झालरदार शार्क एक प्राचीन, दुर्लभ और आलसी मछली है, जो गहरे पानी में रहती है। इसके 12 झालरदार गलफड़े, विचित्र आंखें और अनोखी शारीरिक विशेषताएं हैं।
शार्क की अधिकांश प्रजातियों की जानकारी तो मानव को लंबे समय से है, किंतु झालरदार शार्क की जानकारी लगभग 100 वर्षों पहले ही हुई है। सर्वप्रथम जापानी मछुआरों ने इसे 1884 में देखा और इसके नमूने एकत्रित किए। इसके गलफड़े सिल्क जैसे थे, अतः इसे नाम दिया गया रिब्यूका सिल्क शार्क। इसका स्वरूप छिपकली जैसा था, अतः कुछ लोगों ने इसे लिजार्ड शार्क कहा। झालरदार शार्क की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके 12 झालरदार गलफड़े होते हैं, अतः इसे एक नया नाम मिला—झालरदार शार्क। यह नाम सर्वाधिक प्रचलित हुआ और इसे आज इसी नाम से जाना जाता है।
झालरदार शार्क अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर के दाहिनी ओर गहरे पानी में पाई जाती है, अर्थात इसे पुर्तगाल से नार्वे तक और कैलिफोर्निया के तटों पर देखा जा सकता है। झालरदार शार्क लगभग 550 मीटर की गहराई पर रहना अधिक पसंद करती है। यह गहराई इतनी अधिक है कि प्रायः गोताखोर भी सागर में इतनी गहराई तक नहीं जाते। यही कारण है कि झालरदार शार्क के संबंध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध हो सकी है। झालरदार शार्क की संख्या बहुत कम है। इसकी केवल एक प्रजाति है। यह एक आलसी शार्क है और बहुत धीमी गति से तैरती है।
झालरदार शार्क का मुंह सिर के आगे होता है, जबकि आधुनिक शार्क का मुंह नीचे की ओर होता है। झालरदार शार्क के नथुने सिर की ऊपरी सतह पर होते हैं, जबकि आधुनिक शार्क के नथुने सिर की निचली सतह पर होते हैं। झालरदार शार्क के केवल एक पूंछ होती है, जबकि आधुनिक शार्क के पूंछ के नीचे भी एक पूंछ होती है। झालरदार शार्क एक ही स्थान पर रुकी रहकर भी सांस ले सकती है, जबकि आधुनिक शार्क को सांस लेने के लिए निरंतर तैरते रहना पड़ता है। झालरदार शार्क एक ही समय पर अपने सभी दांतों का उपयोग करती है, जबकि आधुनिक शार्क केवल आगे के दांतों का उपयोग करती है। उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त और भी ऐसी अनेक बातें हैं, जो झालरदार शार्क को एक अत्यंत प्राचीन मछली सिद्ध करती हैं।
झालरदार शार्क की शारीरिक संरचना अत्यंत प्राचीन मछलियों की तरह है। इसका शरीर पतला और लंबा, ईल जैसा होता है। इसकी लंबाई लगभग 2 मीटर और शरीर का रंग एक जैसा कत्थई होता है। इसकी पीठ पर केवल एकमात्र पीठ का मीनपंख होता है, जो पीठ पर काफी पीछे होता है। इसके सिर के दोनों ओर छह-छह गलफड़े होते हैं, जिनके किनारे झालरदार होते हैं। इसीलिए इसे झालरदार शार्क कहा जाता है। प्राचीन शार्क में भी ऐसी ही और इतने ही गलफड़े थे। वर्तमान समय में जितनी भी शार्क पाई जाती हैं, उनमें कुछ को छोड़कर शेष सभी के केवल पांच जोड़े गलफड़े होते हैं।
झालरदार शार्क की आंखों की संरचना बड़ी विचित्र होती है। इसकी आंखें थोड़ी सी उभरकर बाहर आ जाती हैं और इन्हें ऊपर की ओर घुमाया जा सकता है। सागर तल पर गहराई में रहने वाले जीवों के लिए इस प्रकार की आंखें आवश्यक हैं। इस प्रकार की आंखें झालरदार शार्क को अपने शत्रुओं से बचने में काफी सहायता देती हैं। इसके साथ ही यह अपनी आंखों की सहायता से शिकार भी सरलता से खोज लेती है।
झालरदार शार्क का प्रमुख भोजन गहरे पानी में रहने वाले स्कि्वड और ऑक्टोपस हैं। झालरदार शार्क के दांत बहुत विकसित होते हैं और इनकी नोकें सांप के दांतों की तरह पीछे की ओर होती हैं। इसके साथ ही यह अपने मुंह को बहुत चौड़ा फैला सकती है और सांप की तरह अपने जबड़े फुला सकती है। अतः एक बार पकड़ में आने के बाद इसका शिकार बच नहीं पाता। झालरदार शार्क सर्वप्रथम अपने शिकार पर अचानक आक्रमण करके उसे अपने जबड़ों में दबोच लेती है और फिर उसे धीरे-धीरे भीतर की ओर खिसकती है तथा अंत में पूरे शिकार को मुंह के भीतर कर लेती है। यह ढंग स्कि्वड और ऑक्टोपस खाने के लिए उपयोगी और आवश्यक है।
झालरदार शार्क का समागम और प्रजनन बड़ा रोचक होता है। समागम काल में नर और मादा गहरे पानी में एक-दूसरे से मिलते हैं। इनमें आंतरिक निषेचन होता है। झालरदार शार्क का गर्भकाल दो वर्ष होता है। झालरदार शार्क अंडे देती है, किंतु इसके अंडे इसके शरीर के भीतर ही परिपक्व होकर फूट जाते हैं। इस प्रकार मादा शार्क के शरीर से अंडे न निकलकर जीवित बच्चे निकलते हैं। यह एक बार में लगभग 15 बच्चों को जन्म देती है। इसके बच्चे लंबे समय तक मादा के साथ रहते हैं। मादा ही इनकी सुरक्षा करती है। ये बच्चे शीघ्र ही छोटे-छोटे स्कि्वड और ऑक्टोपस का शिकार करना सीख जाते हैं और वयस्क होने से पहले सागर में बिखर जाते हैं।
झालरदार शार्क मानव के लिए घातक नहीं है। यह सागर में 500 मीटर से अधिक की गहराई पर रहती है। इतनी गहराई तक प्रायः गोताखोर नहीं जाते। झालरदार शार्क को केवल शोध कार्य के लिए ही पकड़ा जाता है, फिर भी इसकी संख्या तेजी से कम हो रही है। इससे जीववैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि झालरदार शार्क उदविकासीय परिवर्तनों के कारण अब अपनी अंतिम अवस्था में पहुंच गई है और शीघ्र ही यह धरती से समाप्त हो जाएगी। यह भी हो सकता है कि यह लंबे समय तक बनी रहे, किंतु यदि ऐसा होता है तो इसे प्रकृति का एक चमत्कार ही समझा जाएगा। इ.रि.सें.

