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हाथियों की गुम होती पहचान की खोज

जंगल से कैद तक

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हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने एक बेहद जरूरी कदम उठाया है, इसने देशभर के 1862 कैद हाथियों की आनुवांशिक प्रोफाइलिंग तैयार की है। इन हाथियों की करायी गई आनुवांशिक प्रोफाइलिंग का एक प्रमुख उद्देश्य यह है कि हर कैद हाथी की एक विशिष्ट आनुवांशिक पहचान यानी डीएनए फिंगर प्रिंट तैयार किया जाए, जिससे इनके अवैध व्यापार या तस्करी पर रोक लगे।

भारत में हाथी केवल शक्ति और बुद्धिमत्ता भर का प्रतीक नहीं है बल्कि यहां इनका अपना सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिस्थितिकीय महत्व है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में जंगली और कैद में रहने वाले हाथियों की स्थिति लगातार चिंता का विषय बनती रही है।

भारतीय उपमहाद्वीप में हाथी

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भारतीय उपमहाद्वीप में हाथियों की संख्या 30 से 32 हजार के बीच मानी जाती है। इसमें करीब 8 से 10 फीसदी हाथी अलग-अलग वजहों से कैद में हैं। ये हाथी मंदिरों, सर्कसों, निजी स्वामित्व या पर्यटक स्थलों में देखे जाते हैं। ऐसे हाथियों की असली उत्पत्ति और वैध स्वामित्व को लेकर लंबे समय से संदेह और विवाद बना हुआ था।

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हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने एक बेहद जरूरी कदम उठाया है, इसने देशभर के 1862 कैद हाथियों की आनुवांशिक प्रोफाइलिंग तैयार की है। इन हाथियों की करायी गई आनुवांशिक प्रोफाइलिंग का एक प्रमुख उद्देश्य यह है कि हर कैद हाथी की एक विशिष्ट आनुवांशिक पहचान यानी डीएनए फिंगर प्रिंट तैयार किया जाए, जिससे इनके अवैध व्यापार या तस्करी पर रोक लगे। इनके स्वामित्व की प्रमाणिकता तय हो। इनकी बीमारियों और प्रजनन से जुड़ी जानकारियों को रखा जा सके और लंबे समय में प्रजाति की आनुवांशिक विविधता को समझा जा सके।

28 राज्यों से लिये नमूने

इन हाथियों की आनुवांशिक प्रोफाइलिंग के लिए एक अभियान के तहत देशभर के 28 राज्यों से नमूने लिये गये हैं। वन्यजीव संस्थान की टीम ने रक्त, बाल या मल के नमूनों से इन हाथियों का डीएनए निकाला है और उसे एक केंद्रीयकृत डेटा बेस में दर्ज किया है। यह डेटा बेस हाथियों के लिए ‘आधार’ जैसी प्रणाली के रूप में काम करेगा। वन्यजीव संस्थान की टीम ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि यह काम नैतिक और मानवीय तरीके से किया जाए।

क्या हैं इसके उपयोग?

इससे भारत और खासकर म्यांमार और नेपाल की सीमाओं पर हाथियों की तस्करी और अवैध बिक्री की घटनाएं रुकेंगी। डीएनए प्रोफाइल के जरिये अब यह संभव होगा कि किसी हाथी की वास्तविक पहचान क्या है और उसकी मूल जगह क्या है? इसे जाना जा सके और अपराधियों पर आसानी से कार्रवाई की जा सके। इस प्रोफाइलिंग के जरिये हाथियों के स्वामित्व की पारदर्शिता भी स्पष्ट होगी। कई बार जंगलों से अवैध रूप से पकड़कर लाये गये हाथियों को प्रभावशाली लोग पालतू बताकर उन्हें रजिस्टर्ड करवा लिया करते थे, लेकिन अब इनके आनुवांशिक रिकॉर्ड से यह पता चल जायेगा कि किसी हाथी की आखिर उत्पत्ति कहा से हुई थी? इस प्रोफाइलिंग के जरिये हाथियों के भविष्य के संरक्षण कार्यक्रमों में भी मदद मिलेगी। मसलन अगर किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है या उसके भाग जाने की घटना सामने आती है, तो डीएनए से उसकी पहचान की जा सकेगी। इससे सरकारी रिकॉर्ड और रिपोर्टिंग दोनो में पारदर्शिता आयेगी। इस प्रोफाइलिंग के चलते हाथियों के कानूनी और नीतिगत संरक्षण में भी बदलाव होंगे।

सहूलियत के साथ चुनौतियां

हाथियों की आनुवांशिक प्रोफाइलिंग से कई तरह की नई चिंताएं भी पैदा हो गई हैं। मसलन देशभर में डीएनए नमूनों का संग्रह और विश्लेषण काफी महंगा है। साथ ही इससे गोपनीयता संबंधी दुरुपयोग की आशंकाएं भी बढ़ी हैं। यदि हाथियों की इन जीन प्रोफाइल का डाटा निजी स्वामियों या संस्थानों के हाथ में चला जाता है, तो इसका काफी दुरुपयोग हो सकता है। मसलन किसी हाथी की जब्ती से बचने के लिए लोग झूठे दस्तावेज बनाने का एक नया आपराधिक धंधा शुरू कर देंगे। इस प्रक्रिया की एक व्यावहारिक कठिनाई यह भी है कि कैद हाथियों को भी पकड़कर उनसे नमूने एकत्र कर लेना आसान काम नहीं होगा।

जंगली हाथियों की प्रोफाइलिंग

एक तरफ जहां सभी कैद हाथियों को पकड़कर उनके नमूने लेना काफी हद तक व्यावहारिक रूप से पकड़कर अपना काम निकाल लेना कठिन है। साथ ही एक यह भी जरूरी सवाल है कि महज कैद हाथियों की प्रोफाइलिंग के जरिये ही भविष्य में हमारी हाथियों से संबंधित जिज्ञासाएं पूरी कर ली गईं, तो दुनिया के दूसरे देशों में जहां हाथियों की संख्या निश्चित नहीं है, वहां यह मुश्किल का काम बन सकता है और अगर सिर्फ पालतू या कैद वाले हाथियों की ही प्रोफाइलिंग की गई तो सवाल उठेगा कि जंगल में रहने वाले हाथियों की प्रोफाइलिंग क्यों जरूरी नहीं है? इसके अतिरिकत, इंसान अगर हाथियों के स्वामियों पर उनकी तमाम तरह की परेशानियों के लिए कानून थोपते हैं, तो यह सही नहीं होगा, क्योंकि जंगली हाथियों की भी जब तक समूची प्रोफाइलिंग नहीं हो जाती, इस प्रोफाइलिंग के मकसद पूरे नहीं होंगे।

कुल मिलाकर कैद में हाथियों की आनुवांशिक प्रोफाइलिंग से जहां भारतीय वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया है। इ.रि.सें.

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