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समाज की सामूहिक चेतना का स्वर

लोकगीत
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लोकगीत किसी समाज की आत्मा होते हैं, जो उसकी परंपरा, भावनाओं और जीवन शैली को सरल भाषा और लय में अभिव्यक्त करते हैं। ये गीत पीढ़ी दर पीढ़ी स्मृति में बसकर संस्कृति को जीवित रखते हैं। लोकगीतों में मिट्टी की महक और सामूहिकता की गूंज छिपी होती है।

साहित्य में लोकगीत का बहुत अहम मुकाम होता है। यह साहित्य की उस धारा का हिस्सा होता है, जिसे हम लोक संस्कृति की आत्मा कहते हैं। यह किसी समाज को सबसे सहज, मौलिक और सामूहिक रूप से व्यक्त करता है।

लिखित साहित्य से पहले की परंपरा

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वास्तव में लोकगीत की परंपरा लिखित साहित्य से पहले की परंपरा है, इसलिए लोकगीत में सब कुछ तय नहीं होता। एक ही लोकगीत, एक ही इलाके में गाते हुए लोग अलग अलग शब्दों, अलग अलग संवेदनाओं के आयाम छूते हैं। लोकगीत आमतौर पर किसी समाज की सामूहिक भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इनमें इतिहास, ऋतुएं, पर्व, सामाजिक घटनाएं होती हैं, जो लगातार जुड़ते शब्दों के गीतों में पिरोकर पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांरित होते हैं। लोकगीत किसी समाज की सामूहिक भावनाएं होते हैं, इस वजह से दुनियाभर के लोकगीतों की अगर भाषा एक कर दी जाए तो हम पाएंगे कि दुनिया के हर कोने के लोकगीत लगभग एक जैसे होते हैं। मनुष्य की आंतरिक संवेदनाएं एक जैसी ही होती हैं, चाहे वह धरती के किसी भी छोर में रहते हों। थोड़े शब्द अलग होते हैं, शब्दों के व्यक्त करने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन दुनियाभर की लोकचेतना एक जैसी होती है।

समाज की सामूहिक पूंजी

लोकगीतों की यही लोकचेतना चुबंक की तरह लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। क्योंकि लोकगीतों के गाने गुनगुनाने में किसी तरह का शास्त्रीय बंधन नहीं होता, इसलिए उन्हें हर कोई अपने अपने ढंग से गा, गुनगुना सकता है। लोकगीत किसी विशेष लेखक की रचना भी नहीं होते। ये आज के विकीपीडिया कंटेंट की तरह होते हैं, जिसमें हर कोई अपना योगदान दे सकता है। इसलिए लोकगीत किसी लेखक विशेष की रचना या उनकी पूंजी नहीं होते। ये समाज के सभी लोगांे की सामूहिक पूंजी होते हैं और इनकी रचना में भी पूरे समाज का योगदान होता है। हिंदी साहित्य में तो विशेषकर लोकसाहित्य की श्रेणी में लोकगीत इसके मूल आधार की तरह हैं। सच बात तो यह है कि बाद में व्यापक लिखित साहित्य इसी की बुनियाद पर खड़ा हुआ है।

सरलता से लोकप्रियता

लोकगीत साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा इसलिए होते हैं, क्योंकि इनमें जो सरलता, जो सहजता, लय, भाव-भंगिमा और भाषा होती है, वह ऐसी होती है कि आम से आम व्यक्ति भी उसे समझ सकता है, उन्हें गा सकता है और उसमें अपनी मौजूदगी महसूस कर सकता है। लोकगीत किसी एक व्यक्ति द्वारा अकेले में आमतौर पर नहीं गाये जाते। इसलिए लोकगीतों की कोई विशेष शैली या किसी गायक विशेष की इनमें छाप भी नहीं होती। उन्हें कोई भी गा सकता है। ये अपनी भाषाशैली और रचना प्रक्रिया में अपने साथ सबको जोड़ते हैं।

स्थानीयता की महक

इनमें स्थानीयता की सबसे मुखर गंध होती है। इनका स्वर, इनके शब्द, ये जिस वाद्य में गाये और बजाये जाते हैं, यह सब स्थानीय होते हैं। यहां तक कि लोकगीतों मंे जो भाव-भंगिमाएं प्रदर्शित की जाती हैं, वह एक स्थान विशेष के लोगों की सामूहिक भाव-भंगिमाओं का हिस्सा होती है। इनका जुड़ाव अपने इलाके की मिट्टी, मौसम और बोली से बहुत गहरे तक होता है। इसलिए ये किसी व्यक्ति विशेष की बजाय किसी समूह विशेष या किसी भूगोल विशेष का जीवंत दास्तावेज होते हैं।

शादी-ब्याह, खेती-किसानी, ऋतु परिवर्तन, युद्ध, प्रेम, वियोग यानी जीवन का कोई छोटा या बड़ा पहलू नहीं छुटता, लोकगीत जिन्हें अपने अंदर न समेटे हों। लोकगीतों में सामाजिक जीवन की व्यापक उपस्थिति होती है। हर लोकगीत की अपनी एक संस्कृति होती है या दूसरे शब्दों में लोकगीत हमें यह बताते हैं कि वह किस सांस्कृतिक धारा से जुड़े हुए हैं और वहां के पूर्वज अपना जीवन कैसे जीते थे। लोकगीतों से हमारा इसलिए भी व्यापक लगाव होता है, क्योंकि ये हमारी स्मृति और नॉस्टैलेजिया का हिस्सा होते हैं। दरअसल हम सब लोकगीत सुनकर ही बड़े हुए होते हैं। जब बच्चे पैदा होते हैं तो उनके स्वागत में जो मंगलगीत गाये जाते हैं, वे लोकगीत ही होते हैं। भले शिशुओं को यह सुनना, समझना, संभव न हो, लेकिन लोकगीतों के बोल जो उनके शिशु जीवन में कानों में पड़ते हैं, वे हमेशा हमेशा के लिए उनकी स्थायी स्मृति का हिस्सा हो जाती हैं। गांवों, पारिवारिक मिलन समारोहों और शादी-ब्याह आदि में आज भी खुशियां सामूहिक रूप से लोकगीत गाकर ही मनायी जाती हैं। इसलिए हम हर सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधि में लोकगीतों की संवदेनाओं के जरिये जुड़े होते हैं।

‘मैं’ से ‘हम’ की अनुभूति

लोकगीतों के साथ हमारा भावनात्मक जुड़ाव इसलिए बहुत होता है, क्योंकि ये हमें, हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और इन्हें सुनने के बाद हम अपने आपको उस क्षेत्र विशेष, समाज विशेष का जीवंत हिस्सा मानते हैं। दरअसल, लोकगीत हमारी सामूहिक अनुभूति का हिस्सा हैं। इसलिए किसी लोकगीत का अनुभव ‘मैं’ तक सीमित नहीं रहता बल्कि ये ‘हम’ सबकी साझी अनुभूति का हिस्सा होता है। लोकगीतों की यह खूबी लोगों को अपने पास लाती है। लोकगीतों की लय और उन्हें जिन रागों पर गाया जाता है, वो सब स्थानीय अनुभवों से जन्म लेते हैं, जो हमारे भीतर पहले से ही रचे बसे होेते हैं।

समाज की धड़कती आत्मा

लोकगीत सिर्फ साहित्य या संगीत का एक टुकड़ाभर नहीं होते, ये एक समाज विशेष की धड़कती हुई पूर्ण आत्मा होते हैं। लोकगीत हमारी स्मृति और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का डीएनए है। भविष्य में भी लोकगीत अपने नये रूप रंग में जिंदा रहेंगे।

मिट्टी की खुशबू

हमेशा हर समाज का अपने लोकगीतों के प्रति लगाव व आकर्षण बना रहेगा, क्योंकि कुछ भी हो जाए, लोकगीतों में जो अपनी मिट्टी की खुशबू होती है, अपनेपन की वैसी खुशबू साहित्य की किसी भी विधा में नहीं होती। इसलिए लोकगीत इंसानी भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति होते हैं और ये हर दौर में महत्वपूर्ण बने रहेंगे। इ.रि.सें.

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