अंग्रेजों ने बसाया भारतीयों को रास आया
दक्षिण भारत की हरी-भरी पहाड़ियों में बसा यह रमणीय स्थल अपनी खूबसूरत झरनों, फूलों और प्राकृतिक नजारों के लिए जाना जाता है। यहां की ठंडी हवा, शांत वातावरण और घने जंगल इसे प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आदर्श बनाते हैं। यह जगह हर मौसम में मन को सुकून देती है।
दक्षिण भारत के तमिलनाडु की पलानी पर्वतमाला पर बसा कोडेकनाल खूबसूरती में अच्छे-अच्छे हिल स्टेशनों को मात देता है। इसीलिए इसे ‘एमरल्ड ऑफ साउथ’ यानी ‘दक्षिण का पन्ना’ कहा जाता है। कोडेकनाल की बेमिसाल छटाओं के चलते यह ‘ईस्ट का स्विट्ज़रलैंड’ भी कहलाता है। चूंकि कोडेकनाल तमिल शब्द है, जिसका मतलब ही है ‘जंगल का तोहफा’। सो, कोडे वाकई जंगलों की नायाब सौगात है- पलानी हिल्स का समूचा इलाका 87 किलोमीटर लम्बे और 24 किलोमीटर चौड़े जंगलों में जो फैला है। और इन्हीं पहाड़ी जंगलों का हिस्सा कोडेकनाल है। पहाड़ी नजारे, फूलों की बहारें, चढ़ाइयां और उतराइयां, चट्टानें, झरने और झीलों का लुत्फ कोडेकनाल की खासियतों में शुमार है।
कोडेकनाल की खोज करीब डेढ़ सौ साल पहले अमेरिकियों ने की थी। सन् 1845 में, पहले-पहले अमेरिकी नागरिकों ने दो रिहायशी बंगले बनाए। उन्हें मदुरै की गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई और पहाड़ों पर जाकर बसने को मजबूर किया। फिर देखा-देखी ब्रिटिश गोरों ने भी गर्मियों के मौसम में कोडे जाना शुरू किया। सन् 1879 आते-आते, यूरोप के करीब 75 लोग कोडे आ बसे। धीरे-धीरे यूरोपियों का कोडे की ओर रुख बढ़ता गया और कोडे को अपना ठंडा ठिकाना बना लिया।
सर वीरो की बनाई झील
कोडेकनाल के दिलकश नजारे निखारने में, मदुरै के कलेक्टर सर वीरो का खासा रोल रहा। वह 1860 में कलेक्टर बने और 1867 में उन्होंने कोडे में ही बसने की ठान ली। उन्होंने कोडेकनाल को निखारने में गहरी दिलचस्पी दिखाई। मदुरै से कोडे तक सड़क मार्ग का निर्माण उन्हीं के कार्यकाल में हुआ। उन्होंने पेड़-पौधे, फूल और सब्जियां उगाईं। और खूबसूरत झील भी बनवाई। बताते हैं कि सन् 1863 में, सर वीरो ने अपने निजी पैसे से, कोडेकनाल के बीचोंबीच स्टार फिश के आकार की एक खासी बड़ी झील बनवाई। यानी कोडे की झील कुदरती नहीं है, इंसान की बनाई है। तभी से इसमें बोटिंग शुरू हुई। नाम है बेरीजम लेक और करीब 60 एकड़ में फैली है। इसे कोडे का दिल कह सकते हैं।
बारह साल में खिलने वाला फूल
बेरीजम लेक के इर्द-गिर्द 5 किलोमीटर सड़क है। बोटिंग करने वालों के लिए लेक है, तो पैदल चलने के शौकीनों को यह सड़क लुभाती है। इसे कोकरस वॉक कहते हैं। पैदल पथ का निर्माण सन् 1872 में लेफ्टीनेट वोकरय ने करवाया था। वॉक यूनियन चर्च से शुरू होती है। लेक के नजदीक ही एक और आकर्षण है ब्रेयंत पार्क। करीब 20 एकड़ में फैले बोटेनिकल गार्डन में खिले फूलों की बहार क्या खूब है। बाग में गुलाब की ही साढ़े सात सौ किस्में देखने का मौका मिलता है। यही नहीं, किस्म-किस्म के सवा 300 फूलों को संजोया गया है। यहां एक से एक पहाड़ी फूल खिले हैं। और हां, बीते 100 सालों से पार्क एक रेअर फूल ‘कुरिंजी’ के लिए मशहूर है। बताते हैं कि यह कुंभ की तरह 12 सालों में एक बार खिलता है।
बीयर शोला और सेवन रोड कोडे के जाने- माने बाजार हैं। ग्रीन वैली व्यू, बीयर शोला फ़ॉल्स, पिलर रॉक्स और फैरी फ़ॉल्स अन्य आकर्षक हैं। रोमांच पसंद हैं, तो ट्रेकिंग के लिए कुकरे केब, पीरूमल हिल्स, बेरीजम हिल्स और डॉल्फ़िन नोज आपका इंतजार कर रहे हैं। साइकिलिंग भी खूब होती है।
साथ में ऊटी और कुन्नूर
उत्तर भारत के शहरों से सुदूर दक्षिण के हिल स्टेशन कोडेकनाल जाएं, तो लगे हाथ ऊटी भी घूम आना बनता है। तपते तमिलनाडु के ठंडे ठिकानों में कोडेकनाल के साथ-साथ ऊटी और कुन्नूर भी शुमार हैं। और फिर, ऊटी तो समूचे दक्षिण का बेस्ट हिल स्टेशन है। कोयम्बटूर से आगे 88 किलोमीटर के टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते तय कर, ऊटी पहुंचते हैं। सड़क से जाएं या नीलगिरी माउंटेन रेलवे की टॉय ट्रेन से, दोनों ओर खजूर के ऊंचे-पतले पेड़, बांस की खेती, हरियाली और चट्टानें देख-देख मन लहलहा उठता है। बीच-बीच में, चाय और कॉफ़ी के बागान भरी वादियां और दिलकश नजारे उभारती हैं। कह सकते हैं कि पिक्चर परफेक्ट।
ऊटी भी ज्यादा पुराना हिल स्टेशन नहीं है। दौ सौ साल का ही हुआ है। ऊटी का पहली दफा उल्लेख मद्रास गजट में सन् 1821 में मिलता है। पहले यहां टोडा जनजाति का डेरा रहा। कभी मामूली गांव आज ऊटी के रूप में पहाड़ों पर फैला पूरा शहर है। ऊटी को हिल स्टेशन के तौर पर विकसित करने में अंग्रेज़ जॉन सुलिवन का हाथ है। जॉन सुलिवन 1815 से 1830 तक कोयम्बटूर का कलेक्टर रहा है। दिलचस्प बात है कि कोडे लेक की भांति ऊटी लेक भी गैर-कुदरती है। इसे जॉन सुलिवन से सन् 1823 से 1825 के बीच बनवाया था। नीलगीरी हिल्स के सबसे ऊंचे शिखर दोडबेट्टा जाएं, तो ऊटी के पहाड़ों, पठारों और मैदानों के हसीन नज़ारे आंखों के सामने होते हैं।
नीलगीरी हिल्स का ही दूसरा बड़ा हिल स्टेशन कुन्नूर है। ऊटी से करीब पौना घंटा पहले आता है और कोयम्बटूर से 71 किलोमीटर की दूरी पर है। फैला है 14 वर्ग किलोमीटर इलाके में। सिम्स पार्क, लैंस रॉक, लेडी केनिंग्स सीट, डॉलमिंस नोज, रेलिया डेम, कालार फॉर्म, लाज फाल्स वगैरह देख-देख भी पर्यटकों का मन नहीं भरता। दूर-दूर तक फैले बागान, दौड़ते घोड़े और पहाड़ी वादियों का झर-झर म्यूजिक तन-मन सुकून से सराबोर कर देता है। पेड़ों से तोड़-तोड़ संतरे खाएं, लोकल चाय की चुस्कियां भरें, घोड़े पर सरपट दौड़ें या फिर गुनगुनी धूप में सुस्ताएं- बार-बार कुन्नूर जाने को जी करेगा।
कैसे जाना, कब जाना
कोडेकनाल कैसे जाएं? कोडे जाने के लिए हवाई रास्ते से मदुरै या कोयम्बटूर जा सकते हैं। मदुरै से आगे 120 किलोमीटर और कोयम्बटूर से 175 किलोमीटर सड़क का सफर तय कर कोडे पहुंचते हैं। मदुरै सबसे नजदीकी एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन है। वैसे, ट्रेन कोड़े रोड रेलवे स्टेशन तक जाती है, जो कोडेकनाल से 80 किलोमीटर परे है।
कोडेकनाल पलानी हिल्स की पश्चिमी तरफ है। समुद्र तल से 2,133 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। फैला है करीब साढ़े 21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में। सैर के लिए अप्रैल, मई और जून श्रेष्ठ महीने हैं। लेकिन नवम्बर और दिसम्बर में जाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि जम कर बरसता है। खास बात है कि उत्तर भारत के ज्यादातर हिल स्टेशंस से उलट, यहां बर्फ नहीं पड़ती। क्योंकि यह इक्वेटर के करीब है।