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सेवा में कमी की भरपाई एयरलाइन का दायित्व

कंज्यूमर राइट्स
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हवाई यात्रा में देरी होने, फ्लाइट रद्द होने, ओवरबुकिंग होने पर या हादसे की स्थिति में यात्री को संबंधित विमान कम्पनी से मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार है। डीजीसीए के नियमों के तहत यात्री हितों के संरक्षक कानून मौजूद हैं। हालांकि अगर देरी का कारण एयरलाइंस के नियंत्रण से बाहर है तो क्षतिपूर्ति देय नहीं।

इन दिनों विमान दुर्घटनाओं को लेकर लोग डरे हुए हैं। साथ ही विमान सेवाओं में कमी पर यात्रियों को क्या मुआवजा मिल सकता है, इस सवाल को लेकर आमजन संशय में हैं। वास्तव में हवाई यात्रा में देरी होने, फ्लाइट रद्द होने या ओवरबुकिंग होने पर यात्री विमान कम्पनी से मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं। एविएशन रेगुलेटर डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने यात्रियों के हितों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण नियम बनाए हुए हैं। अगर हवाई यात्रा में 24 घंटे से कम की देरी होती है तो संबंधित यात्री एयरपोर्ट पर भोजन और रिफ्रेशमेंट प्राप्त करने का हकदार है,जबकि 24 घंटे से ज्यादा की देरी होने पर यात्री को मुफ्त में होटल में रहने की भी सुविधा मिलती है। होटल का चुनाव एयरलाइंस की पॉलिसी के अनुसार किया जाता है। हालांकि डीजीसीए के नियमों के तहत अगर हवाई यात्रा में देरी का कारण एयरलाइंस के नियंत्रण से बाहर है तो वह यात्रियों को मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होगी। जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, प्राकृतिक हादसा, गृह युद्ध, बम विस्फोट, दंगा, उड़ान को प्रभावित करने वाला सरकारी आदेश और हड़ताल शामिल है।

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फ्लाइट रद्द होती है तो...

अगर हवाई यात्रा रद्द होती है तो एयरलाइंस, बिना अतिरिक्त किराया लिए, यात्री को यात्रा के दूसरे विकल्प देने को बाध्य होगी। अगर यात्री दूसरी फ्लाइट या दूसरी एयरलाइंस की फ्लाइट में यात्रा नहीं करना चाहता है तो उसको टिकट की पूरी कीमत वापस की जाएगी। अगर फ्लाइट रद्द होने से तीन घंटे पहले यात्री को वैकल्पिक व्यवस्था की सूचना नहीं दी जाती है तो एयरलाइंस को यात्रा के ब्लॉक टाइम के अनुसार मुआवजा देना होगा। ब्लॉक टाइम का अभिप्राय, यात्री की फ्लाइट गंतव्य तक जाने में जो समय लेती है,से है। एक घंटे के ब्लॉक टाइम वाली फ्लाइट के लिए 5000 रुपये और दो घंटे के ब्लॉक टाइम वाली फ्लाइट के लिए 7000 रुपये या दोनों स्थिति में एक तरफ की बुकिंग के बेस फेयर व एयरलाइन का फ्यूल चार्ज, इनमें से जो भी कम हो वह मुआवजा यात्री को दिया जाएगा। दो घंटे से ज्यादा के ब्लॉक टाइम वाली फ्लाइट के लिए 10,हजार रुपये या एक तरफ की बुकिंग के बेस फेयर में एयरलाइन का फ्यूल चार्ज जोड़कर, दोनों में से जो कम हो यात्री को दिया जाएगा।

ओवरबुकिंग की स्थिति में

बहुत सी एयरलाइंस खाली सीटों के साथ उड़ान की संभावनाओं को कम करने के लिए ओवरबुकिंग कर लेती हैं, यानि सीटों की संख्या से ज्यादा यात्रियों की बुकिंग कर लेती हैं। ऐसे में कई बार यात्रियों को कंफर्म बुकिंग होने के बाद भी एयरलाइंस बोर्डिंग की अनुमति नहीं देती। ऐसे में एयरलाइन को यात्रियों के लिए उस फ्लाइट के टेक ऑफ टाइम से एक घंटे के अंदर दूसरी फ्लाइट का इंतजाम करना होगा। ऐसा न कर पाने पर यात्री एयरलाइन से मुआवजा लेने का अधिकारी होगा। यात्री ने जिस फ्लाइट के लिए बुकिंग की है अगर एयरलाइन उसके समय से एक घंटे के बाद और 24 घंटे के अंदर यात्री को दूसरी फ्लाइट उपलब्ध कराती है तो यात्री एक तरफ की यात्रा के बेस फेयर का 200 प्रतिशत और एयरलाइन का फ्यूल चार्ज जोड़कर मुआवजा पाने के हकदार होगा। ये मुआवजा अधिकतम 10 हजार रुपये तक हो सकता है। अगर 24 घंटे बाद यात्री को दूसरी फ्लाइट उपलब्ध कराई जाती है तो यात्री एक तरफ की यात्रा के बेस फेयर का 400 प्रतिशत और एयरलाइन का फ्यूल चार्ज जोड़कर मुआवजा पाने का हकदार होगा। यह मुआवजा अधिकतम 20 हजार रुपये हो सकता है।

सुरक्षा के जोखिमों की स्थिति में मुआवजा 

विमान हादसे की स्थिति में भी मुआवजा तय होता है। अगर कोई विमान हादसा इंटरनेशनल उड़ान में होता है, तो मुआवजे का निर्धारण मोंट्रियल कन्वेंशन 1999 के तहत किया जाएगा। इस कन्वेंशन के तहत हर यात्री के लिए 128,821 स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स तक का मुआवजा निर्धारित है जो भारतीय करेंसी में लगभग 1.4 करोड़ रुपये है। यदि यह सिद्ध हो जाए कि हादसा एयरलाइंस की लापरवाही से हुआ है, तो मुआवजे की राशि और भी अधिक हो सकती है। भारतीय एयरलाइंस कंपनियां घरेलू उड़ानों में भी यात्रियों को लगभग वैसी ही सुरक्षा देती हैं। घरेलू उड़ानों में मुआवजे की राशि अलग-अलग हो सकती है, लेकिन ज्यादातर कंपनियां 20 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक का कवरेज देती हैं जो एयरलाइन और इंश्योरेंस कंपनी की साझा जिम्मेदारी होती है।

ट्रैवल इंश्योरेंस के अलग फायदे

कई लोग अपनी यात्रा के दौरान ट्रैवल इंश्योरेंस लेते हैं, अगर किसी यात्री ने हादसे से पहले बीमा कराया है, तो उसे इस पॉलिसी से अतिरिक्त फायदे मिलते हैं। बीमा कंपनियां आमतौर पर 25 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक का आकस्मिक मृत्यु बीमा क्लेम देती हैं। साथ ही 5 लाख से 10 लाख रुपये तक का स्थायी विकलांगता बीमा कवरेज भी होता है। यह बीमा राशि परिवार को अलग से बीमा धन के अलावा मिलती है।

                                                                                                                                                                                             - लेखक उपभोक्ता मामलों के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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