के बाद शुरू होती है। लेकिन दलाई लामा ने संकेत दिये कि उनके उत्तराधिकारी के पुनर्जन्म की खोज उनके बाद शुरू होगी और संभव है वह बच्चा तिब्बत के बाहर पैदा हो। उधर, चीनी मंसूबे पुरातन पुनर्जन्म प्रक्रिया के जरिये दलाई लामा बनवाकर तिब्बत का भविष्य नियंत्रित करने के हैं।

पुष्परंजन

यह कोई पहली बार दलाई लामा ने नहीं कहा, कि उनका उत्तराधिकारी तय करने का अधिकार चीन को नहीं है। साल 1969 में ही परम पावन यानी दलाई लामा ने स्पष्ट कर दिया था, कि मेरे बाद के दलाई लामा के पुनर्जन्म को मान्यता दी जाए या नहीं, यह तिब्बती मूल के लोगों, मंगोलों, और हिमालयी क्षेत्रों के बौद्ध अनुयायियों को तय करना है। वहीं 24 सितंबर 2011 को अगले दलाई लामा की मान्यता के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रकाशित किए गए, जिससे संदेह या धोखे की कोई गुंजाइश नहीं बची थी। उस दिशा-निर्देश में परम पावन ने घोषणा की थी, कि जब वे लगभग नब्बे वर्ष के हो जाएंगे, तो वे तिब्बत की बौद्ध परंपराओं के प्रमुख लामाओं, तिब्बती जनता, और तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले अन्य संबंधित लोगों से परामर्श करेंगे, और यह आकलन करेंगे, कि उनके बाद दलाई लामा जैसी संस्था जारी रहनी चाहिए, या नहीं।

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24 सितंबर 2011 वाले वक्तव्य में दलाई लामा के उत्तराधिकारी की मान्यता के विभिन्न तरीकों की भी खोज की गई है। यदि यह निर्णय लिया जाता है, कि पंद्रहवें दलाई लामा को मान्यता दी जानी चाहिए, तो ऐसा करने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से दलाई लामा के ‘गादेन फोडरंग फाउंडेशन’ के संबंधित अधिकारियों पर होगी, जिसकी स्थापना उन्होंने स्विटजरलैंड के ज़्यूरिख़ में की थी। परम पावन ने कहा था, कि मैं इस बारे में स्पष्ट लिखित निर्देश छोड़ूंगा। उन्होंने चेताया था, कि ‘वैध तरीकों से मान्यता प्राप्त पुनर्जन्म’ के अलावा, किसी भी व्यक्ति द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए चुने गए उम्मीदवार को कोई मान्यता या स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए, जिसमें पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के एजेंट भी शामिल हैं।

यह मुद्दा आध्यात्मिक महत्व से परे है; जो एक जटिल भू-राजनीतिक संघर्ष का रूप धारण कर गया है। चीन सदियों पुरानी पुनर्जन्म प्रक्रिया, और तिब्बत के भविष्य को नियंत्रित करने के लिए जी-जान लगाए हुए है। इसे काउंटर करने के वास्ते सीआईए की प्रच्छन्न भूमिका पर पूरी ख़ामोशी है। परंपरागत रूप से, दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज तत्कालीन दलाई लामा की मृत्यु के बाद ही शुरू होती है। वरिष्ठ भिक्षु संकेतों की व्याख्या करते हैं, दैवज्ञों से सलाह लेते हैं, और तिब्बती क्षेत्र में ऐसे बच्चे की तलाश करते हैं, जो पिछले दलाई लामा के गुणों को प्रदर्शित करता हो। इस प्रक्रिया में कई साल लग सकते हैं, जिससे अक्सर आध्यात्मिक और नेतृत्व शून्यता बनी रहती है।

लेकिन इस बार, दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, नई पटकथा लिख रहे हैं, यह संकेत देते हुए, कि वे अपने उत्तराधिकारी का नाम अभी जीवित रहते हुए भी रख सकते हैं। और हो सकता है, कि बच्चा तिब्बत के बाहर पैदा हो। उन्होंने वचन दिया कि उनका उत्तराधिकारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के नियंत्रण में पैदा नहीं होगा। गत 11 मार्च 2025 को प्रकाशित पुस्तक, ‘वॉयस ऑफ द वॉयसलेस’ में दलाई लामा ने लिखा है, ‘चूंकि पुनर्जन्म का उद्देश्य पूर्ववर्ती के कार्य को आगे बढ़ाना है, इसलिए नए दलाई लामा का जन्म मुक्त दुनिया में होगा।’ चीन इस बात से भड़का हुआ है।

14वें दलाई लामा की खोज

17 दिसंबर 1933 को 13 वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो की मृत्यु हुई थी। 14वें दलाई लामा की खोज 13वें दलाई लामा की मृत्यु के चार साल बाद 1937 में शुरू हुई थी। 14वें दलाई लामा का राज्याभिषेक समारोह 22 फरवरी 1940 को ल्हासा में हुआ, तब दलाई लामा केवल पांच साल के थे। यह दीगर है, कि 15 साल की उम्र तक, दलाई लामा ने पूर्ण आध्यात्मिक और लौकिक अधिकार ग्रहण कर लिया था। दलाई लामा ने 23 मई 1951 को पेइचिंग जाकर एक 17 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किया था, तब वो मात्र 16 वर्ष के थे। यह दबाव में किया समर्पण वाला समझौता था, जिसकी बिना पर तिब्बत को चीनी एकाधिकार में आ जाना था।

तिब्बती ‘स्वतंत्रता’ और ताइवान

उन दिनों दलाई लामा स्वयं ताइवान में कम्युनिस्ट विरोधी चीनी सरकार के साथ गठबंधन करने में झिझक रहे थे, दलाई लामा के दूसरे बड़े भाई ग्यालो थोंडुप का सीआईए के साथ-साथ कुओमिन्तांग और उसके नेता चियांग काई-शेक जैसी कम्युनिस्ट विरोधी सरकारों के साथ संपर्क का एक लंबा इतिहास था। थोंडुप ने अपने शुरुआती साल चीन के जियांगसु राज्य की राजधानी नानजिंग में बिताए। नोरबू ने भागने का फैसला किया, और 1950 में तिब्बत छोड़ दिया। वह चर्च वर्ल्ड सर्विस और सीआईए की मदद से अमेरिका गए। साल 1959 की सीआईए के बुलेटिन में बताया गया है कि थोंडुप ने कुओमिन्तांग प्रतिनिधियों से ‘एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मुलाकात की, जो तिब्बती ‘स्वतंत्रता’ और एक स्वतंत्र तिब्बत सरकार की अंततः राष्ट्रवादी मान्यता का आधार हो सकता है।’

तिब्बत-चीन मामलों के इतिहासकार विलियम एम. लेरी के अनुसार, ‘ताइवान की अनिच्छा के बावजूद, सीआईए के ‘ फ्रंट कॉरपोरेशन, ‘सिविल एयर ट्रांसपोर्ट’ संक्षेप में ‘कैट’, जिसका केएमटी से घनिष्ठ संबंध था, ने नवंबर 1959 और मई 1960 के बीच, मुख्यभूमि चीन के ऊपर से 200 से अधिक उड़ानें भरीं और तिब्बत में 400 टन माल पहुंचाया। सीआईए ने हाल के दिनों में जिन दस्तावेज़ों को ‘डीक्लासिफाइड’ किया, उन्हें पढ़ने पर लगता है कि अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी ने भू-सामरिक स्थिति को देखते हुए अपने पूरे ऑपरेशन को भारत-नेपाल की तरफ शिफ्ट कर दिया था।

चीन-भारत संबंध और सीआईए

1959 में, दलाई लामा 23 साल के युवा थे, तब चीनी शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद, उन्हें भारत भागना पड़ा, जहां उन्होंने हिमालयी शहर धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की। दलाई लामा के तिब्बत से महाभिनिष्क्रमण से पांच साल पहले अक्तूबर 1954 में, भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की चीन यात्रा के संबंध में सीआईए विश्लेषकों द्वारा एक रिपोर्ट दायर की गई थी। इसने मूल्यांकन किया गया था, कि दोनों देश उभयपक्षीय कूटनीतिक दृष्टिकोण से सहमत हो सकते हैं, या नहीं। सीआईए ने तब अच्छे से बोल दिया था, कि चीन और भारत के सम्बन्ध दलाई लामा को लेकर बिगड़ेंगे।

तिब्बत से महाभिनिष्क्रमण

1959 में, दलाई लामा का जिन विषम परिस्थितियों में तिब्बत से महाभिनिष्क्रमण हुआ, वह आधुनिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। गत 17 मार्च, 1959 को दलाई लामा को गिरफ्तार करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। उन्हें चीनी जनरल ने ल्हासा में एक समारोह के लिए आमंत्रित किया और पूछा, कि क्या 14वें दलाई लामा चीनी नृत्य मंडली का प्रदर्शन देखना चाहेंगे? लेकिन जब उन्हें चीनी सैन्य मुख्यालय में सैनिकों या सशस्त्र अंगरक्षकों के बिना आने के लिए कहा गया। उनकी आधिकारिक जीवनी के अनुसार, ‘परम पावन समझ चुके थे, कि यह चीनियों का लगाया एक फंदा है।‘

17 मार्च, 1959 को, दलाई लामा की गिरफ़्तारी रोकने के वास्ते उनके हज़ारों समर्थकों ने समर पैलेस ‘ नोर्बुलिंका’ को घेर लिया था। तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनीतिक गुरु दलाई लामा, जो उस समय 23 वर्ष के थे, ने एक सैनिक का वेश धारण किया और महल के बाहर भीड़ के बीच से निकल गए। उनके साथ विश्वस्त सैनिकों का जत्था था, परिवार और कैबिनेट के सदस्य थे। ये लोग पैदल हिमालय पार करते हुए शरण के लिए एक खतरनाक यात्रा पर निकल पड़े। चीनी सैनिकों की नज़र से बचने के लिए वे केवल रात में यात्रा करते थे। टाइम मैगज़ीन की 1959 में प्रकाशित एक कवर स्टोरी के अनुसार, बाद में तिब्बतियों के बीच किंवदंती फैलीं कि दलाई लामा को ‘बौद्ध तांत्रिकों की प्रार्थनाओं से उत्पन्न धुंध और बादलों के कारण चीन के टोही विमानों से बचा लिया गया था।’ लेकिन बीबीसी के अनुसार, ‘ल्हासा से भागने के दो सप्ताह बाद जब तक वे भारत में नहीं आए, तब तक दुनिया भर के लोगों को आशंका हुई कि वे मारे गए हैं।’

ये लोग चीनियों से बचते-बचाते अंततः अरुणाचल प्रदेश के तवांग पहुंचे। खेंजीमाने दर्रा पार करते दलाई लामा के साथ 80 लोगों का समूह 31 मार्च, 1959 को तवांग जिले के ज़ेमीथांग सर्कल के अंतर्गत खेन-डेज़-मनी पहुंचा। इन सबों का 5 असम राइफल्स और ज़ेमीथांग के लोगों द्वारा आधिकारिक तौर पर खेन-डेज़-मनी में स्वागत किया गया। दलाई लामा असम राइफल्स की देखरेख में तेजपुर लाये गये। वो बीमार हो चुके थे। दो हफ्ते के आराम के बाद दलाई लामा ने 18 अप्रैल 1959 को तेजपुर में स्पष्ट किया कि 17 सूत्री समझौते पर दबाव में हस्ताक्षर किए गए थे, और चीनी सरकार ने जानबूझकर समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया था। आज से उस समझौते को अमान्य माना जाए।

29 अप्रैल 1959 को दलाई लामा ने मसूरी में निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की, जो मई 1960 में धर्मशाला शिफ्ट कर गई। साल 2011 में वे लोकतांत्रिक सरकार, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के लिए रास्ता बनाने के लिए राजनीतिक प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए। पिछले कई दशकों में दलाई लामा अहिंसा, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता के वैश्विक प्रतीक बन गए हैं। लेकिन दलाई लामा ने हिंसा को भी अपरोक्ष स्वीकृति दी थी। उसका प्रमाण था खम्पा युद्ध। सीआईए ने जिन तिब्बती खम्पा योद्धाओं को कोलराडो में ट्रेंड किया था, वो ताइवान और भारत की सहायता से तिब्बत के खाम में जुटने लगे।

नेपाल के अपर मुस्तांग से सीमा पार खाम है। खाम में विद्रोह फरवरी 1956 में शुरू हुआ, और कम से कम तिब्बत में 1962 तक चला। अगस्त 1974 में अंतिम प्रतिरोध नेता वांगडू ग्यातोत्सांग को घात लगाकर मार दिया गया। अंततः नेपाल सरकार ने चीनी सहयोग से मुस्तांग स्थित गुरिल्ला बेस को बंद कर दिया। वास्तव में कोई नहीं जानता कि इस पूरे संघर्ष में कितने लोग मारे गए। एक अनुमान के अनुसार, तिब्बती पक्ष में कम से कम पांच लाख लोग मारे गए।

दलाई लामा 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित हुए। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीकों से तिब्बती स्वायत्तता की अथक वकालत की है। फिर भी, जब वे अपने दसवें दशक में प्रवेश कर रहे हैं, तो सवाल उठता है: उनके बाद क्या होगा?

1935 का ‘लामा मठ प्रबंधन अध्यादेश’

13वें दलाई लामा के निधन के बाद, 1935 में, ‘लामा मठ प्रबंधन अध्यादेश’ केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया था। मंगोलियन और तिब्बती मामलों के आयोग द्वारा 1936 में, लामाओं के पुनर्जन्म की विधि प्रकाशित की गई थी। अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि दलाई लामा और पंचेन लामा सहित लामाओं की मृत्यु की सूचना आयोग को दी जानी चाहिए, जिस बच्चे में आत्मा के पुनर्जन्म की संभावना हो, उसे आयोग द्वारा खोजा, और जांचा जाना चाहिए, और स्वर्ण कलश प्रणाली के साथ एक लॉटरी-ड्राइंग समारोह आयोजित किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 7 में कहा गया है कि वर्तमान लामा परिवारों से चुने गये अवतार बालक के बदले कोई मांग नहीं की जानी चाहिए। अर्थात, जो भी दलाई लामा बने, उसका परिवार लाभ के पद से दूर रहे। सवाल है, जो मानक तय किये गए थे, क्या उसका पालन 14 वें दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो ने किया है? और 15 वें दलाई लामा की खोज के वास्ते, 1935 में स्थापित जो पैरामीटर थे, उसका पालन क्या होगा?

निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री!

दलाई लामा के सोलह भाई-बहन हुए जिनमें से केवल सात ही वयस्कता तक जीवित रहे। उनकी सबसे बड़ी बहन, त्सेरिंग डोलमा और उनके भाई थुबटेन जिग्मे नोरबू, दोनों ही उनसे उम्र में काफी बड़े थे। उनके अन्य भाई-बहनों में ग्यालो थोंडुप, लोबसंग समतेन, जेट्सन पेमा और तेंदज़िन चोएग्याल (16वें नगारी रिनपोछे के रूप में) शामिल हैं। उनके दो भाइयों और उनकी सबसे छोटी बहन को पुनर्जन्म वाले लामा के रूप में मान्यता दी गई है। दलाई लामा के दूसरे बड़े भाई ग्यालो थोंडुप तिब्बती मामलों के वास्तविक रणनीतिकार थे। अपने भाइयों के विपरीत, उन्हें धार्मिक जीवन के लिए तैयार नहीं किया गया, इसके बजाय उन्हें शिक्षा के लिए विदेश भेजा गया था। तिब्बत के पतन के बाद, वे 1952 में भारत में बस गए, और तिब्बती निर्वासित समुदाय, सीआईए और भारत सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क बन गए। ग्यालो थोंडुप ने 1959 में अपने भाई दलाई लामा के भारत भागने के वास्ते समन्वय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साल 1956 और 1974 के बीच, ग्यालो थोंडुप ने तिब्बती खम्पा गुरिल्ला तैयार करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को कोऑर्डिनेट किया था। उन्होंने 1959, 1960 और 1961 में संयुक्त राष्ट्र में तिब्बत का प्रतिनिधित्व भी किया। उनके प्रयासों से तिब्बत में चीनी कार्रवाइयों की निंदा करने और तिब्बती स्वायत्तता की वकालत करने वाले तीन प्रस्ताव (1959, 1961 और 1965) पारित हुए। 1979 में, ग्यालो थोंडुप ने चीनी नेताओं के साथ बातचीत शुरू की। उन्होंने चीनी राजनेता तंग श्याओ फिंग से मुलाकात की, जिन्होंने कहा कि ‘स्वतंत्रता को छोड़कर, हर चीज पर बातचीत की जा सकती है।’ इससे तिब्बती प्रतिनिधियों और चीन के बीच वार्ता शुरू हुई, जो 2010 में वार्ता बंद होने तक जारी रही। ग्यालो थोंडुप ने 1991 से 1993 तक निर्वासित तिब्बती सरकार में प्रधानमंत्री के रूप में, और बाद में 1993 से 1996 तक सुरक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। साल 2015 में प्रकाशित उनके संस्मरण, ‘द नूडल मेकर ऑफ़ कलिम्पोंग’ में तिब्बती प्रतिरोध में उनकी भागीदारी और अमेरिका के साथ उनके जटिल संबंधों का विस्तार से वर्णन किया गया है। बीती 8 फ़रवरी 2025 को कलिम्पोंग में 97 साल की उम्र में ग्यालो थोंडुप का देहावसान हो गया।                                      -लेखक विदेश मामलों के जानकार पत्रकार हैं।

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