सरल स्वभाव में निरोग रहने का राज़
रोगमुक्त रहने के लिए सकारात्मक भावनाएं और ठहराव से युक्त स्वभाव बड़ी भूमिका निभाते हैं। दरअसल, संकोची होना, हर काम में जल्दबाजी, चिड़चिड़ापन और हर बात का स्ट्रेस लेना रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर करते हैं। ये फीलिंग शरीर व दिमाग की हेल्दी ग्रोथ पर रोक सिद्ध होती हैं।
शिखर चंद जैन
‘भावनाओं का स्वास्थ्य से गहरा रिश्ता है’- इस तथ्य की कई महत्वपूर्ण अध्ययनों में पुष्टि हो चुकी है। हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि हमारा दिमाग लगातार हमारे शरीर से बातें करता रहता है। तनाव में हमें पसीना आने लगता है, जीभ सूखने लगती है, शब्द लड़खड़ाने लगते हैं और दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ठीक इसी प्रकार खुशी, आशा और उम्मीद से जुड़ी इमोशंस कार्डियोवैस्कुलर, पल्मोनरी डिजीज, हार्ट डिजीज, डायबिटीज औऱ डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी का जोखिम कम करने में सहायक होती हैं। हमारा स्वभाव और भावनाएं हमारी शारीरिक सेहत पर कुछ इस तरह प्रभाव
डालते हैं –
उतावलापन
आप अगर उतावले स्वभाव के हैं तो अपने अहम निर्णय बिना कुछ ज्यादा सोचे-समझे ले लेते हैं औऱ फिर नतीजों की भी जल्दी उम्मीद करते हैं। ऐसे में कई बार आपको हताशा भी महसूस होती है।
नतीजा – रिसर्च में पता चला है कि उतावले स्वभाव के लोगों में स्ट्रेस हार्मोन कार्टिसोल का निरंतर स्राव होता है, जिससे उनके पेट में एसिड का बहाव बढ़ जाता है। इससे अल्सर और इरीटेबल बाउल सिंड्रोम का जोखिम बढ़ जाता है।
क्या करें – जब भी किसी काम या परिस्थिति को लेकर निगेटिविटी के ख्याल आएं तो तुरंत उस स्थिति से उबरने के लिए किसी दूसरी ईजी या फनफुल एक्टीविटी में बिजी हो जाएं।
शर्मीलापन
अगर आप नए लोगों के बीच या अधिक लोगों के बीच सहज महसूस न करें और उनसे बातचीत करने में संकोच या शर्म महसूस करें, तो इससे आपके मन की स्वाभाविक भावनाओं का दमन होता है।
नतीजा – मनोचिकित्सक कहते हैं कि संकोची लोगों को वायरल इंफेक्शन या सर्दी जुकाम होने की ज्यादा संभावना होती है। शर्मीलापन इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल असर डालता है। साथ ही इससे सिम्पैथिक नर्वस सिस्टम भी अति सक्रिय हो जाता है जो विपरीत परिस्थिति में लड़ो या भागो जैसी प्रतिक्रिया को जन्म देता है।
क्या करें – शर्मीलेपन को दूर करने के लिए छोटे-छोटे स्टेप उठाना शुरू करें। लोगों से बात न भी कर पाएं तो आई कॉन्टैक्ट करके मुस्कुराएं। समूह में जिन्हें जानते हैं उनसे बात की शुरुआत करें। चाहें तो स्थिति का सामना करने से पहले अकेले में रिहर्सल भी कर सकते हैं। अपने परिचितों के साथ ग्रुप एक्टीविटीज में हिस्सा लें।
नकचढ़ापन
कुछ लोगों में हर किसी की गलती ढ़ूंढ़ने की आदत होती है। ऐसे में उन्हें हर बात में चिढ़न और स्ट्रेस हो जाता है। छोटी-छोटी बातें भी इन्हें बहुत बड़ी लगती हैं और ये तिल का ताड़ बना लेते हैं।
नतीजा – व्यवहार विशेषज्ञ व मनोविज्ञानी कहते हैं कि लगातार स्ट्रेस और चिड़चिड़ापन बॉडी सेल्स और ब्रेन दोनों पर बुरा असर डालते हैं। इससे कई प्रकार के साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर होने के साथ साथ ही हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है। स्ट्रेस से शरीर में बायोकेमिकल असंतुलन उत्पन्न हो जाता है जिससे लगभग पूरे शरीर के अंगों पर इसका विपरीत असर पड़ता है।
ऐसा करें – चिड़चिड़ेपन और हरदम दूसरों में कमी ढ़ूंढ़ने की आदत से उबरने के लिए आपको मेडिटेशन का सहारा लेना चाहिए और अपनी सोच जरा बड़ी कर दूसरों में गलती ढ़ूंढ़ने की आदत बदल लें। अच्छे कोट्स और पॉजिटिव सोच वाली किताबें पढ़ें।
खुशामदीपन
अगर आप हमेशा लोगों को खुश करने और उनसे वाहवाही लेने की कोशिश में लगे रहते हैं, तो समझ लें कि आप इसी श्रेणी में हैं। इससे आप खुद की पहचान खोने लगते हैं और अपने बारे में सदैव दूसरों के विचार जानने में जुटे रहते हैं।
नतीजा - इससे कई बार आत्महीनता और असंतोष की भावना भी जागृत होती है। आप अपने आपको दूसरों से अप्रूव करवाना चाहते हैं, जो हमेशा संभव नहीं होता, तो आपको डिप्रेशन और एंग्जायटी झेलनी पड़ती है।
क्या करें – ‘यस मैन’ बनना छोड़ दें और अपनी सारी ऊर्जा दूसरों को खुश करने में नहीं बल्कि खुद के लिए महत्वपूर्ण काम करने में खर्च करें। दूसरों को खुश करने से पहले आपका खुश रहना जरूरी है। तभी आप अपनी आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जिंदगी को सुकून से जी पाएंगे।
झगड़ालू
कुछ लोग हर किसी से झगड़ लेते हैं क्योंकि उन्हें हमेशा अपनी ही बात सही और अच्छी लगती है। लोग इनसे कतराने लगते हैं और ये खुद हमेशा टेंशन में रहते हैं।
नतीजा – ऊटाह यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक जिन विवाहित जोड़ों में हमेशा झगड़ा होता रहता है उनमें हमेशा कोई न कोई सेहत समस्य़ा चलती रहती है। बात-बात में विवाद करने वाली महिलाओं की धमनियां कठोर होने लगती हैं और पुरुषों में एथेरोस्क्लेरोसिस नामक समस्या हो सकती है। दोनों ही स्थितियां हार्ट प्रॉब्लम का सबब बन सकती हैं।
क्या करें – मनोविज्ञानी कहते हैं कि जब भी आपको किसी मुद्दे पर विवाद करने की जरूरत महसूस हो, तो उसे कम से कम 20 मिनट के लिए टाल दें। इस बीच आप अपना कोई जरूरी काम करें, टीवी देखें या किताब पढ़ें। बेहतर होगा कि इस बीच आप उस मुद्दे पर कुछ भी न बोलने का निर्णय ले लें। वाद-विवाद स्वयं खत्म हो जाएगा।