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तीन पहाड़ियों के आंचल में कभी हिलोरे लेता था ज्ञान का सागर

पुष्पगिरि विश्वविद्यालय
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भारतीय परंपरा में ज्ञान का उद्देश्य केवल रोज़गार या तकनीकी दक्षता प्राप्त करना नहीं था, बल्कि नैतिकता, आत्मानुशासन और समग्र जीवन-कौशल के विकास पर जोर दिया जाता था, जिससे व्यक्ति जीवन के सभी पहलुओं में संतुलित और सशक्त बनता था।

भारत के प्राचीन इतिहास में नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों का उल्लेख बड़ी श्रद्धा के साथ किया जाता है। इन्हीं में एक और गौरवशाली नाम है पुष्पगिरि विश्वविद्यालय, जो आज के ओडिशा (प्राचीन कलिंग) की धरती पर अवस्थित था। यह विश्वविद्यालय केवल बौद्ध अध्ययन का ही नहीं, बल्कि बहुविषयक ज्ञान और वैश्विक बौद्धिक आदान-प्रदान का भी एक अद्वितीय केंद्र था। इसकी खोज और महत्व आधुनिक काल में धीरे-धीरे सामने आए, किंतु इसकी परंपरा तीसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर ग्यारहवीं सदी तक फैली मानी जाती है।

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पुष्पगिरि विश्वविद्यालय का विस्तृत परिसर तीन पहाड़ी स्थलों — ललितगिरि, रत्नगिरि और उदयगिरि — में फैला हुआ था। इन तीनों को आज ‘ओडिशा का डायमंड ट्रायंगल’ कहा जाता है। ललितगिरि को लाल पर्वत, रत्नगिरि को रत्नों का पर्वत और उदयगिरि को उदय का पर्वत कहा जाता है। यही पहाड़ियां इस विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों और आवासीय विहारों का आधार थीं। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि सम्राट अशोक के समय से ही कलिंग क्षेत्र बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था, और यहीं से पुष्पगिरि जैसी उच्च शिक्षण संस्था का विकास हुआ।

ब्रिटिश काल के पश्चात, 20वीं सदी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और ओडिशा के शोधकर्ताओं द्वारा इन स्थलों की खुदाई की गई। खुदाई में विशाल स्तूप, चैत्यगृह, आवासीय कक्ष, ध्यान कक्ष, पत्थर की मूर्तियां, मुद्राएं, टेरीकोटा मूर्तिकला और शिलालेख प्राप्त हुए। विशेष रूप से ललितगिरि से महायान और हीनयान दोनों परंपराओं के प्रमाण मिले, रत्नगिरि में तांत्रिक बौद्ध धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है, जबकि उदयगिरि में वज्रयान साधना और विशाल प्रवेश द्वार का अद्भुत वास्तुशिल्प दृष्टिगोचर होता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी 7वीं शताब्दी में भारत यात्रा के दौरान इस विश्वविद्यालय का उल्लेख किया और इसे पर्वतीय उज्ज्वल केंद्र कहा।

पुष्पगिरि में शिक्षा पूर्णतः आवासीय थी। उदयगिरि की खुदाई में 18-20 कक्ष मिले हैं, जिन्हें विद्यार्थियों के अध्ययन कक्ष माना जाता है। शिक्षा की शुरुआत लगभग नौ वर्ष की आयु से होती थी और विद्यार्थी तीस वर्ष की अवस्था तक अध्ययन करते थे। यह दीर्घकालिक अध्ययन प्रणाली ज्ञान को केवल सूचना तक सीमित नहीं रखती थी, बल्कि जीवन के हर पक्ष में उतारने का अवसर देती थी।

यहां पढ़ाए जाने वाले विषय अत्यंत विविध थे। बौद्ध दर्शन के महायान, वज्रयान और तांत्रिक रूपों के साथ-साथ वेद, व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित, योग, ध्यान, खगोलशास्त्र और कला जैसे विषयों का भी समावेश था। यह पाठ्यक्रम भारतीय ज्ञान परंपरा की बहुआयामी और समन्वयकारी प्रकृति को दर्शाता है, जहां आध्यात्मिकता और तर्क दोनों का संतुलित विकास होता था।

पुष्पगिरि विश्वविद्यालय ने केवल भारतीय विद्यार्थियों को ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय साधकों और विद्वानों को भी आकर्षित किया। श्रीलंका, नेपाल, भूटान, तिब्बत, चीन, जापान और इंडोनेशिया से छात्र और भिक्षु यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इस अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान ने इसे एक वैश्विक बौद्धिक केंद्र बना दिया। प्राचीन काल में यहां से अनेक ग्रंथ और बौद्धाचार्य दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में गए और वहां की सांस्कृतिक धारा को प्रभावित किया।

ओडिशा रिव्यू में प्रकाशित लेख इस तथ्य को रेखांकित करता है कि पुष्पगिरि जैसी संस्थाएं यूरोकेन्द्रित शिक्षा दृष्टिकोण को चुनौती देती हैं। आधुनिक शिक्षा प्रायः पश्चिमी विज्ञान और तकनीक को ही ज्ञान का शिखर मानती है, जबकि भारतीय परंपरा में ज्ञान का उद्देश्य केवल रोज़गार या तकनीकी दक्षता नहीं, बल्कि नैतिकता, आत्मानुशासन और समग्र जीवन-कौशल का विकास था। पुष्पगिरि इसका जीवंत उदाहरण है, जहां बौद्धिक, आध्यात्मिक और व्यावहारिक — तीनों प्रकार के ज्ञान को समान महत्व दिया गया। इस लेख स्मरण कराती हैं कि शिक्षा को केवल पूंजी या बाज़ार से संचालित नहीं होना चाहिए। भारतीय परंपरा के विश्वविद्यालयों ने आत्मनिर्भरता, सहजीवन और आंतरिक शांति पर आधारित शिक्षा प्रदान की थी, जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।

आज पुष्पगिरि के अधिकांश अवशेष ललितगिरि, रत्नगिरि और उदयगिरि की पहाड़ियों पर खंडहर रूप में विद्यमान हैं। पुरातत्व विभाग ने यहां संग्रहालय और संरक्षित क्षेत्र विकसित किए हैं, किंतु अभी भी अनेक हिस्से शोध और खुदाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस विश्वविद्यालय की शिक्षण पद्धति, पुस्तकालयों, और प्रशासनिक संरचना की पूरी जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है। अतः और अधिक अनुसंधान, अभिलेखीय अध्ययन, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।

पुष्पगिरि विश्वविद्यालय से यह सीख मिलती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि जीवन का निर्माण है। यह प्रणाली चरित्र, नैतिकता और सामूहिक सह-अस्तित्व पर बल देती थी। आधुनिक भारत यदि अपनी शिक्षा-नीति में इन मूल्यों को समाहित कर सके, तो आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से सशक्त समाज का निर्माण संभव है।

अतः पुष्पगिरि विश्वविद्यालय भारतीय इतिहास का वह उज्ज्वल अध्याय है, जो बताता है कि प्राचीन भारत विश्व का ज्ञान-केंद्र था। यह केवल बौद्ध धर्म का अध्ययन स्थल नहीं, बल्कि बहुविषयक शोध और अंतरराष्ट्रीय संवाद का विशाल मंच था। आज जब नई शिक्षा नीति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की बात कर रहे हैं, तब पुष्पगिरि स्मरण कराता है कि ज्ञान का असली उद्देश्य मानवता, शांति और समग्र विकास है। इसलिए, इस गौरवशाली विश्वविद्यालय की विरासत का संरक्षण और पुनर्पाठ न केवल अतीत की स्मृति है, बल्कि भविष्य की दिशा भी है।

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