बदलाव की बयार में संपादन कला की विद्यापीठ
कवि, लेखक, स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी जी ब्रिटिश शासित परतंत्र भारत में सरोकारों की पत्रकारिता के अग्रदूत रहे हैं। आजाद भारत में वे सामाजिक न्याय के लिये मुखर रहे। उन्होंने देश में एक आदर्श पत्रकारिता विद्यापीठ स्थापित करने का सपना देखा था जिसकी स्थापना साल 1990 में उनके ही नाम पर भोपाल में हुई। यहां से पढ़कर निकले छात्रों ने मीडिया संस्थानों में विशिष्ट मुकाम हासिल किए हैं। नई तकनीक मसलन कंप्यूटर, इंटरनेट व अब एआई के आगमन के साथ रचनात्मकता के रूप बदले हैं जिनके संग माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय निरंतर कदमताल कर रहा है।
Advertisementचाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं...
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूं,भाग्य पर इठलाऊं।
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।
जिस पथ पर जावें वीर अनेक। - माखनलाल चतुर्वेदी
उदात्त राष्ट्र प्रेम चित्रित करती बहुचर्चित ‘पुष्प की अभिलाषा’ कविता देश के जन-जन के मन में गूंजती रही है। इसके रचयिता लब्धप्रतिष्ठित कवि, लेखक, स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। सरल-सहज और ओज की रचनाओं के रचयिता चतुर्वेदी जी परतंत्र भारत में सरोकारों की पत्रकारिता के अग्रदूत रहे हैं। उन्होंने ब्रिटिश शासित भारत में जहां स्वतंत्रता की भूख जगाकर फिरंगियों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाया, वहीं आजाद भारत में सामाजिक न्याय के लिये मुखर रहे। असहयोग आंदोलन के दौरान जेल भी गए। यहां तक कि गांधी जी भी उनकी वाक्शक्ति के कायल थे। उनकी हिंदी के प्रति अगाध श्रद्धा की बानगी देखिए कि जब हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान न मिला तो उच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण तक लौटा दिया। पत्रकारिता के शिखर पुरुषों में शामिल चतुर्वेदी जी ने ‘प्रभा’ व ‘कर्मवीर’ के तीखे तेवरों वाले समाचार पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता की चूलें हिला दी थीं। जिसके लिये उन्हें कई बार ब्रिटिश सत्ता के कोप का भाजन बनना पड़ा।
जनपक्षधरता की पत्रकारिता
दरअसल, माखनलाल जी स्वतंत्र भारत में बदलते परिवेश के अनुकूल जनसरोकारों व शुचिता की पत्रकारिता के पक्षधर थे। उन्होंने देश में एक आदर्श पत्रकारिता विद्यापीठ स्थापित करने का सपना देखा था। उन्होंने राजस्थान स्थित भरतपुर में 1927 में आयोजित संपादक सम्मेलन में कहा था – ‘हिंदी समाचार पत्र कार्यालय में योग्य व्यक्तियों के प्रवेश कराने के लिये, एक पाठशाला, दूसरे शब्दों में कहिए तो कि एक संपादन कला की विद्यापीठ की आवश्यकता है। ऐसी विद्यापीठ किसी योग्य स्थान पर बुद्धिमान, परिश्रमी, अनुभवी, संपादक-शिक्षकों द्वारा संचालित होनी चाहिए। उक्त पीठ में अन्यान्य विषयों का एक प्रकांड ग्रंथ संग्रहालय होना चाहिए।’ कालांतर राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा देने वाले मध्यप्रदेश के संपादकों, पत्रकारों व साहित्यकारों ने इस दिशा में सार्थक प्रयास किए। फिर मध्यप्रदेश सरकार ने उनके स्वप्न को साकार करने के लिये, उनके ही नाम पर भोपाल में पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की।
पत्रकारिता के मूल्यों का संवर्धन
उतार-चढ़ाव की यात्रा के बाद आज साढ़े तीन दशक के सफर में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने जनसरोकारों की पत्रकारिता को नये आयाम दिए हैं। वर्ष 1990 में एक छोटी सी इमारत से यह बड़ी शुरुआत हुई। आज भोपाल के बिशनखेड़ी में माखनलाल चतुर्वेदी के ‘सपनों की संपादन कला की पाठशाला’ 50 एकड़ के भव्य परिसर में विस्तृत है। इसे एशिया का पहला पत्रकारिता विश्वविद्यालय होने का गौरव मिला है। विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय स्वीकार्यता का पता इस बात से चलता है कि यहां 20 राज्यों के दो हजार विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहां से पत्रकारिता के विभिन्न क्षेत्रों में दीक्षित होकर निकले छात्रों ने देश के तमाम समाचार पत्रों व मीडिया संस्थानों में अलग छाप छोड़ी है। अब चाहे वह रेडियो, टीवी, प्रिंट, डिजिटल, विज्ञापन, सिनेमा और संचार के क्षेत्र हों या फिर प्रतिष्ठित समाचार पत्र, यहां के छात्रों ने अपनी प्रतिभा को दर्शाया है। देश की राजधानी से लेकर तमाम राज्यों में यहां से निकले पत्रकारिता के छात्रों ने विशिष्ट मुकाम हासिल किए हैं। यही वजह है कि पत्रकारिता जगत में प्रतिष्ठित माने जाने वाले रामनाथ गोयनका अवार्ड इस संस्थान से निकले सात छात्रों को मिले हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व राज्य स्तर के सम्मान भी मिले हैं। बहरहाल, 1990 में रोपा गया पौधा आज धीरे-धीरे वट वृक्ष बनने की ओर अग्रसर है। जनस्वीकार्यता इतनी अधिक कि जिस क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्थापित है, उसका नाम ही माखनपुर हो चला है।
बदलते परिदृश्य पर नजर
यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहां कंप्यूटर व आईटी विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एआई व बदलती तकनीक के बीच परंपरागत पत्रकारिता के समक्ष नई चुनौतियां पैदा हुई हैं। बहुत संभव है आने वाले वर्षों में मीडिया में रोजगार के अवसरों का संकुचन हो या अन्य कारणों से मीडिया शिक्षा का परिदृश्य बदले। विश्वविद्यालय ने उस चुनौती के लिये खुद को तैयार किया है। विश्वविद्यालय और राज्य के अन्य भागों में स्थित विश्वविद्यालय के तीन परिसरों के कंप्यूटर कोर्स बीसीए , एमसीए व कंप्यूटर से जुड़े डिप्लोमा कोर्स पीजीडीसी, डीसीए व बीसीएम लोकप्रिय हैं। विश्वविद्यालय और खंडवा, दतिया व रीवा परिसरों में हजारों छात्र रोजगार के लिए इन पाठ्यक्रमों को वरीयता दे रहे हैं।
बदलती तकनीक के साथ कदमताल
वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता को समृद्ध करने वाली तकनीकी विधाओं को बदलते समय के अनुरूप अपडेट करने के प्रयास लगातार जारी हैं। आईटी अनुसंधान से जुड़े प्रो. मनीष माहेश्वर बताते हैं कि नई तकनीक के साथ लगातार रूप बदलती रचनात्मकता के संग कदमताल करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता रही है। परिसर में न्यू मीडिया से जुड़े समृद्ध संसाधन उपलब्ध हैं। दरअसल, मध्यप्रदेश के कई दिग्गज पत्रकार, जिन्होंने पूरे देश की राष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता में नये आयाम स्थापित किए, उनका सहयोग व मार्गदर्शन इस विश्वविद्यालय को मिला। इसके कई कुलपति व वर्तमान कुलगुरु मीडिया के लंबे अनुभव के बाद इस विश्वविद्यालय से जुड़े। उन्होंने वक्त की नब्ज को पहचाना और पत्रकारिता पाठ्यक्रमों को नई चुनौतियों के अनुरूप ढाला। पत्रकारिता के पाठ्यक्रमों को वक्त की जरूरत के मुताबिक लगातार समृद्ध व अपडेट किया जाता रहा है।
‘कर्मवीर’ व ‘प्रभा’ का संपादन करने वाले, कई कालजयी कृतियां रचने वाले और पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले हिंदी पत्रकारिता के पितृपुरुष माखन लाल चतुर्वेदी का नाम हिंदी पत्रकारिता में सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय उनकी आदर्श पत्रकारिता की कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश में है।
दैनिक ट्रिब्यून के पूर्व संपादक स्व. राधेश्याम शर्मा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं
संचार विश्वविद्यालय,भोपाल के प्रथम डायरेक्टर जनरल और पहले कुलपति रहे हैं।
स्मृतियों के झरोखे से समृद्धि
पुस्तकालय की समृद्ध परंपरा को विस्तार देने के लिये कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने अपने निजी पुस्तकालय की पुस्तकें नालंदा पुस्तकालय को भेंट की हैं। जिनमें दैनिक ट्रिब्यून के संपादक रहे स्व. राधेश्याम शर्मा, पूर्व कुलपति के जी सुरेश, आई.आई.एम.सी के एम.के दुआ, प्रो. सरदाना, साहित्यकार देवेंद्र दीपक, सिने पत्रकार ब्रजभूषण चतुर्वेदी आदि शामिल हैं। पुस्तकालय के इस खंड में उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकों के साथ पुस्तकें दान करने वाले महानुभावों के चित्र भी लगे हैं। सोच यही है कि उनके द्वारा संगृहीत महत्वपूर्ण पुस्तकें सुरक्षित रहें और आने वाली पीढ़ियों को उनका लाभ मिलता रहे।
नालंदा पुस्तकालय पत्रकारिता की समृद्ध विरासत का संरक्षण
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की एक खासियत इसका आधुनिक व समृद्ध पुस्तकालय है। जैसा कि चतुर्वेदी जी ने कहा था- ‘पत्रकारिता की पीठ में अन्यान्य विषयों का एक प्रकांड ग्रंथ संग्रहालय होना चाहिए।’ विश्वविद्यालय के संचालकों ने उनकी बात के मर्म को समझते हुए नालंदा पुस्तकालय को आकार दिया है। पुस्तकालय की संचालिका डॉ.भारती सारंग बताती हैं कि इस पुस्तकालय में 43000 पुस्तकें संगृहीत हैं। मीडिया के विभिन्न प्रभागों, विज्ञापन, जनसंपर्क व पत्रकारिता से जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण पुस्तकें, पुराने समाचार पत्र, सामान्य ज्ञान की पुस्तकें, संदर्भ सामग्री, भाषायी जर्नल यहां उपलब्ध हैं। चालीस अखबारों के पांच साल के पिछले रिकॉर्ड छात्रों व शोधार्थियों के लिए उपलब्ध रहते हैं। यही वजह है कि देशभर के पत्रकारिता व संचार से जुड़े विषयों के शोधार्थी यहां सुविधाओं का लाभ उठाते हैं। कंप्यूटर संचालित और डिजिटल तकनीक से समृद्ध पुस्तकालय की सभी गतिविधियां कैमरे की निगरानी में रहती हैं ताकि दुर्लभ पत्र-पत्रिकाओं का संरक्षण किया जा सके। पुस्तकालय में पचास मैग्जीन व रिसर्च जर्नल नियमित आते हैं और उसमें विश्वविद्यालय की पत्रिकाएं मीडिया मीमांसा, विकल्प आदि भी शामिल हैं। पत्रकारिता के छात्रों को प्राच्य विद्याओं का ज्ञान उपलब्ध कराने के लिये पुस्तकालय के देवर्षि नारद खंड में पौराणिक पुस्तकों का संग्रह है। मकसद है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत प्राचीन भारतीय ज्ञान से जुड़े विषयों पर पर्याप्त जानकारी पत्रकारिता के छात्रों को मिल सके। देश की आजादी की लड़ाई में जन-चेतना जगाने के लिये पत्र-पत्रिकाओं ने निर्णायक भूमिका निभायी थी। पुस्तकालय में परतंत्र भारत के दौर के दुर्लभ समाचार पत्र और स्वतंत्रता आंदोलन व सामाजिक परिवर्तनों की साक्षी पत्रिकाओं का समृद्ध संकलन यहां मौजूद है। माखनलाल चतुर्वेदी जी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ के 1920 से लेकर 1965 तक के महत्वपूर्ण अंक यहां संरक्षित हैं। उनकी तमाम पुस्तकें भी पुस्तकालय की धरोहर हैं। इसके अलावा पुस्तकालय में पत्रकारिता से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों में की गई पीएचडी की थीसिस और लघु शोधग्रंथ यहां संगृहीत हैं। वहीं खास प्रावधान किए गए हैं ताकि दुर्घटनावश लगने वाली आग से इन्हें संरक्षित रखा जा सके। साथ ही प्राचीन ग्रंथों व समाचार पत्रों को संरक्षित करने के लिये नियमित कैमिकल ट्रीटमेंट किया जाता है।