जननी अपने आंचल में रखकर नन्हे को पिलाएं अमृत भरपूर
नवजात शिशु के लिए मां का दूध सबसे अच्छी व संपूर्ण खुराक मानी जाती है। आंचल का यह अमृत जच्चा-बच्चा दोनों को हेल्दी रखने में सहायक है। लेकिन कई मांएं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती हैं। इससे दूध कम हो जाता है । ऐसे में बच्चा दूध नहीं पी पाता। इसके लिए मां को बच्चे का स्पर्श जरूरी है। लैक्टेशन फेल्योर के विषय पर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अंशु जिंदल से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत के समान अमूल्य और दुनिया का सर्वोत्तम आहार है। वैज्ञानिकों ने मां के दूध (आंचल का अमृत) में पाए जाने वाले पोषक और एंटीऑक्सीडेंट्स की वजह से इसे ‘फर्स्ट वैक्सीन’ का दर्जा भी दिया है। यह शिशु के शारीरिक-मानसिक विकास के साथ ही इम्यून सिस्टम मजबूत बनाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शिशु को कम से कम जीवन के पहले 6 महीने तक स्तनपान जरूर कराने की सिफारिश की है। जिसे 2 साल जारी रखा जा सकता है। जच्चा-बच्चा दोनों को हेल्दी रखने में सहायक माना जाता है।
Advertisementक्यों होता है लैक्टेशन फेलियर
कई माएं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती हैं जिससे बच्चा चिड़चिड़ा या बीमार रहने लगता है। इसके पीछे चाहे मां का स्वास्थ्य ठीक न रहना,स्तनपान न करा पाना जैसे कई कारण हो सकते हैं। इससे दूध कम मात्रा में बनने लगता है और उतरना बंद हो जाता है। इस स्थिति को ‘लेक्टेशन फेल्योर’ कहा जाता है। शिशु मां के दूध से वंचित रह जाता है और उसे फार्मूला मिल्क या गाय के दूध पर निर्भर रहना पड़ता है। कई स्थितियों में नवजात को मां से दूर रखा जाता है या देर से स्तनपान कराने के लिए दिया जाता है। इससे स्टीमुलेशन कम मिलने से दूध कम बनता है और शिशु ठीक से स्तनपान नहीं कर पाता। कई बार सिजेरियन होने, डिलीवरी के दौरान बेहोश होने या बेइंतहा ब्लीडिंग होने से मां को आईसीयू में रहना पड़ता है। या फिर प्री-मैच्योर बेबी होने या कोई प्रॉब्लम होने के कारण शिशु को कुछ टाइम के लिए नर्सरी में रखा जाता है। डिलीवरी के बाद कम मात्रा में बनने वाले गाढ़े पीले कोलस्ट्रम दूध को नवजात के लिए अपर्याप्त मानते हैं। शिशु को बोतल या कटोरी-चम्मच से फार्मूलेटिड डिब्बाबंद मिल्क या गाय का दूध देते हैं। इससे बच्चे की भूख खत्म हो जाती है और वह मां का दूध नहीं पी पाता। दूध की जगह चोट लगी हो या क्रेक हों तो निप्पल या दूध सप्लाई वाली वेन्स को नुकसान पहुंच सकता है और दूध पिलाने में दिक्कत आ सकती है, शिशु ठीक से दूध नहीं पी पाता और दूध कम होने लगता है।
शिशु के तालू में छेद होने के कारण दूध नाक में चला जाता है और उसे सांस लेने में दिक्कत होती है। वह ब्रेस्ट से दूध पीना छोड़ देता है। हार्मोन में गड़बड़ी के चलते भी दूध कम मात्रा में बनता है। कुछ महिलाएं मानसिक तनाव फीगर कांशियस होने की वजह से शिशु को स्तनपान कराने से कतराती हैं। ठीक से न पिलाने पर स्तनों में दूध बनना धीरे-धीरे कम हो जाता है। मां को अगर कैंसर, हार्ट, हाइपो-थॉयराइड जैसी बीमारी है और वह मेडिसिन ले रही है तो दूध उत्पादन प्रभावित होता है। गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल से स्तनपान के लेवल में गिरावट आती है।
लैक्टेशन फेलियर से ऐसे करें बचाव
मां का दूध तभी उतरता है, जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है। बच्चे का स्पर्श स्तनपान प्रक्रिया में जादुई काम करता है। जरूरी है कि नवजात शिशु को जन्म के बाद मां की बगल में ब्रेस्ट के पास लिटाया जाए। बच्चा जितना ज्यादा दूध पीता है, उतनी अधिक मात्रा में दूध उतरता है। यानी शिशु की भूख और स्तनपान कराने के अनुसार दूध बनता है जो समय पर स्तनपान न कराने पर कम होने लगता है।
लें दूसरों की मदद-डिलीवरी के बाद जरूरी है कि मां को घर के कामों के लिए परिवार के सदस्यों की मदद लेनी चाहिए। शिशु को स्तनपान कराना या ज्यादा से ज्यादा शिशु संबंधी काम ही करने चाहिए। इससे वह आराम से ब्रेस्ट फीड करा सकेगी। ज्यादा अंतराल न आने दें- बच्चे को तभी दूध पिलाना चाहिए, जब वो मांगे। लेकिन स्तनपान कराने में 3-4 घंटे से ज्यादा का गैप नहीं रखना चाहिए। हाइजीन का ध्यान-महिला को कोशिश करना चाहिए कि दोनों स्तनों से दूध पिलाए। इससे पहले गर्म पानी से भीगे टॉवल या रुमाल से दूध पिलाने की जगह साफ करना चाहिए ताकि इंफेक्शन का खतरा न हो। पंप का इस्तेमाल-अगर बच्चा नर्सरी में एडमिट है और उसे मां के पास नहीं लाया जा सकता। ऐसी स्थिति में ब्रेस्ट पंप की मदद से मां का दूध 8-10 घंटे के लिए स्टोर कर लिया जाता है और शिशु को दिया जा सकता है। सिजेरियन के बाद दूध पिलाने में मदद- सिजेरियन डिलीवरी के केस में जब मां को दो दिन तक रेस्ट करने को कहा जाता है। ड्रिप या कैथेटर लगे होने, दर्द की वजह से ठीक से बैठ भी नहीं पाती। ऐसी स्थिति में नर्स या परिजनों की मदद लेनी चाहिए। बच्चे को लेटे-लेटे या ब्रेस्ट पंप से दूध निकाल कर दूध जरूर पिलाना चाहिए।
लैक्टेशन काउंसलिंग
फिगर बिगड़ने के डर से स्तनपान कराने से कतराने वाली महिलाओं को लैक्टेशन काउंसलिंग करके समझाया जाता है। जैसे- स्तनपान से रोजाना 300-600 कैलोरी बर्न हो सकती हैं और बढ़े हुए वजन पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। वहीं बैड पर आलती-पालथी मार कर दूध पिलाने के बजाय कुर्सी पर सीधे बैठ कर स्तनपान कराना चाहिए। लेट कर दूध पिलाते हुए तकिये को सिर के नीचे रख कर गर्दन को सपोर्ट दें। ध्यान रखें कि स्तनपान कराते हुए बच्चे की नाक न दबे। नियमित स्तनपान कराने पर महिलाओं में मासिक धर्म चक्र देर से होता है जिससे उनमें गर्भधारण की संभावना कम रहती है। हार्मोनल बदलाव, मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याओं से निजात मिलती है। मेटाबॉलिज्म रिसेट हो जाता है। आहार का ध्यान : स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आहार में अतिरिक्त कैलोरी और पौष्टिक तत्व लेने जरूरी हैं। क्योंकि वो जो खाएंगी, उसका एब्सट्रेक्ट दूध में शामिल होकर बच्चे तक पहुंचता है। भोजन में सभी रंगों की मौसमी फल-सब्जियों और डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल करने चाहिए। समुचित मात्रा में पानी या लिक्विड डाइट लेने से मां को डिहाइड्रेशन की शिकायत नहीं होती, साथ ही दूध बनने में भी मदद मिलती है। भोजन में पर्याप्त मात्रा में लहसुन, अदरक, जीरा, सौंफ, मेथी, कालीमिर्च, अजवाइन, जैसे मसालों का अधिक से अधिक प्रयेाग करें।