तन-मन की सेहत पर निर्भर खुशनुमा अहसास जिंदगी के
स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन की सामाजिक-आर्थिक सफलताओं और व्यक्तिगत उपलब्धियों का आनंद ले सकता है। अगर आप स्वस्थ हैं तभी मन भी खुश रहता है। स्थाई तौर पर बीमार व्यक्ति रोजमर्रा के कामों को लेकर भी दूसरों पर निर्भर हो जाता है। वह खाने, पहनने और घूमने के आनंद से वंचित रहता है। रोगग्रस्त व्यक्ति अकेलापन महसूस करने लगता है। दरअसल रिश्तों को निभाने के लिए भी तन-मन से सेहतमंद होना जरूरी है। व्यवसाय व कैरियर में तरक्की से भी अच्छी सेहत का सीधा संबंध है।
रेखा देशराज
स्वास्थ्य को सबसे बड़ी दौलत माना गया है। अकसर हम यह बात कहते हैं, मगर बीमार हो जाने से पहले कभी भी इसे महसूस नहीं करते। इसका कारण हमारे सोचने, जीने और प्राथमिकताएं तय करने के नजरिये से जुड़ा है। सच तो यह है कि स्वास्थ्य की असली कीमत बीमार होने के बाद ही समझ में आती है कि स्वस्थ रहना किस तरह सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक दृष्टि से बहुत जरूरी है।
खुशियों की पहली शर्त है सेहत
अगर आप दुनिया की सारी संपत्ति के भी मालिक हो जाएं, लेकिन आपके घुटनों में दर्द हो, रात में नींद न आती हो, सांस चढ़ी रहती हो या डायबिटीज अथवा बीपी का डर बना रहता हो, तो आपकी सारी संपत्ति बेकार है, आप किसी का आनंद नहीं ले सकते। हर सुख और खुशी का अनुभव-अहसास हमें स्वास्थ्य से ही होता है। स्वस्थ रहने पर ही हम मनपसंद जगहों पर घूमने जा सकते हैं, जो मन में हो वो खा सकते हैं, जिससे चाहें बातचीत कर सकते हैं और मनपसंद रचनात्मक काम कर सकते हैं। वजह यह कि इन सभी गतिविधियों के लिए हमारी सभी इंद्रियों का सुचारू काम करना जरूरी है। बीमार व्यक्ति इन साधारण लगने वाले कार्यों को भी नहीं कर पाते हैं। दरअसल, अगर आप शरीर से स्वस्थ हैं तभी मन भी सेहतमंद यानी खुश रहता है।
रिश्तों और स्वतंत्रता का आनंद
अगर हम स्वस्थ हैं तो सारे रिश्ते हमें खुशियों से भरे महसूस होते हैं। दोस्ती, परिवार सबका आनंद तभी लिया जा सकता है, जब हम स्वस्थ हों। बीमार व्यक्ति कभी भी रिश्तों का आनंद नहीं ले सकता। दरअसल रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है, अकेलापन महसूस करता है और धीरे-धीरे दूसरों से कट जाता है यानी सामाजिक दूरियां बढ़ जाती हैं। जब शरीर स्वस्थ होता है, तभी भावनात्मक रूप से हम रिश्तों से जुड़ पाते हैं। बीमार व्यक्ति स्वतंत्र महसूस नहीं करता। उसे दूसरों की मदद लेनी पड़ती है - दवा खिलाने से लेकर चलने-फिरने तक।
सारी सफलताओं का सुख
चाहे धन हो, ज्ञान हो या आर्थिक कामयाबी हो, इन सब सफलताओं का आनंद तभी है, जब आप स्वस्थ हों। अगर आप अमीर होकर भी अस्पतालों में समय बिता रहे हैं, तो आपका धन निरर्थक है। आपके दिमाग में न्यूरोलॉजी की परेशानी है, तो ज्ञान किस काम का। अगर आप प्रसिद्ध होकर भी ऊर्जाहीन हैं, तो शोहरत बोझ बन जाती है। यानी संपत्ति, गौरव और सफलता तभी आपको खुशी देगी, जब आप स्वस्थ हों। बीमार व्यक्ति की सारी खुशियों का रस फीका होता है। मान लीजिए घर में शादी है, मगर आप शुगर के मरीज हैं तो कुछ नहीं खा सकते। वहीं घर में कोई फंक्शन है और आपको बहुत तेज बुखार है, न तो आप बज रहे संगीत से खुशी महसूस करते हैं, न तो डांस में हिस्सा ले सकते हैं और न ही अच्छे भोजन और रिश्तों का आनंद ले सकते हैं। ये सारी खुशियां तभी तक हैं, जब तक आप तन और मन से स्वस्थ हों। अस्वस्थ व्यक्ति प्रकृति का भी आनंद नहीं ले सकता, सूर्योदय देख खुशी नहीं महसूस करता। ऐसा व्यक्ति नौकाविहार नहीं कर सकता और न ही संगीत का आनंद ले सकता है।
स्वस्थ होना महत्वपूर्ण क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्वास्थ्य केवल बीमारी या दुर्बलता का अभाव मात्र नहीं है बल्कि यह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से संपूर्ण कुशलता की स्थिति है। स्वस्थ रहना इसलिए महत्वपूर्ण है कि इससे शरीर की सभी प्रणालियां ठीक से काम करती हैं और कोई भी व्यक्ति रोजमर्रा के कार्य बिना थकान या परेशानी के कर सकता है। स्वस्थ रहने से मन में संतुलन, सोच में सकारात्मकता और तनाव में प्रबंधन की क्षमता रहती है यानी हम हर चुनौती का सहजता से सामना कर सकते हैं। स्वस्थ रहने से हमारे सामाजिक संबंध अच्छे रहते हैं। हम हर जगह अपने हिस्से की सकारात्मक भूमिका अदा कर सकते हैं। कुल मिलाकर स्वस्थ व्यक्ति ही गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकता है। स्वस्थ व्यक्ति ही सभी जरूरी काम करने की क्षमता रखता है। घर और समाज के आर्थिक उत्पादन में भरपूर योगदान दे सकता है। सेहतमंद शख्स ही सामाजिक योगदान देने में भी सक्षम होता है। वही दीर्घायु होता है और समाज में सकारात्मक ऊर्जा और विकास करने में सहायक होता है। स्वास्थ्य न केवल किसी एक व्यक्ति बल्कि सम्पूर्ण समाज के विकास और समृद्धि का आधार है।
कैरियर के नजरिये से सेहत
स्वस्थ रहना एक बहुत बड़ा एसेट है। इसे जब हम कारपोरेट एंगल से देखते हैं, तब सही से समझ पाते हैं कि सेहतमंद होना केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं है बल्कि हमारे व्यवसाय व कैरियर के विकास और लाभप्रदता से भी इसका सीधा रिश्ता है। स्वस्थ रहना केवल हमारी शारीरिक ही नहीं बल्कि कैरियर संबंधी उपलब्धि भी है। क्योंकि हर कंपनी केवल स्वस्थ कर्मचारी ही रखना चाहती है, क्योंकि स्वस्थ कर्मचारी कंपनी द्वारा किया गया गुड इन्वेस्टमेंट होता है। यदि कर्मचारी मानसिक-शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो वह समय पर काम पर आयेगा और ज्यादा छुट्टियां नहीं करेगा। उच्च गुणवत्ता वाला आउटपुट दे सकता है। उसकी सोच इनोवेटिव और समाधान ढूंढ़ने वाली होगी। यही वजह है कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट वाली जैसी कंपनियां इम्प्लॉयी वेलनेस को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। कंपनी के कर्मचारी स्वस्थ होते हैं तो उसकी उत्पादकता बेहतर होती है। क्योंकि स्वस्थ कर्मचारी ही समय पर अपने प्रोजेक्ट पूरे करते हैं। हार्वर्ड बिजनेसन रिव्यू के मुताबिक जिन कंपनियों ने एंप्लॉई वेलनेस प्रोग्राम अपनाया है, उनमें अनुपस्थिति 25-30 फीसदी कम पायी जाती है। -इ.रि.सें.