फिल्मों में डराने के साथ गुदगुदाने का भी कारोबार
फिल्मों के लिए हर वो विषय बिकाऊ होता है, जो दर्शकों को आकर्षित करे। कॉमेडी, प्रेम कहानी जैसे चर्चित विषयों के अलावा डर भी ऐसा ही विषय है, जो हमेशा पसंद किया गया। ब्लैक एंड व्हाइट के दौर से आज तक भूत-प्रेत और आत्मा को केंद्रीय पात्र बनाकर फ़िल्में बनाई जाती रही हैं। नए दौर की ऐसी फिल्मों में हॉरर के साथ कॉमेडी का मसाला भी जोड़ा गया। ‘स्त्री’ और ‘भूल भुलैया’ की सफलता में यही सब है। ‘मुंजिया’ भी ऐसी ही फिल्म थी। 2024 में यही तीन फ़िल्में सबसे ज्यादा सफल रही। सिर्फ दर्शकों को डराना ही फ़िल्मकार का मकसद नहीं, गुदगुदाना भी जरूरी है।
हेमंत पाल
समाज में जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म, आत्मा और भूत को लेकर भी लोगों में भरोसा काफी गहरा है। इन्हें लेकर किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। जो लोग इन पर भरोसा नहीं करते, वे भी इन्हें एकदम नहीं नकारते। वहीं आज भी यह विषय विवाद में है कि क्या भूत-प्रेत होते हैं या फिर सिर्फ भ्रम है। इन्हीं भूतों और प्रेत आत्माओं का प्रभाव फिल्मों में भी आया। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने से भूत, प्रेत के किस्से दिखाए जाते रहे हैं। आज फिल्म निर्माण की तकनीकी आधुनिक हो गई, पर हमारी फ़िल्में उससे मुक्त नहीं हुई। फर्क इतना आया कि इसमें मनोरंजन का तड़का नए अंदाज में लगने लगा। भूतों की कहानी को कभी कॉमेडी की तरह फिल्माया जाता, कभी बदले की भावना से जोड़ा जाता! कुछ कहानियों में इसमें एक जन्म से दूसरे जन्म तक प्रेम कहानी को गूंथा गया। ऐसी कहानियां कभी पुरानी नहीं पड़ी।
भूतिया कथानक की शुरुआत
फिल्मों में सबसे पहले इस तरह का कथानक 1949 में कमाल अमरोही ‘महल’ से लाए थे। अशोक कुमार और मधुबाला की इस फिल्म में नायिका भटकती आत्मा थी। लेकिन, क्लाइमेक्स में पता चलता है कि वो कोई आत्मा नहीं, वास्तव में महिला ही थी। इसके बाद 1962 में आई ‘बीस साल बाद’, 1964 में आई ‘वो कौन थी’ और 1965 की ‘भूत बंगला’ में भी ऐसी ही डरावनी कहानियां थीं। खास बात यह कि ऐसी अधिकांश फिल्मों में भूत या भटकती आत्मा को असफल प्यार या बदले की भावना से जोड़ा जाता रहा। फिल्मों में भूतों की भूमिका दो तरह से दिखाई जाती रही है। एक बदला लेने वाला और दूसरा मदद करने वाले भूत! 80 और 90 के दशक में ‘रामसे ब्रदर्स’ ने जो फ़िल्में बनाई, वो डरावनी शक्ल और खून में सने चेहरों वाले खूनी भूतों पर केंद्रित रही। बाद में इन भूतों का अंत त्रिशूल या क्रॉस से दिखाया गया। इस बीच मल्टीस्टारर फिल्म ‘जॉनी दुश्मन’ आई, जिसमें संजीव कुमार ऐसे भूत बने थे, जो दुल्हन का लाल जोड़ा देखकर खतरनाक भूत में बदल जाते हैं। 2007 में प्रियदर्शन ने भी ‘भूल भुलैया’ में आत्मा को दिखाया।
इन फिल्मों के भूत सबके मददगार
फिल्मों के भूत सबका नुकसान ही करें, यह जरूरी नहीं। फ़िल्मी कथानकों में ऐसे भी भूत आए, जो सबकी मदद करते हैं। भूतनाथ, भूतनाथ रिटर्न और ‘अरमान’ में अमिताभ बच्चन ने ऐसे ही अच्छे भूत का किरदार निभाया, जो मददगार होते हैं। ‘हैल्लो ब्रदर’ में भूत बने सलमान खान अरबाज़ खान के शरीर में आकर मदद करते थे। ‘चमत्कार’ में नसीरुद्दीन शाह बदला लेने के लिए शाहरुख़ खान की मदद करता है। ‘भूत अंकल’ में जैकी श्रॉफ और ‘वाह लाइफ हो तो ऐसी’ में शाहिद कपूर को यमराज बने संजय दत्त की मदद से भला करते दिखाया गया। ‘टार्ज़न द वंडर कार’ में भी कुछ ऐसी ही कहानी थी।
कई फिल्मकारों ने ‘भूत’ को उतारा पर्दे पर
विक्रम भट्ट जैसे बड़े फिल्मकार भी ऐसी फिल्म बनाने के मोह से बच नहीं सके! उन्होंने ‘राज़’ की सफलता के बाद तो इसके कई सीक्वल बना डाले। भट्ट ने 1920, 1920-ईविल रिटर्न, शापित और हॉन्टेड में आत्माओं के दीदार करवाए! 2003 में अनुराग बासु जैसे निर्देशक ने भी ‘साया’ जैसी फिल्म बनाई। रामगोपाल वर्मा जैसे प्रयोगधर्मी निर्देशक ने तो ‘भूत’ टाइटल से ही फिल्म बना दी। इसके बाद फूंक, फूंक-2, डरना मना है, डरना ज़रूरी है, वास्तुशास्त्र, भूत रिटर्न में भी हाथ आजमाए। अनुष्का शर्मा जैसी नए जमाने की एक्ट्रेस ने ‘फिल्लौरी’ में न सिर्फ भूत का किरदार निभाया बल्कि निर्माता भी वे खुद थी।
डरावनी फिल्में जो हिट रहीं
1991 में आई माधुरी दीक्षित और जैकी श्रॉफ की फिल्म ‘100 डेज़’.आई थी। पूरी फिल्म में सस्पेंस बने होने से फिल्म ने क्लाइमैक्स तक दर्शकों को बांधकर रखा। फिल्म हिट रही थी। 2008 में आई फ़िल्म ‘फूंक’ डरावनी थी। इस फिल्म के बारे में निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने कहा था कि अगर कोई बिना डरे अकेले इस फ़िल्म को थियेटर में देख लेगा, तो वे उसे 5 लाख का इनाम देंगे। रामगोपाल वर्मा ने फिल्म इंडस्ट्री को कई चर्चित हॉरर फिल्म दी। इनमें एक फिल्म ‘रात’ भी है। इस फिल्म में मुख्य किरदार रेवती थी। 1992 में आई इस फिल्म में डर ही डर अंत तक था। ‘डरना मना है’ भी रामगोपाल वर्मा की ही फिल्म थी। सुष्मिता सेन और जेडी चक्रवर्ती अभिनीत फिल्म ‘वास्तु शास्त्र’ (2004) आई। रामगोपाल वर्मा की इस फिल्म में एक पेड़ पर रहने वाली बुरी आत्माएं जो पास के घर के लोगों को परेशान करती हैं, किरदार उनसे कैसे सामना करते हैं, ये दिखाया गया। विक्रम भट्ट और अरुण रंगाचारी ने 2011 में एक फिल्म ‘हॉन्टेड 3डी’ बनाई। इसमें 3डी टेक्निक का भी उपयोग किया था। भूत-प्रेत का भयानक रूप फिल्म ‘1920’ में बखूबी दिखाया।
पौराणिक कहानी का जिक्र
देखा गया है कि ऐसी ज्यादातर फिल्मों के कथानक में किसी पौराणिक कहानी का जिक्र करके भूत या प्रेत को जोड़ा जाता है। राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म ‘स्त्री’ और उसके बाद आई ‘स्त्री-2’ भी पौराणिक कथाओं पर आधारित है। एक गांव में चुड़ैल रातों में घूमती हैं और किसी भी मर्द को अकेला पाकर उठा ले जाती है। लोग अपने घर के बाहर ‘नाले बा’ लिख देते थे, जिसका मतलब होता है ‘कल आना।’ इस फिल्म का सीक्वल स्त्री-2 नाम से बना और 2024 में आई इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई का रिकॉर्ड ही बना दिया। इसी तरह अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘परी’ भी काफी डरावनी फिल्म है। इसमें उन्होंने खुद एक ‘इरफ़ित’ का किरदार निभाया, जिसका नाम रुख़साना होता है। ये फिल्म भी पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाई थी।
इन फिल्मों ने भी खूब डराया
बिपाशा बसु और डीनो मोरिया की फिल्म ‘राज’ भी अपने दौर की डरावनी फिल्मों में से एक है। आज के समय भी इसकी गिनती बेस्ट हॉरर फिल्मों में की जाती है। फ़िल्म में एक लड़की की भूतिया कहानी है, जो मरने के बाद प्रेत-आत्मा बन जाती है। वहीं अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस में बनी ऐसी फ़िल्म ‘बुलबुल’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया। ये बंगाल के एक गांव की कहानी है, जो 19वीं सदी में बंगाल प्रेज़िडेंसी के बैकग्राउंड पर बनी है। ये फिल्म चुड़ैलों पर एक नई कहानी कहती है। इस फिल्म को भी पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाया गया। फ़िल्म में तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी और राहुल बोस हैं। इमरान हाशमी की फिल्म ‘एक थी डायन’ ने भी दर्शकों को खूब डराया। इस फिल्म की कहानी एक जादूगर पर आधारित है, जो एक डायन से प्रेत बाधित होता है। इस फिल्म की कहानी भी पौराणिक कथाओं के आधार पर थी।