छिपकलियों की घटती संख्या पर्यावरण में असंतुलन पैदा कर रही है, जो कीट नियंत्रण, पारिस्थितिकी और जैव विविधता के लिए गंभीर चुनौती है।
हाल के दशकों में जिस व्यापक ढंग से पूरी दुनिया में छिपकलियों को व्यवस्थित ढंग से मारा गया है, उस कारण दुनिया में 6000 छिपकलियों की प्रजाति में बहुत बड़ी संख्या कम हो गई है। भारत में हाउस गीको यानी गृहिणी छिपकली बहुत आम है। पिछले एक दशक से महानगरों की डिजिटल लाइफस्टाइल में डिजिटल छिपकलियां तो खूब देखने को मिलेंगी, मगर घर में किसी तरह की कोई जीवित छिपकली ढूंढ़े से भी नहीं मिलेगी।
दुनिया में रहन-सहन की जो नई कला आयी है, उसमें कीड़ों, मकोड़ों, छिपकलियांे और इसी तरह के अनेक छोटे-बड़े जीवों के लिए कोई जगह नहीं है। हम कुदरत की सबसे बड़ी सच्चाई को अपनी नफासत भरी रहन-सहन के लिए भूल जाते हैं। भूल जाते हैं कि इस धरती में एक भी जीव चाहे वो छोटा हो, उन सबकी अपनी एक उपयोगिता है। अगर छिपकलियां नहीं होंगी, तो हमारे वातावरण में मक्खियों, मच्छरों, दीमक, तिलचट्टों, पतंगों आदि की बाढ़ आ जायेगी और अगर आधुनिक तौर-तरीकों से इनको रोक भी लिया गया, तो छिपकलियां अपनी मौजूदगी से धरती में जो अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं, वो निर्माण कौन करेगा?
छिपकलियां सिर्फ घर के परेशान करने वाले कीड़े-मकोड़ों को ही नहीं खातीं बल्कि वह खुद भी कई पक्षियों, सांपों और दूसरे स्तनधारियों व शिकारी जीवों का भोजन हैं। इससे न केवल कीड़े-मकोड़ाें की भरमार होने का खतरा कम होता है बल्कि कई दूसरे लाभ भी मिलते हैं। छिपकलियां नहीं होंगी तो उन पक्षियों और शिकारी जीवों, विशेषकर सांपों का जीवन भी बहुत प्रभावित होगा। हम शायद एक बात नहीं जानते कि छिपकलियां पर्यावरण में बदलाव पर सबसे पहले प्रतिक्रिया देती हैं यानी मनुष्य पर पर्यावरण का दुष्प्रभाव पड़ने से पहले उस दुष्प्रभाव को जान लेती हैं। अगर छिपकलियां नहीं होंगी तो हमें हमारे पर्यावरण में तेजी से होने वाले बदलावों का पता नहीं चलेगा, क्यांेकि छिपकली हमें इस तरह के बदलावों के प्रति हमें आगाह कौन करेगा? छिपकलियां प्राकृतिक जैव सूचक हैं। अगर तापमान में वृृद्धि हो या प्रदूषण में वृद्धि होती है, तो छिपकलियां सबसे पहले इनके प्रति अपना व्यवहार और प्रतिक्रिया दर्ज कराती हैं। इसलिए वैज्ञानिक छिपकलियों को पर्यावरणीय संकेतक कहते हैं। दुनिया में एक से एक छिपकलियों के प्रकार हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में छिपकलियों की कई प्रजातियां हैं, जो फल खाती हैं और फल खाकर उनके बीजों के प्रसार करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं।
छिपकलियों की इन्हीं पारिस्थितिकीय महत्ता को देखते हुए अमेरिका में एक पर्यावरण विशेषज्ञों और पारिस्थितिकी विशेषज्ञों के समूह ने मिलकर साल 2000 के दशक में छिपकलियों को बचाने के लिए 14 अगस्त को सोशल मीडिया व कुछ शैक्षिक संस्थाओं के प्रयासों से अभियान छेड़ा। दुनिया भर के पर्यावरण संरक्षणकर्ता और जीव जंतु शोधकर्ता छिपकलियों की घटती संख्या और बिगड़ते पर्यावरण के मद्देनज़र उन्हें बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय छिपकली दिवस मनाते हैं। इस दिवस का उद्देश्य छिपकलियों के लिए संवेदनशील आवास सुनिश्चित करना, उनकी विविधता और पारिस्थितिक महत्व को उजागर कर अधिक लोगों को इनके प्रति जागरूक बनाना तथा संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना है।
इस दिवस को मनाने के लिए स्कूलों, चिड़ियाघरों और दूसरे जैविक संस्थानों में मौजूद छिपकलियों के बारे मंे लोगों को संवेदनशील तरीके से जानकारियां मुहैया करायी जाती हैं। इस दिन प्रकृति प्रेमी लोग जंगलों मंे जाकर छिपकलियों का अवलोकन करते हैं तथा सोशल मीडिया मंे छिपकलियों के बारे मंे हर वह जरूरी जानकारी मुहैया कराने की कोशिश करते हैं, जिससे लोग यह जान सकें कि दुनिया के लिए इनका कितना महत्व है? पेड़ों की कटाई रोकना, कीटनाशकों का कम प्रयोग करना और जैव विविधता को संरक्षित करना भी इस दिन अंतर्राष्ट्रीय छिपकली दिवस मनाने का तरीका है। अगर पारिस्थितिकी तंत्र से छिपकलियां गायब हो गई तो एक डोमिनोज इफेक्ट शुरू हो सकता है, जिससे कई प्रजातियां प्रभावित होंगी। अगर छिपकलियां नहीं होंगी, तो आज के मुकाबले दुनिया में कई गुना ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ेगा और तब हमारी खाद्य वस्तुएं आज के मुकाबले कहीं ज्यादा जहरीली हो चुकी होंगी। इ.रि.सें.