बंगाल के शक्तिपीठों में मां काली-दुर्गा का रहस्य
बंगाल देवी उपासना की भूमि है, जहां मां काली और दुर्गा के शक्तिपीठों की शृंखला न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक, तांत्रिक साधना और सांस्कृतिक पहचान भी है।
बंगाल शक्तिपूजा का केंद्र है। यहां मां काली और मां दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में वर्ष में कई बार होती है। कभी जगद्धात्री पूजा तो कभी काली पूजा या रक्षा काली पूजा। पश्चिम बंगाल में जगज्जननी मां दुर्गा और मां काली के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं। ये मंदिर न केवल अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपने ऐतिहासिक महत्व और शक्तिपीठ होने के कारण भी श्रद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।
कालीघाट का काली मंदिर
काली कलकत्ते वाली के नाम से मशहूर यह मंदिर कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक है। कालीघाट शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां सती के दाहिने पैर की उंगली गिरी थी। इस मंदिर में देवी काली की भव्य और आकर्षक प्रतिमा के दर्शन के लिए दुनियाभर से भक्त आते हैं। मंदिर के वास्तुशिल्प आकर्षण के साथ-साथ इसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है, जो इसे एक अद्वितीय और शांत स्थल बनाता है। देवी काली की प्राचीन प्रतिमा बलुआ पत्थर से बनी है और इसमें इनकी जीभ निकली हुई है, जो देवी के उग्र रूप को दर्शाती है।
दक्षिणेश्वर काली मंदिर
यह मंदिर देवी काली के भवतारिणी रूप को समर्पित है। यह मां काली के अनन्य उपासक श्रीरामकृष्ण परमहंस की साधनास्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर अपने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर कोलकाता के पास हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित मंदिर है। इसे 1855 में रानी रासमणि ने बनवाया था। देवी काली ने उन्हें सपने में दर्शन देकर मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। मंदिर में मुख्य नवरत्न मंदिर के अलावा, नदी के किनारे 12 महादेव मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर और एक स्नान घाट के साथ-साथ स्वामी रामकृष्ण के कमरे और मां शारदा के बिताए स्थान भी हैं। यह मंदिर 19वीं सदी के बंगाल के पुनर्जागरण से भी जुड़ा है मंदिर परिसर के पास हुगली नदी के पार बेलूर मठ, रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है।
हंसेश्वरी की चतुर्भुजी प्रतिमा
यह एक अनोखा शाही मंदिर है जो अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। हंसेश्वरी मंदिर पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के बांसबेरिया में स्थित है। 19वीं सदी की शुरुआत में राजा नृसिंहदेव राय द्वारा इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था, जिसे उनकी पत्नी रानी शंकरी ने पूरा किया था। इस मंदिर में मां काली के एक रूप देवी हंसेश्वरी की विशेष प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के गर्भगृह में नीम की लकड़ी से बनी देवी हंसेश्वरी (देवी काली का एक रूप) की नीले रंग की चतुर्भुजी प्रतिमा है, जो लेटे हुए शिव के ऊपर कमल के डंठल पर विराजमान है। इसके नजदीक स्थित अनंत बसुदेव मंदिर के लिए भी यह जाना जाता है, जिसमें समृद्ध टेराकोटा अलंकरण हैं। मंदिर की पांच मंजिला संरचना ‘तांत्रिक सचक्रभेद’ का प्रतिनिधित्व करती है, जो मानव शरीर की नाड़ियों और चक्रों को दर्शाती है। यह संरचना इसे पश्चिम बंगाल के मंदिरों में से विशिष्टता प्रदान करती है।
तारापीठ मंदिर
यह मां तारा देवी को समर्पित एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। तारापीठ मंदिर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में रामपुरहाट शहर के पास स्थित है। यह एक प्रसिद्ध तांत्रिक मंदिर और शक्ति पीठ है। बंगाल में यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जो देवी तारा के मंदिर और उससे सटे एक श्मशान घाट के लिए जाना जाता है। यह 13वीं शताब्दी का एक मंदिर है और शक्ति पीठों में से एक है, जो हिंदू धर्म में दस महाविद्याओं में से एक, देवी तारा को समर्पित है।
किरीटेश्वरी शक्तिपीठ
किरीटेश्वरी मंदिर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के किरीटकोना गांव में स्थित है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती के किरीट (मुकुट) के गिरने के कारण प्रसिद्ध है। यह पश्चिम बंगाल के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर का इतिहास 1000 साल से भी पुराना है और यह एक सक्रिय तीर्थ स्थल है, जो हर साल हजारों भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण यह भक्तों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा जैसे विशेष त्योहारों पर यहां विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं।
महिषमर्दिनी मंदिर
यह मां दुर्गा के महिषमर्दिनी स्वरूप को समर्पित है और इसे एक शक्तिपीठ भी माना जाता है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में बक्रेश्वर कस्बे में स्थित महिषमर्दिनी मंदिर, देवी दुर्गा का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। ज्ञात इतिहास के अनुसार इसका निर्माण 10वीं-11वीं शताब्दी में हुआ था। सोमवंशी शासन के दौरान बना यह मंदिर रेखा देउल शैली में निर्मित है। बाद में 19वीं सदी में इसका जीर्णोद्धार किया गया। यहां देवी महिषमर्दिनी और भगवान बकरनाथ शिव की पूजा की जाती है। यहां अद्भुत प्राकृतिक चमत्कार के रूप में 10 गर्म झरने भी मौजूद हैं। इनके बारे में मान्यता है कि इनमें स्नान करने पर कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
सर्वमंगला मंदिर
यह 16वीं-17वीं शताब्दी में निर्मित एक प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर है। यह पश्चिम बंगाल के बर्धमान के केंद्र में स्थित है। इसका निर्माण 1740 ई. में राजा महाताब चंद के शासनकाल में हुआ। यहां श्रद्धालु देवी दुर्गा के पूजनीय स्वरूप, देवी सर्वमंगला की पूजा करते हैं। मंदिर में मौजूद प्राचीन मूर्ति के बारे में माना जाता है कि यह एक सहस्राब्दी से भी अधिक पुरानी है। यह मंदिर आस्था और शांति के साधकों, दोनों को समान रूप से आकर्षित करता है।
कनक दुर्गा मंदिर
पश्चिम मेदिनीपुर (झाड़ग्राम जिले) में कनक दुर्गा मंदिर, एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे लगभग 500 साल पहले राजा गोपीनाथ ने बनवाया था। कहते हैं यहां देवी मां की मूर्ति सोने से बनी है। मंदिर में देवी का एक चतुर्भुज रूप है और अश्व को उनका वाहन माना गया है। यहां प्रतिवर्ष नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। यह मंदिर झाड़ग्राम जिले के चिल्कीगढ़ में स्थित है। झारग्राम पैलेस से इसकी दूरी लगभग 12 किलोमीटर है।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा गोपीनाथ को देवी कनक दुर्गा ने स्वप्न में दर्शन दिए और उन्होंने देवी के लिए एक मंदिर बनवाया। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि देवी मां की मूर्ति रानी गोविंदमनी के सोने के कंगन से बनवाई गई थी।