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हरित क्रांति के जरिये खाद्य सुरक्षा के सूत्रधार

जन्म शताब्दी वर्ष : डॉ.एम. एस. स्वामीनाथन
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भुखमरी के समाधान का संकल्प डॉ.एम. एस. स्वामीनाथन ने बालकपन में ही ले लिया था। उन्होंने साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर व कैम्ब्रिज विवि के प्लांट ब्रीडिंग संस्थान से पीएच.डी. की। भारत लौटने पर 1960 के दशक में उन्होंने अमेरिकी कृषिविद् डॉ.नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर उच्च उत्पादकता वाली अनाज की किस्में विकसित की। ये प्रयास हरित क्रांति की चिंगारी बने, जिसने देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया।

भारतीय हरित क्रांति के जनक डॉ. मंकोम्बु शांबसिवन स्वामीनाथन का जन्मशताब्दी वर्ष 2025 राष्ट्र के लिए गर्व का क्षण है और भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली आनुवंशिकी वैज्ञानिक की शाश्वत विरासत का उत्सव भी। डॉ.एम. एस. स्वामीनाथन ने भारत को भुखमरी के कगार से उबारकर अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया तथा स्थायी खाद्य सुरक्षा की मजबूत नींव रखी। आज की युवा पीढ़ी प्रो. स्वामीनाथन के आदर्शों, दृष्टि और विरासत से अपार प्रेरणा ले सकती है, जिससे यह जन्मशताब्दी केवल स्मरण का दिन न रहकर विज्ञान, कृषि, स्थिरता और सामाजिक समानता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से सीखने का एक अवसर बन जाती है। बता दें कि डॉ. स्वामीनाथन भारत रत्न से भी नवाजे गये थे वहीं वे सांसद भी रहे।

भुखमरी के समाधान का संकल्प

डॉ. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम में हुआ था। साल 1943 के बंगाल में अकाल पड़ा जिसमें करीब 30 लाख लोगों की मौत हुई। इस त्रासदी ने बालक स्वामीनाथन को झकझोर दिया। उन्होंने निश्चय किया कि विज्ञान के माध्यम से भुखमरी की समस्या का समाधान ढूंढना है। उन्होंने ज़ूलॉजी से कृषि-विज्ञान की ओर रुख किया और अपना जीवन राष्ट्र में खाद्य-सुरक्षा की खोज को समर्पित कर दिया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली से साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर के बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा दी, जिसमें उनका चयन आईपीएस के लिए हुआ। लेकिन उन्होंने आईपीएस छोड़कर नीदरलैंड्स में यूनेस्को की आनुवंशिकी छात्रवृत्ति स्वीकार की। नीदरलैंड्स से आठ माह बाद स्वामीनाथन इंग्लैंड चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कृषि संकाय के प्लांट ब्रीडिंग संस्थान से पीएच.डी. प्राप्त की। इसके उपरांत अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में डेढ़ वर्ष पोस्ट-डॉक्टोरल शोध सहायक के रूप में कार्य किया।

सहयोग और क्रांति

सन् 1954 में डॉ.स्वामीनाथन उस समय भारत लौटे जब देश गंभीर अनाज संकट और विदेशी आयातों पर भारी निर्भरता से जूझ रहा था। साल 1960 के शुरुआती दशक में उन्होंने महान अमेरिकी कृषिविद् डॉ.नॉर्मन बोरलॉग के साथ हाथ मिलाया, जिन्हें व्यापक रूप से ‘हरित क्रांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है। डॉ.बोरलॉग और डॉ.स्वामीनाथन ने मिलकर उच्च उत्पादकता वाली और रोग-रोधी गेहूं की किस्मों पर अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त किया, जिसने भारतीय कृषि को नई दिशा प्रदान की। जहां डॉ.बोरलॉग की मैक्सिको में विकसित अर्ध-बौनी गेहूं की किस्मों ने पहले ही भुखमरी से पीड़ित अनेक देशों को बचाया था, वहीं डॉ.स्वामीनाथन ने इन किस्मों को भारतीय मिट्टी, जलवायु और खेती की पद्धतियों के अनुरूप ढालकर परिष्कृत किया। यह साझेदारी भारत की हरित क्रांति की चिंगारी भी बनी, जिसने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की।

उच्च पैदावार वाली किस्मों से भरपूर फसल

हरित क्रांति भारत के लिए जीवनदायिनी साबित हुई। देश में खाली अनाज भंडार, कम उपज देने वाली फसलें और विदेशी सहायता पर अस्वस्थ निर्भरता थी। ऐसे समय में डॉ.स्वामीनाथन द्वारा प्रस्तुत नई उच्च उपज किस्म (एचवाईवी) के बीजों ने भारतीय किसानों को वर्षों बाद भरपूर फसल का अनुभव कराया। बंजर खेत अनाज के भंडारों में बदल गए। सबसे लोकप्रिय आईआर–8 धान और मैक्सिकन अर्ध बौनी गेहूं की किस्में थीं। हरित क्रांति ने रासायनिक खाद, सिंचाई तकनीकों और कृषि उपकरणों का भी परिचय कराया। एक दशक में ही भारत का गेहूं उत्पादन 1965 के 1 करोड़ टन से बढ़कर लगभग 2 करोड़ 30 लाख टन तक पहुंच गया। डॉ.स्वामीनाथन की कड़ी मेहनत और समर्पण ने आज के भारत की नींव रखी- भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक और दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है।

मुख्य वैश्विक योगदान

भारत की हरित क्रांति के शिल्पकार डॉ.एम. एस. स्वामीनाथन ने न केवल देश को अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि पूरी दुनिया को सतत कृषि और पर्यावरण संरक्षण की दिशा दिखाई। 1982 से 1988 तक वे फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूटके महानिदेशक रहे। इसी दौरान उन्हें पहला वर्ल्ड फ़ूड प्राइज़ (1987) मिला, जिसे उन्होंने एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फ़ाउंडेशन की स्थापना में लगाया। आज यह संस्था उनकी पुत्री वैज्ञानिक डॉ.सौम्या स्वामीनाथन के नेतृत्व में कार्यरत है। मैन्ग्रोव वनों की तटीय सुरक्षा में भूमिका को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने का श्रेय भी उन्हें जाता है। वहीं बतौर संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी परियोजना सह-अध्यक्ष भूख व गरीबी उन्मूलन तथा सतत कृषि पर वैश्विक रणनीतियां बनाईं।

बायो हैप्पीनेस की अवधारणा

सतत विकास और सामंजस्यपूर्ण जीवन पद्धति के प्रबल समर्थक के रूप में, स्वामीनाथन ने बायोहैप्पीनेस की सुंदर अवधारणा प्रस्तुत की। उनके अनुसार वास्तविक खुशी तभी संभव है जब मानव और उसके चारों ओर का प्राकृतिक पर्यावरण दोनों साथ-साथ फलें-फूलें। स्वामीनाथन ने कहा था — ‘यदि कृषि गलत हो जाए, तो और कुछ भी सही नहीं हो सकता।’ 28 सितम्बर 2023 को दुनिया ने डॉ. स्वामीनाथन को खो दिया। उनके द्वारा समर्थित आदर्श आज भी एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फ़ाउंडेशन के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं।

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