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जिन विदेशी कलाकारों के मुरीद रहे दर्शक

समय-समय पर सैकड़ों विदेशी कलाकारों ने बॉलीवुड में अपने अभिनय से भारतीय दर्शकों के दिल में भी जगह बनायी। शुरुआत ‘मेरा नाम जोकर’ की रूसी अभिनेत्री केसेनिया रायबिना से हुई। वहीं टॉम ऑल्टर, रिचर्ड एटनबरो व बॉब क्रिस्टो ने ढेरों...
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समय-समय पर सैकड़ों विदेशी कलाकारों ने बॉलीवुड में अपने अभिनय से भारतीय दर्शकों के दिल में भी जगह बनायी। शुरुआत ‘मेरा नाम जोकर’ की रूसी अभिनेत्री केसेनिया रायबिना से हुई। वहीं टॉम ऑल्टर, रिचर्ड एटनबरो व बॉब क्रिस्टो ने ढेरों फिल्मों में अभिनय कर लोकप्रियता बटौरी। टोबी स्टीफंस, कैलीमिनॉग, बेन किंग्सले, सिल्वेस्टर स्टेलॉन, रेचेल शेली और एंटोनिया बर्नाथ ने भी बॉलीवुड को अपने अभिनय से समृद्ध किया है।

हिंदी सिनेमा की दुनिया हमेशा से विविधता और रंगों से भरी रही है। जहां एक ओर भारतीय कलाकारों ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से सिने दर्शकों का दिल जीता है, वहीं विदेशी कलाकारों ने भी समय-समय पर बॉलीवुड में अपनी उपस्थिति से छाप छोड़ी है। कुछ कलाकार तो बॉलीवुड के रंग में इस कदर रंग गये कि उन्हें सालों बाद भारतीय कलाकारों ने विदेशी मानना ही छोड़ दिया। सरहद पार से आये सैकड़ों कलाकारों ने अपने अभिनय से भारतीय दर्शकों के दिल में भी जगह बनायी है।

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पहली विदेशी हीरोइन केसेनिया रायबिना

बॉलीवुड के कई ऐसे विदेशी कलाकार है जिनके भारतीय मुरीद हैं। उनमें 1970 में राजकपूर द्वारा बनायी गई फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ की रूसी अभिनेत्री केसेनिया रायबिना भी शामिल हैं। बैले डांसर केसेनिया ने पहली बार बॉलीवुड की इस फिल्म में अभिनय किया व दर्शकों के दिलोदिमाग में अमिट छाप छोड़ी। शायद राजकपूर बॉलीवुड के पहले ऐसे दूर की सोचने वाले निर्माता निर्देशक थे, जिनको यह भान था कि बॉलीवुड की कहानी सीमाओं से परे भी जा सकती है। फिल्म मेरा नाम जोकर भले व्यावसायिक रूप से बहुत सफल न रही हो, लेकिन रूसी बैले डांसर केसेनिया रायबिना की खूबसूरती व नृत्य कौशल भारतीय दर्शकों को भाया। केसेनिया रायबिना पहली विदेशी हीरोइन के तौरपर बॉलीवुड में बेहद सफल रहीं।

टॉम ऑल्टर, रिचर्ड एटनबरो व बॉब

अगर बॉलीवुड की सिने दुनिया में सबसे चर्चित, लोकप्रिय और भारतीयों को अपना सा लगने वाला कोई विदेशी कलाकार रहा है, तो वह अमेरिकी मूल के टॉम ऑल्टर थे। टॉम ऑल्टर ने बॉलीवुड की 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। ‘गांधी’, ‘सरदार’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी सफल फिल्मों में उनकी जबर्दस्त लोकप्रियता रही। उनके बाद जिस विदेशी पुरुष कलाकार को बॉलीवुड में जबर्दस्त शोहरत मिली, वह ब्रिटिश मूल के सर रिचर्ड एटनबरो हैं। एटनबरो ने फिल्म ‘गांधी’ में गांधी के केंद्रीय किरदार को तो निभाया ही था, सन 1978 की हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में भी उनकी मुख्य भूमिका थी। तीसरे विदेशी बॉब क्रिस्टो जो कि ऑस्ट्रेलियाई मूल के थे। वह भी बॉलीवुड में लोकप्रिय हुए। बॉब क्रिस्टो ने 200 से अधिक हिंदी फिल्मों में खलनायक या सेना अधिकारी की भूमिकाएं निभायी। इसी क्रम में ऐलिस पैटन, पॉल ब्लैकथॉर्न, रेचेल शेली, मिस बायको, बारबरा मोरी सहित दर्जनों विदेशी कलाकार हैं।

अभिनय और अनुभव से किया समृद्ध

अब तक सभी तरह के 100 से 150 के बीच विदेशी कलाकारों ने हिंदी फिल्मों में अपना योगदान दिया है। टोबी स्टीफंस, क्लाइव स्टैंडन, एरिसेंटे और कैलीमिनॉग जैसे अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने बॉलीवुड को अपने अभिनय और अनुभव से समृद्ध किया है। जिस एक और भारतीय मूल के विदेशी अभिनेता ने भारत में ख्याति हासिल की है, उनमें सर बेन किंग्सले का भी नाम आता है और ‘कमबख्त इश्क’ जैसी फिल्म में हॉलीवुड के चर्चित कलाकारों में से सिल्वेस्टर स्टेलॉन और डेनिस रिचर्ड्स ने भी अपना जलवा बिखेरा है। वहीं चाहे ‘लगान’ की रेचेल शेली और पॉल ब्लैकथॉर्न हों या ‘कभी अलविदा न कहने’ की एंटोनिया बर्नाथ भारतीय सिने दर्शक इन ब्रितानी कलाकारों के अभिनय के मुरीद रहे हैं।

डेनिस रिचर्ड और कैलीमिनॉग

जिन अमेरिकी कलाकारों ने भारत में अपनी जबर्दस्त जगह बनायी है उनमें टॉम ऑल्टर के अलावा डेनिस रिचर्ड और कैलीमिनॉग का नाम लिया जा सकता है। जबकि ‘किक’ में क्लोडियो हेनरी और ‘जय हो’ में मिस बायको भी दर्शकों के बीच छाप छोड़ी है। ‘मेरा नाम जोकर’ से विदेशी कलाकारों की शुरू हुई समृद्ध यात्रा ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘गांधी’, ‘कभी अलविदा न कहना’, ‘लगान’, ‘रंग दे बसंती’ जैसी फिल्मों तक मौजूद है। टॉम ऑल्टर ऐसे गोरे साहब रहे, जिनकी हिंदी, उर्दू बॉलीवुड में हमेशा खास मानी गई और ऑस्ट्रेलियाई मूल के बॉब क्रिस्टो जब-जब बड़े पर्दे में अवतरित हुए, बिना बोले दर्शकों के बीच संदेश चला गया कि अब फिल्म में खलनायक की एंट्री हो चुकी है। फिल्म लगान में अभिनय की छाप छोड़ने वाली ब्रितानी मूल की रेचेल शेली को दर्शक मददगार एलिजाबेथ मैडम के रूप में जानते हैं। फिल्म लगान में ही अंग्रेज अधिकारी के रूप में पॉल ब्लैकथॉर्न अपनी प्रभावशाली छाप छोड़ी। जबकि शाहरूख की विदेशी पत्नी के रूप में एंटोनिया बर्नाथ ने फिल्म ‘कभी अलविदा न कहना’ ने पहचान बनायी। अगर राजकपूर में यह दूरदर्शिता थी कि हिंदी फिल्मों में विदेशी कलाकारों को भी जगह दी जाए, तो आमिर खान, करण जौहर और साजिद नाडियाडवाला ने भी इस सोच और प्रयोग को आगे बढ़ाया है। -इ. रि. सें.

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