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अंधेरी दुनिया का स्याह सच

यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर इंटरनेट की अंधेरी दुनिया के रूप में डार्क वेब का सृजन किसने और क्यों किया। क्या उसका काम हमें दिखने वाले इंटरनेट से नहीं चल रहा था। या फिर उसका मकसद असल में...
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यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर इंटरनेट की अंधेरी दुनिया के रूप में डार्क वेब का सृजन किसने और क्यों किया। क्या उसका काम हमें दिखने वाले इंटरनेट से नहीं चल रहा था। या फिर उसका मकसद असल में इंटरनेट के साम्राज्य के लिए नई चुनौती खड़ी करना था। इन सवालों की पड़ताल हमें डार्क नेट के इतिहास और इसके आविष्कार की जरूरतों की ओर ले जाती हैं। इंटरनेट की ईजाद के साथ 1970 के दशक में ‘डार्कनेट’ शब्द को इंटरनेट की सुरक्षा के उद्देश्यों से उस समय प्रचलित अरपानेट (Advanced Research Projects Agency Network) से पृथक एक नई धारा के इंटरनेट के रूप में चर्चा मिली थी। लेकिन जब अरपानेट ही मुख्यधारा का इंटरनेट बन गया तो डार्कनेट की पहचान ऐसे इंटरनेट के रूप में होने लगी जिसे आसानी से खोजा न जा सके। इंटरनेट की इस खुफिया दुनिया को ‘डार्क वेब’ कहा जाने लगा। 1990 के दशक में अमेरिकी सेना ने एक नई तकनीक टॉर ब्राउज़र का यह कहते हुए खुलासा किया कि इसके माध्यम से गुप्तचर संगठन कुछ खास समूहों या समुदायों से गुमनाम रहते हुए संपर्क साध सकते हैं। इसके लिए अमेरिकी सेना में द ओनियन राउटर को सार्वजनिक रूप से जारी किया, जिसे लेकर इंटरनेट की दुनिया में काफी हलचल मची। टॉर ब्राउज़र की खूबी है कि इसके तहत कायम किए गए वेबलिंक्स को किसी खास उद्देश्य से कायम करने के कुछ घंटों या कुछ दिन बाद इंटरनेट से हटाया या गायब किया जा सकता है। ऐसे में इन वेबलिंक्स के जरिये संपन्न हुए कार्यों की भविष्य में पड़ताल करना मुमकिन नहीं। वर्ष 2015 में इंटरनेट के खतरों पर नजर रखने वाली फर्म- रिकॉर्डेड फ्यूचर ने इंटरनेट और डार्क वेब के बीच संबंधों की पड़ताल करते हुए एक श्वेतपत्र प्रस्तुत किया था। इसमें बताया गया कि डार्कवेब के तहत आरंभ में ऐसे इंटरनेट लिंक (यूआरएल) विकसित किए जाते हैं, जिन पर आसानी से कोई भी कुछ कोड या सामग्री डाल (अपलोड कर) सके, लेकिन मकसद पूरा होने के बाद टॉर नेटवर्क पर बनाए गए ये लिंक गायब हो जाते हैं। इससे डार्कवेब पर संपन्न हुए मसौदों की छानबीन नहीं हो पाती है। यही वजह है कि डार्कवेब दुनिया भर की आपराधिक गतिविधियों का अड्डा बन गया। इस पर हथियारों, नशीले पदार्थों की खरीद-फरोख्त, नकली मुद्रा, जालसाजी और मानव तस्करी व पोर्न जैसे काम अंजाम दिए जाने लगे। कंप्यूटरों की हैकिंग और बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो (वर्चुअल) करेंसियों के लेनदेन में भी इसी डार्कवेब का सहारा लिया जाने लगा क्योंकि इन मुद्राओं को आज भी कई देशों में कानूनी मान्यता या वैधता नहीं। चूंकि डार्कवेब गैरकानूनी कामधंधों के संचालन का प्रमुख जरिया है, इसलिए इससे जुड़े लोगों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। हालांकि एक सिक्योरिटी फर्म- बीटीबी के मुख्य सूचना सुरक्षा सलाहकार मैट विल्सन का मत है कि डार्कवेब की कई समस्याएं और खराबियां हो सकती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इस पर मौजूद हर शख्स अपराधी ही हो। कई बार लोग अनजाने में भी या उत्सुकतावश टॉर ब्राउजर के इस्तेमाल से डार्कवेब पर अपनी कुकिंग रेसिपी या यात्रा के विवरण साझा करते हैं। उस पर अपने वीडियो, किताबें या ईमेल साझा करते हैं। इसके पीछे उनका उद्देश्य एक ऐसे बड़े इंटरनेट समुदाय से जुड़ना होता है जो सरकारी किस्म की निगरानी से दूर हो। बहुत बार लोग इंटरनेट का नए तरीके से इस्तेमाल करना सीखने के लिए भी डार्कवेब की शरण में आ जाते हैं। ऐसे लोगों का अपराध या गैरकानूनी गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं होता।

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-सं.व.

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