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फिर रिटर्न-टू-ऑफिस का चलन

कोविड 19 के कुछ साल बाद अब फिर कंपनियों के ऑफिसों में रिटर्न-टू-ऑफिस का ट्रेंड लौट आया है। कहीं-कहीं सप्ताह में पांच दिन ऑफिस बुलाया जाने लगा है। शायद वर्क फ्रॉम होम का मॉडल टीम सहयोग, नवाचार और कंपनी संस्कृति...
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कोविड 19 के कुछ साल बाद अब फिर कंपनियों के ऑफिसों में रिटर्न-टू-ऑफिस का ट्रेंड लौट आया है। कहीं-कहीं सप्ताह में पांच दिन ऑफिस बुलाया जाने लगा है। शायद वर्क फ्रॉम होम का मॉडल टीम सहयोग, नवाचार और कंपनी संस्कृति के पैमाने पर खरा नहीं उतरा। वहीं इस बदलाव पर कर्मचारियों की अलग-अलग प्रतिक्रिया है।

कोरोना महामारी के दौरान कारपोरेट जगत में ज्यादातर कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम करने लगे थे। लेकिन पिछले दो सालों में अब तेजी से रिटर्न-टू-ऑफिस का ट्रेंड चल पड़ा है। लगभग तीन साल चले वर्क फ्रॉम होम के बाद हाइब्रिड और फिर आंशिक रूप से फुल ऑफिस और अब ज्यादातर ऑफिसों में पूरी क्षमता के साथ भी रिटर्न-टू-ऑफिस का ट्रेंड लौट आया है, भारत भी इससे अछूता नहीं है। वर्क फ्रॉम होम (डब्ल्यूएफएच) से रिटर्न-टू-ऑफिस (आरटीओ) की यह तस्वीर विभिन्न देशों में अलग-अलग है। अमेरिका में गूगल, अमेजन, जेपी मॉर्गन और गोल्डमैन सॉक्स तक जैसी कंपनियों में अब हफ्ते में तीन दिन आना जरूरी हो गया है। ऑस्ट्रेलिया में 39 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने हफ्ते में पांच दिन ऑफिस आना अनिवार्य कर दिया है।

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अब फिर दफ्तर से काम

भारत में आईटी और टेक सेक्टर में धीरे-धीरे हफ्ते में तीन दिन ऑफिस शुरु हुआ है। टीसीएस, इनफोसिस, विप्रो जैसी कंपनियों में कहीं-कहीं पांच दिन भी बुलाया जाने लगा है। इनफोसिस ने अपनी ज्यादातर टीमों के लिए हफ्ते में पांच दिन का ऑफिस कर दिया है, जबकि बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों में यह महामारी के बाद से ही फुलटाइम ऑफिस बना हुआ है। एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसी बैंक, एक्सेस बैंक ने तो कोरोना महामारी के तुरंत बाद से कर्मचारियों के लिए फुलटाइम ऑफिस जरूरी कर दिया है। हालांकि कुछ स्टार्टअप्स और ई-कॉमर्स जैसे फ्लिपकार्ट, जोमेटो आदि कंपनियों ने कोरोना के बाद हाइब्रिड मॉडल अपनाया है। लेकिन सीनियर मैनजमेंट की मौजूदगी यहां भी जरूरी हो गई है।

खरा नहीं उतरा लचीला वर्क मॉडल

कोरोना महामारी ने जो वर्क फ्रॉम होम का लचीला वर्क मॉडल दिया था, वह टीम सहयोग, नवाचार और कंपनी संस्कृति के पैमाने पर खरा नहीं उतरा। माना जा रहा है कि वर्चुअल मीटिंग से इन पैमानों पर बॉडिंग कल्चर नहीं पनपती। नये कर्मचारियों के प्रशिक्षण और ऑन बॉडिंग में दूरी भी एक बाधा है। वहीं सबसे बड़ी वजह प्रोडक्टिविटी और इनोवेशन है। आमने सामने काम करने से स्पोनटैनियस, ब्रेन स्टोर्मिंग और तेज फैसले लेना आसान होता है। यही नहीं लंबे वर्क फ्रॉम होम अवधि से ऑफिस के साथ कर्मचारियों का जुड़ाव घटता है। यही नहीं कई क्लाइंट ऑन साइट टीम और फिजिकल वर्क शॉप की शर्त रखते हैं।

ऑफिस स्पेस का सदुपयोग

लीज़ पर लिये गये ऑफिस स्पेस का बेहतर उपयोग और शहरी व्यापार के पुनरुत्थान का जो कमर्शियल और आर्थिक दबाव है, उसके कारण भी अब वर्क फ्रॉम होम वर्क कल्चर से ज्यादातर कंपनियां दूरी बना रही हैं। साल 2025 की दूसरी तिमाही में भारत के कारपोरेट जगत में आरटीओ को लेकर जो स्थितियां देखी गईं, उनमें आईटी और सॉफ्टवेयर कंपनियों ने दो से तीन दिन ऑफिस में उपस्थिति अनिवार्य कर दी है। बैंकिंग, फाइनेंस आदि में तो फुलटाइम ऑफिस अनिवार्यता है। हां, ई-कॉमर्स क्षेत्र में लीडरशिप का दफ्तर में होना और बाकी कर्मचारियों का वर्क फ्रॉम होम अभी चल रहा है। लेकिन मीडिया/कंसल्टिंग ऑफिसेज में हफ्ते में तीन से चार दिन ऑफिस आना जरूरी है क्योंकि ये क्लाइंट ड्रिवन क्षेत्र हैं।

कर्मचारियों की प्रतिक्रिया

सवाल है कि इन सबमें कर्मचारियों की क्या प्रतिक्रिया है? बहुत से कर्मचारी दोबारा से ऑफिस पहुंचकर खुश हैं। उनके मुताबिक रोज ऑफिस आना कैरियर और प्रमोशन के लिहाज से अच्छी बात है। कैरियर ग्रोथ और सामाजिक इटरेक्शन भी होता है। हालांकि एक बड़ी तादाद ऐसे कर्मचारियों की भी है, जो कहते हैं ट्रैफिक, दफ्तर तक पहुंचने का लंबा सफर और वर्क लाइफ बैलेंस रोज 9 से 6 ऑफिस आने पर पूरी तरह से अंसतुलित हो जाते हैं। ये कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम के पक्ष में हैं। हालांकि अब ज्यादातर समय ऑफिस में काम करना पड़ेगा।

हाइब्रिड मॉडल कारपोरेट दुनिया का स्थायी वर्क कल्चर भी बन सकता है, जिसमें हफ्ते में कम से कम दो से तीन दिन ऑफिस आना जरूरी हो जायेगा और बाकी दिनों में ज्यादा घंटे घर में काम करके बताना होगा व कंपनियां दूर की तकनीक के बदौलत अपने वर्क फ्रॉम होम कर्मचारियों पर कैमरे से नजर रखेंगी।                          -इ.रि.से.

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