बेडसोर से बचाव के लिए शुरू में ही एहतियात बरतें
बेडसोर यानी बेड पर लेटे-लेटे जख्म बन जाना। यह हड्डी और बेडशीट के बीच में प्रेशर से बनता है। एक ही करवट लेटे रहने के कारण मरीजों के शरीर की हड्डी और वजन बेड पर प्रेशर डालते है। त्वचा लगातार दबती है व वहां की कोशिकाएं घाव का रूप ले लेती हैं। बेडसोर के कारणों, एहतियात व इलाज को लेकर दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल के सीनियर फिजीशियन डॉ. मोहसिन वली से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
Advertisementकेस स्टडी-नेहा के पति का डेढ़ महीने पहले ब्रेन हैमरेज हुआ था जिसकी वजह से वो कोमा में चले गए थे। पच्चीस दिन अस्पताल में रहने के बाद थोड़ी हालत सुधरने पर नेहा उन्हें घर ले आई थी। बेड रिडन होने के कारण नेहा उनका पूरा ध्यान रखती थी। उसने गौर किया कि उसकी पीठ और कंधे पर लाल रैशेज हो रहे हैं। उसने डॉक्टर को कंसल्ट करना मुनासिब समझा। डॉक्टर ने चैकअप करके बताया कि यह रैशेज बेडसोर के कारण हो रहे हैं। जो उसके पति के एक ही पोजिशन में लेटे रहने की वजह से हुए हैं। शुरुआती स्टेज होने पर डॉक्टर ने उसे कुछ मेडिसिन दी और पूरा एहतियात बरतने की सलाह दी। नेहा की मेहनत से कुछ दिनों में बेडसोर की समस्या गंभीर होने से बच गई।
क्या है बेडसोर
बेडसोर यानी बेड पर लेटे-लेटे प्रेशर से जख्म बन जाना। इसे प्रेशर सोर या डिक्यूबिटस अल्सर भी कहा जाता है क्योंकि हड्डी और बेडशीट के बीच में प्रेशर से बनता है। एक ही पोजिशन में लेटे रहने के कारण ऐसे मरीजों के शरीर की हड्डी और वजन बेड पर प्रेशर डालती है जिसकी वजह से उसके बीच की त्वचा लगातार दबती रहती है। वहां की त्वचा की कोशिकाओं और अंदरूनी मसल्स में रक्त संचार काफी कम हो जाता है। समुचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते, रक्त के साथ गंदगी वहीं इकट्ठा होने लगती है। त्वचा की कोशिकाएं घाव का रूप ले लेती हैं जिसे बेडसोर कहते हैं। समुचित उपचार न कराने पर उस टिशू में पस पड़ जाती है। यह पस खून में मिल कर पूरे शरीर में पहुंच सकती है। सेप्टिसीमिया होने की स्थिति में मरीज की जान भी जा सकती है।
वर्तमान में बेडसोर एक गंभीर स्थिति है जिससे बहुत सारे लोग जूझ रहे हैं। इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह कई बार नासूर बन जाते हैं या शरीर में इंफेक्शन फैलाकर गैंग्रीन की स्थिति पैदा कर सकते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि अगर एक बार बेडसोर हो गया, तो ठीक होने की उम्मीद काफी कम रहती है। लेकिन अगर शुरुआत में इसे डायगनोज कर लें और मेडिकेशन के साथ एहतियात बरतें, तो बचाव हो सकता है।
रोग की चार स्टेज
बेडसोर की मूलतः 4 स्टेज होती हैं जिसकी वजह से इसे शुरुआत में ही पहचाना जा सकता है : ग्रेड एक में प्रभावित जगह पर लगातार प्रेशर पड़ने से त्वचा लाल हो जाती है। ग्रेड 2 में स्किन काली पड़ जाती है। त्वचा की ऊपरी लेयर डैमेज हो जाती है जो अल्सर का रूप लेने लगती है। ग्रेड 3 में बेडसोर का जख्म गहरा होता जाता है और त्वचा के अंदरूनी टिशू भी प्रभावित हो जाते हैं। इंफेक्शन की संभावना ज्यादा रहती है। ग्रेड 4 में बेडसोर का घाव प्रभावित हड्डी तक पहुंच जाता है।
किन जगहों पर होते हैं बेडसोर
अक्सर मरीज सीधा लेटा हुआ होता है, तो बेडसोर के घाव उसके सिर के पिछले हिस्से में, कंधे के पिछली तरफ, पीठ, कोहनी, नितंबों, टेलबोन या एड़ी पर ज्यादा बनते हैं। अगर मरीज एक साइड करवट लेकर लेटा होता है तो उस साइड के कान, कंधे, कोहनी, नितंब, घुटने या टखने पर घाव बनते हैं। मरीज लंबे समय तक व्हील चेयर पर बैठता है तो उसके पिछले कंधों, नितंबों या टेलबोन, एड़ी या पैर पर बेडसोर के घाव होते हैं।
किन्हें है ज्यादा खतरा
व्यक्ति छोटा हो या बड़ा-बेडसोर किसी को भी हो सकता है। यह ऐसे मरीजों में होता है जो लकवा, स्पाइनल इंजरी, लाइफ सपोर्ट सिस्टम वेंटिलेटर पर या बेड रिडन होते हैं। जो करवट नहीं ले पाते। उनके शरीर में प्रेशर पड़ने वाली जगहों पर घाव बन जाते हैं। बेडसोर होने पर डॉक्टर को कंसल्ट करना जरूरी है।
ऐसे होता है उपचार
बेडसोर के उपचार में सबसे पहले प्रभावित हिस्से से मरीज के शरीर का प्रेशर हटाया जाए। हर आधे घंटे बाद मरीज की पोजिशन यानी करवट बदलनी पड़ती है। पहली स्टेज में जब प्रेशर ज्यादा नहीं होता, तो नियमित रूप से ड्रेसिंग करने और एंटीबॉयोटिक दवाइयां लेने से आराम मिलता है। नई स्किन चारों तरफ से आने लगती है। अगर नई स्किन नहीं आ पाती है, तो स्किन-ग्राफ्टिंग की जाती है। इसमें स्किन के नीचे से गला हुआ (टिशू) निकाल दिया जाता है और स्किन-ग्राफ्टिंग की जाती है। आजकल कोलेजन-टिशू से भी स्किन-ग्राफ्टिंग की जाती है व वैक्यूम ड्रेसिंग की जाती है। अगर इंफेक्शन हड्डी तक पहुंच जाये तो प्लास्टिक सर्जन द्वारा फ्लैप-सर्जरी के माध्यम से कवर किया जाता है। एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं। मरीज को ठीक होने में 3-6 महीने लग जाते हैं।
लंबे समय तक बिस्तर में रहने और बेडसोर की स्थिति में कई मरीज डिप्रेशन में चले जाते हैं जिसे दूर करने को डॉक्टर की सलाह पर एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयां दी जाती हैं। साइको-थेरेपी भी की जाती है।
ऐसे करें बचाव
बेडसोर की पहली 2 स्टेज में घर पर ही पूरी देखभाल से मरीज इससे बच सकता है-
सबसे जरूरी है- बैक-केयर या पीठ की देखभाल करना। इसके लिए मरीज को आधे-एक घंटे के अंतराल पर करवटें बदलवाते रहना चाहिए। इससे उसके शरीर के इन हिस्सों में प्रेशर कम पड़ता है, रक्त संचार सुचारू होने लगता है और घाव नहीं बनता।
•दिन में कम से कम 2 बार त्वचा को नॉर्मल सलाइन वॉटर से धोना चाहिए। सूखने पर एंटी सेप्टिक क्रीम या एंटी बॉयोटिक क्रीम से ड्रेसिंग करनी चाहिए। हाइजीन का ध्यान रखें। मरीज को रोजाना नहलाना या स्पांज कराना बहुत जरूरी है।
प्रभावित जगह को साफ-सूखा रखने की कोशिश करनी चाहिए। मॉश्चर होने पर बेडसोर बढ़ने की संभावना ज्यादा रहती है। मॉश्चर को कम करने के लिए टेलकम पाउडर का भी इस्तेमाल करना चाहिए। यह नमी ज्यादातर डायपर की वजह से आती है। जरूरी है डायपर समय पर बदल देना चाहिए।
मरीज को जिस बेड पर लिटाया गया है, उसकी चादर पर पड़ने वाली सलवटें समय-समय पर ठीक करते रहना चाहिए। ताकि त्वचा पर रगड़ लगने से छिलने का डर न रहे। वहीं मरीज को स्पेशल एयर-मैट्रेस या एयर-कुशन पर सुलाना लाभकारी है।