Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

दुनिया चाय की दीवानी कोई दूध मिलाए या पानी

बनाने के तरीके हर जगह अलग-अलग हैं लेकिन पूरी दुनिया चाय की दीवानी है। हमारे देश में शौकीन असंख्य हैं तो विधियां भी ढेरों। इनमें दूध, अदरक-इलायची वाली मसाला चाय प्रमुख है जिसे टेस्ट एटलस ने विश्व का दूसरा सबसे...

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

बनाने के तरीके हर जगह अलग-अलग हैं लेकिन पूरी दुनिया चाय की दीवानी है। हमारे देश में शौकीन असंख्य हैं तो विधियां भी ढेरों। इनमें दूध, अदरक-इलायची वाली मसाला चाय प्रमुख है जिसे टेस्ट एटलस ने विश्व का दूसरा सबसे मशहूर नॉन-अल्कोहलिक पेय घोषित किया। बेशक शोध सेहत के प्रति इसके लाभ-हानियां गिनायें लेकिन लोग इसे जुकाम में हितकारी मानते हैं। यह भी कि यहां चाय का प्रचार-प्रसार अंग्रेजों ने किया।

डॉ. संजय वर्मा

लेखक एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

सरकारी उपक्रम और राजनीतिक पराक्रम की नजर से देखें, तो परीक्षा पर चर्चा से पहले देश में एक दौर चाय पर चर्चा का चला था। हालांकि चाय उससे काफी पहले देश के जनमानस पर छा चुकी थी, लेकिन जब एक राजनीतिक दल ने इसे चुनावी अखाड़े का हथियार बनाकर इस्तेमाल किया, तो चाय के प्याले में ऐसा उफान उठा कि प्रधानमंत्री तक ने यह दावा किया कि बचपन के दिनों में वह खुद चाय बेचा करते थे। असल में, चाय की यही खूबी है। चूल्हे, अंगीठी, गैस स्टोव पर घंटों खौलने से लेकर गरम पानी में चंद सेकंड तक डिप-डिपाकर चाहे जैसे वह बने, अपनी तबीयत के हिसाब से उसका हर रंग किसी न किसी को अपना मुरीद बना ही लेता है। सिर्फ सुबह-शाम ही नहीं, चौबीसों घंटे, रात, दोपहर, किसी भी पहर में अपने शौकीनों को इस चाय की हर चुस्की ऐसी तसल्ली देती है कि उसका कोई तोड़ नहीं मिलता। और इधर तो जब से खबर मिली है कि दुनिया के सबसे शानदार पेयों की लिस्ट में चाय महारानी दूसरे नंबर पर आ विराजी हैं, तो चाय की चुस्कियों का स्वाद कुछ और ही निखर गया है।

Advertisement

सूची में दुनियाभर के शानदार ड्रिंक्स

यूं खबर यह है कि टेस्ट एटलस ने वर्ष 2023 में सबसे शानदार ड्रिंक्स की जो सूची बड़ी मशक्कत के बाद तैयार की, उसमें मसाला चाय को दुनिया का दूसरा सबसे मशहूर नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक घोषित किया गया। पहले नंबर का ताज मैक्सिको के एगुअस फ्रेस्कस को पहनाया गया जो फलों, खारे, फूलों, बीजों और दालों को शक्कर व पानी के मिलाकर तैयार किया जाता है। पता नहीं, हमारी ठंढाई को लोग क्यों भूल गए। बहरहाल, लोकप्रिय भोजन और भ्रमण को संबोधित यह ट्रैवल गाइड- टेस्ट एटलस हर साल पूरी दुनिया के पारंपरिक खानों, स्थानीय मसालों और प्रामाणिक रेस्तरांओं की सूची तैयार करती है। इस सूची में 2023 के नॉन-अल्कोहलिक ड्रिंक्स के विजेताओं में भारत की मलाईदार लस्सी ने भी गजब ढाया है। इस एटलस में लिखा गया है कि दही और शक्कर के मेल से बनने वाली लस्सी कमाल का पेय है, जिसे पीने के बाद शरीर में काफी ठंडक महसूस होती है।

Advertisement

मसाला चाय के कमाल

अब लौटते हैं उस चाय पर, जो टेस्ट एटलस के वाकये से पहले भी हमारे मानस पर छाई हुई है। टेस्ट एटलस ने हमारी चायों की बेशुमार किस्मों में से जिस मसाला चाय को चुना है, शायद उसकी यह खूबी उसे भायी होगी कि लौंग, काली मिर्च, इलायची और अदरक को कूटकर और काफी देर खौलाने के बाद उसे जिस तरबीयत के साथ परोसा जाता है, उसमें वह सिर्फ चाय नहीं रह जाती बल्कि अमृत हो जाती है। खास तौर से सर्दियों में जुकाम के कारण बंद नाक और गले की खराश झेलने वालों को यह मसाला चाय मिल जाती है तो मानो वे नई जिंदगी पा जाते हैं। यह मसाला चाय उस जुकाम का तोड़ साबित होती है, जिसके बारे में कभी मशहूर लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह ने एक शायर के हवाले से लिखा था- अल्लाह, दे लाख-लाख फ्रिक़, दे लाख-लाख काम। पर न दे कभी ये नामुराद जुकाम।।

ये रिश्ता क्या कहलाता है

अब बताइए कि जो चाय इतनी करामाती है, उस चाय के बारे में हालिया चीनी शोधों में बड़ा ही झन्नाटेदार दावा किया गया है कि ये जो हमारे पड़ोसी (इशारा हमारी तरफ ही लगता है जनाब) चाय में दूध डालकर पीते हैं, वे असल में सिर्फ चाय ही नहीं, बल्कि खुद की सेहत को भी बर्बाद कर देते हैं। वे कहते हैं दूध वाली चाय तो लोगों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी पैदा करती है। इसलिए चीन के लोग चाय में दूध मिलाने के खिलाफ हैं। यूं टेस्ट एटलस ने मसाला चाय की महिमा बताते हुए लिखा है कि चाय में पत्ती, दूध और पानी के अलावा मसालों यानी अदरक, लौंग, इलायची का मिश्रण या अनुपात क्या हो, यह चाय पीने वाले पर निर्भर करता है, लेकिन चाय मसाले को भारत के अंग्रेज़ी शासन की ईजाद माना जा सकता है। यह एटलस लिखती है कि 19वीं सदी में जब पूरी दुनिया में चाय के कारोबार पर चीनी व्यापारी छाए हुए थे, तो उनके एकाधिकार की काट के लिए चाय में डाले जाने वाले मसालों की खोज की। लेकिन यह मसाला चाय उतनी मशहूर नहीं हो सकी। बल्कि उसे चाय के पारंपरिक अनुशासन के खिलाफ माना गया। खुद अंग्रेज़ भी दूध या मसाला चाय के मुकाबले पानी में चाय पत्ती उबाल कर तैयार की गई काली चाय के ज्यादा शौकीन थे, भले ही दूध डालकर चाय के कड़कपन को थोड़ा मंद करने की रवायत के पीछे भी अंग्रेज़ ही नजर आते हैं। मसाला चाय तब भले ही पॉपुलर नहीं हुई, लेकिन 20वीं सदी में जब इंडियन टी एसोसिएशन ने दफ्तरों में बाबुओं और फैक्ट्रियों में मजदूरों को एक राहत के पेय यानी रिफ्रेशमेंट के सस्ते विकल्प के रूप में पेश किया, तो मसाला चाय के किस्से दूर-दूर तक महकने लगे। पंजाब जैसे राज्यों में ये कहावतें भी बनीं कि चाय वही जो दूध ठोक के, पत्ती झोक के बनाई जाए।

सेहत से जुड़ा पहलू

जहां तक चाय और सेहत के रिश्ते का सवाल है तो आधुनिक शोध इसके उलट बातें कहते हैं। इनके मुताबिक काली चाय पीने वालों की उम्र चाय नहीं पीने वालों की तुलना में कुछ ज्यादा होती है। वजह यह है कि काली चाय में ऐसे तत्व होते हैं जो शरीर में जलन और सूजन रोकते हैं। अमेरिकी नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा 14 साल तक किए गए शोध अध्ययन की यह रिपोर्ट अनैल्स ऑफ इंटरनल मेडिसन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। इस शोध में ब्रिटेन के पांच लाख से ज्यादा लोगों की चाय से जुड़ी आदतों के आंकड़े जुटाए गए थे। शोध में शामिल लोगों की उम्र, नस्ल, समुदाय, लिंग, सेहत, सामाजिक-आर्थिक हैसियत, शराब-सिगरेट के सेवन से जुड़े आंकड़ों के विश्लेषण से जो नतीजा निकला, उसके अनुसार रोजाना दो या उससे ज्यादा कप काली चाय पीने वालों की विभिन्न बीमारियों से मौत का खतरा दूसरों के मुकाबले 9 से 13 फीसदी तक कम हो जाता है। शोध में यह भी पाया गया कि काली चाय के तापमान और उसमें दूध मिलाने या नहीं मिलाने से उसके असर में कोई बदलाव नहीं आया। हालांकि कुछ दूसरे अध्ययनों में दावा किया गया कि चाय का कैंसर से होने वाली मौतों में कोई फायदा नजर नहीं आया, लेकिन दिल की बीमारियों में चाय को असरदार पाया गया।

दूध लाएं, चाय ले जाएं

मगर चाय बनते-बनते बनी है। अभिप्राय यह है कि आज दुनिया में पानी के बाद सबसे ज्यादा पिये जाने वाले दूसरे नंबर के नॉन-अल्कोहलिक पेय की लत सौ साल पहले आज जैसी नहीं थी। साल 1910 में भारत में चाय का बाजार मात्र 82 लाख किलोग्राम था

जो तमाम प्रचार के बावजूद 1920 में दो करोड़ 30 लाख किलोग्राम तक ही पहुंच पाई थी। चाय के पक्ष में प्रचार कितना धुआंधार था, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आजादी से पहले भारत में ब्रुक बॉन्ड चाय की तरफ से गाड़ियां शहरों में घूमती थीं और लाउड स्पीकर लगाकर लोगों से कहा जाता था कि आप सिर्फ दूध लेकर आएं, चाय हम आपको बनाकर देंगे। काश, ये आइडिया आज किसी स्टार्टअप को सूझ जाए तो चाय पीने वालों के उसके रेस्तरां या ठेले पर रेले ही लग जाएं। लेकिन उस पुराने जमाने में चाय की मांग कमजोर ही रही। वजह थी महात्मा गांधी से लेकर तमाम राष्ट्रवादी नेताओं की ओर से किया गया चाय के प्रति उग्र विरोध। गांधी जी तो चाय को सेहत का दुश्मन बताते थे। लेकिन शायद इसकी वजह दूसरी थी। वह मुख्य रूप से चाय बागानों के मजदूरों के शोषण और उनकी दुर्दशा के प्रति ध्यान खींचना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने चाय को तमाम लानतें भेजी हैं। कुछ मर्तबा तो देश की अर्थव्यवस्था को चाय पीने वालों की वजह से खतरा हो जाता है, तो आह्वान किया जाता है कि बेहतर होगा कि चाय नहीं पी जाए। जैसे वर्ष 2022 में पाकिस्तानी नेताओं ने अपनी जनता से कम चाय पीने की गुजारिश की थी ताकि चाय के आयात पर बढ़ते खर्च का मुकाबला किया जा सके।

बहरहाल, हाल में जिस मसाला चाय को दूसरे सबसे सर्वश्रेष्ठ पेय का तमगा मिला है, उसके बारे में एक दिलचस्प जानकारी यह है कि अमेरिका और यूरोप के कॉफी हाउस और रेस्तरां ‘टी’ से अलग मसाला चाय बेचते हैं। सच कहें तो पूरी दुनिया में जो तीन हजार से ज्यादा किस्मों की चाय प्रचलित हैं, उनमें से कुछ को ही ज्यादा शोहरत भले ही मिली हो। लेकिन जिस तरह जापान में ग्रीन टी बनाने और पीने को लेकर एक समारोह ‘अ वे ऑफ टी’ मनाया जाता है, उसी तरह दुनिया के हर घर में चाय किसी महोत्सव की तरह ही परोसी और पी जाती है।

-सभी चित्र लेखक

Advertisement
×