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जीवटता और काबिलियत की बेमिसाल सुनीता

अंतरिक्ष यात्रा से यथाशीघ्र वापसी की उम्मीद
अंतरिक्ष यात्रा के दौरान सुनीता विलियम्स
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अंतरिक्ष यात्रा व वहां लंबे समय तक रहने के साथ ही वापसी बेहद जोखिमभरा काम है। अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर टिके रहने के कई कीर्तिमान मौजूद हैं। लेकिन अंतरिक्ष में फंस जाने पर अनूठी जीवट प्रदर्शित करने के चलते सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर का नाम रिकॉर्ड्स में अलग ढंग से दर्ज होगा। सुनीता पहले दो बार अंतरिक्ष यात्री रही। वहां उनके द्वारा परीक्षण और स्पेस वॉक आदि भी बेजोड़ हैं। वहीं भारतीय संस्कृति से जुड़ाव के चलते देशवासियों का उनसे नाता खास है। यथाशीघ्र वापसी की उम्मीद के साथ स्वागत है, सुनीता!

डॉ. संजय वर्मा

आप अंतरिक्ष को नहीं चुनते। अंतरिक्ष आपको चुनता है। - यह साबित होता है सुनीता (सुनी) एल. विलियम्स और उनके एक सहयोगी बुच विल्मोर की कहानी से, जो करीब दस महीने तक अंतरिक्ष में फंसे रहने के बाद अंततः घर वापसी की राह पर हैं। किसने सोचा था कि 5 जून 2024 को पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर परिक्रमा कर रहे अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंचीं 59 साल की भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और 61 साल के बुच विल्मोर ऐसे अटकेंगे कि महज आठ दिन का उनका सफर दस महीने की यात्रा में तब्दील हो जाएगा। उन्हें आईएसएस तक ले गया उनका यान बोइंग स्टारलाइनर तकनीकी दिक्कतों की वजहों से दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को वापस नहीं ला सका। इसके बाद नया यान भेजकर उन्हें वापस लाने की कोशिशें शुरू करने में अलग-अलग कारणों से विलंब होता चला गया। लंबे इंतज़ार के बाद एलन मस्क के यान स्पेसएक्स क्रू-10 से उन्हें 18 या 19 मार्च 2025 को वापस पृथ्वी पर लेकर आने की संभावना थी हालांकि 13 मार्च को तय लांच टालना पड़ा है तो कुछ विलंब हो सकता है।

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पृथ्वी से पार यात्रा और जीवन की जटिलताएं

ऐसे दौर में जब दुनिया की कई निजी कंपनियां अंतरिक्ष पर्यटन की अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के पराक्रम कर रही हैं, कुछेक पर्यटक अंतरिक्ष कही जाने वाली सरहदों को छूकर सकुशल धरती पर वापस लौट चुके हैं, सुनीता और बुच विल्मोर की कहानी पृथ्वी से पार यात्रा और जीवन की जटिलताओं की बानगी पेश करती है। यह मामला सिर्फ कोलंबिया और चैलेंजर शटल जैसे हादसों की स्मृतियों का नहीं है, बल्कि यह भी है कि अगर हम पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर की दुनिया में कदम रखते हैं तो वहां लंबे समय तक टिके रहना और वापसी करना कितना मुश्किल है। अपनी किस्म की पहली उड़ान पर आईएसएस तक गए जिस बोइंग स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान को सुनीता और बुच के संग आठ दिनों में लौट आना था, उसका एक उद्देश्य यह था कि यह यान नियमित इस्तेमाल में कैसा प्रदर्शन करेगा। लेकिन पहली ही यात्रा में इसके प्रोपल्शन सिस्टम में हीलियम गैस की लीकेज और यान को गति देने वाले कुछ थ्रस्टर्स के बंद होने से नासा को यह जोखिम लेना उचित नहीं लगा कि दिक्कतें दे रहे यान से दोनों अंतरिक्षयात्रियों को वापस लाया जाए। बेशक, स्टारलाइनर बिना कोई सवारी लिए धरती पर वापस लौटा और उसकी सुरक्षित लैंडिंग भी हुई जिससे इस यान की क्षमता और योग्यता साबित हुई, लेकिन सुनीता और विल्मोर अनिश्चित काल के लिए आईएसएस पर अटक गए।

यूं तो आईएसएस पर यात्रियों के टिके रहने के कई कीर्तिमान बन चुके हैं। जैसे, नासा के यात्री पैगी व्हिटसन अलग-अलग यात्राओं के जरिए कुल 675 दिनों तक अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। उनके अलावा जेफ विलियम्स (534 दिन), मार्क वंदे हेई (523), स्कॉट केली (520), शेन किम्ब्रू (388) और माइक फिन्के (382) दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं। इनमें से एक ही बार में सबसे लंबी अवधि तक आईएसएस पर बने रहने का कीर्तिमान फ्रैंक रूबियो के पास है, जो वहां लगातार 371 दिनों तक वहां रहने के बाद 27 सितंबर 2023 को पृथ्वी पर वापस आए थे। उनके बाद मार्क वंदे हेई (355 दिन), स्कॉट केली (340), क्रिस्टीना कोच (328), पैगी व्हिटसन (289), एंड्रयू मॉर्गन (272), माइकल लोपेज-एलेग्रिया (215) और जेसिका मेयर (205) ने लगातार 6 महीने से अधिक समय आईएसएस पर बिताया है। लेकिन पूर्व योजना के तहत अंतरिक्ष में रहना और किसी समस्या या दुर्घटना के कारण वहां फंस जाना एक दूसरी बात है। ऐसी स्थितियां लंबे समय तक पहले कभी नहीं बनीं और इस मामले में सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर का नाम रिकॉर्ड्स में अलग ढंग से दर्ज होगा।

वैसे तो यह भी कोई कम जीवट का काम नहीं है कि किसी अनहोनी के कारण कोई यात्री अंतरिक्ष में फंस जाने के बाद भी खुद को वहां टिकाए रखे और निराश हुए बगैर तमाम गतिविधियों में खुद को उम्मीद के साथ व्यस्त रखे कि जल्द ही वापसी का कोई तरीका निकाल लिया जाएगा। इस मामले में इन दोनों यात्रियों ने अद्भुत जिजीविषा का परिचय दिया। जैसे, कई आशंकाएं जताई गईं कि आईएसएस पर फंसे होने के कारण सुनीता की सेहत खराब हो गई है, वजन गिर गया है, तो उन्होंने इन चिंताओं का जवाब दिया कि उनका वज़न उनके आईएसएस पर आने के समय के जितना ही है। इन जवाबों से बड़े उत्तर इन्होंने आईएसएस पर इस दौरान किए प्रयोगों के जरिये दिए। नासा के मुताबिक इन नौ महीनों में सुनीता, बुच विल्मोर और आईएसएस पर मौजूद एक अन्य यात्री निक हेग ने साथ मिलकर 150 से ज्यादा वैज्ञानिक और तकनीकी परीक्षण किए उल्लेखनीय है कि यह लेख लिखे जाने तक आईएसएस पर मौजूद यात्रियों की कुल संख्या सात थी, जिनमें से चार अमेरिकी और तीन रूसी हैं। इसके अलावा आईएसएस के रखरखाव, मरम्मत और पुराने उपकरण बदलने जैसे कई अन्य काम किए गए। सुनीता के नाम एक रिकॉर्ड और दर्ज हुआ कि इस अवधि में उन्होंने साढ़े 11 घंटे तक स्पेसवॉक (आईएसएस से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में चहलकदमी करना) की जिसे मिलाकर उनकी स्पेसवॉक की कुल अवधि 62 घंटे 9 मिनट हो जाती है। यह किसी महिला अंतरिक्ष यात्री द्वारा बनाया गया स्पेसवॉक का सबसे नया रिकॉर्ड है। अपने एक अन्य मिशन में सुनीता अंतरिक्ष में मैराथन भी पूरी कर चुकी हैं।

सुनीता का भारत से जुड़ाव

पूरी दुनिया आज सुनीता और विल्मोर को उनके अभूतपूर्व जीवट के लिए सराह रही है, लेकिन सुनीता विलियम्स से हमारा नाता कुछ अलग है। स्व. कल्पना चावला के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली वह भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं। जहां तक आईएसएस पर सुनीता के पदार्पण का सवाल है कि इससे पहले यह कारनामा वह दो बार कर चुकी हैं। पहली बार वह अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर 2006 में गई थीं। तब वह 9 दिसंबर 2006 से 22 जून 2007 तक आईएसएस पर रही थीं। उस पहली अंतरिक्ष यात्रा के दौरान वह छह महीने तक स्पेस में रही और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर उन्होंने कई अनूठे प्रयोग किए थे। उन्होंने वहां स्पेस मैराथन का अनोखा रिकॉर्ड भी बनाया था यानी उन्होंने जनवरी, 2006 में बोस्टन मैराथन के लिए क्वालीफाई किया था, लेकिन अंतरिक्ष यात्रा के कारण वे पृथ्वी पर आयोजित इस दौड़ में हिस्सा नहीं ले पाई थीं। यह काम उन्होंने अप्रैल 2006 में वास्तविक मैराथन के वक्त अंतरिक्ष में चार घंटे 24 मिनट तक ट्रेडमिल पर यान समेत पृथ्वी के दो चक्कर लगाते हुए किया। यह पहला मौका था, जब कोई अंतरिक्ष यात्री स्पेस में रहते हुए इतना दौड़ा हो। तब बोस्टन में आयोजित हुई वास्तविक मैराथन के दौरान उन्होंने आईएसएस पर ट्रेडमिल पर दौड़ते हुए करीब 42 किलोमीटर की दूरी तय की थी। उस वक्त उनकी बहन डीना पांड्या ने पृथ्वी पर मैराथन में हिस्सा लिया था। आईएसएस की उनकी दूसरी यात्रा 14 जुलाई से 18 नवंबर 2012 के बीच हुई थी। इसी अवधि में पहली बार उन्होंने अपना जन्मदिन 19 सितंबर को अंतरिक्ष में मनाया था। वहीं इस मौके पर रहस्य साझा किया था कि इस यात्रा में वह अपने साथ श्रीमद्भगवत गीता की एक प्रति, भगवान गणेश की मूर्ति और समोसे लेकर गई थीं। अपनी इस दूसरी यात्रा में सुनीता एक्सपिडिशन-32 के चालक दल में एक फ्लाइट इंजीनियर की भूमिका में थीं। यानी आईएसएस पर पहुंचने पर वह अंतरिक्ष यात्रा एक्सपिडिशन-33 की कमांडर बनी थीं।

आकर्षण की वजह भारतीय संस्कृति में यकीन

बहरहाल, सुनीता में हमारी दिलचस्पी सिर्फ इसलिए नहीं हैं कि वे भारतीय मूल की हैं। बल्कि इसलिए भी है कि वे कई भारतीय रीति-रिवाजों में यकीन रखती हैं और उन्हें अपनाती हैं। पहले कल्पना चावला और अब सुनीता विलियम्स का हमारे लिए आकर्षण बन जाना अपने आप में कई अर्थ रखता है। इन महिला वैज्ञानिकों में हमारी दिलचस्पी सिर्फ इसलिए नहीं है कि इन्होंने कोई रिकॉर्ड बनाया है, बल्कि इसकी एक वजह यह है कि भारत में ऐसे प्रतीकों की कमी है। हमें अपने आसपास ऐसी महिला हस्तियां कम ही दिखती हैं, जिनमें युवतियां, किशोरियां अपने लिए कोई आदर्श ढूंढ़ सकें। यही वजह है कि किसी महिला साइंटिस्ट या या किसी और हस्ती का भारतीय अथवा भारतीय मूल का होना हमारे लिए अहम बन जाता है और हम उनमें राष्ट्र के गौरव की कोई छवि खोजने लगते हैं।

काबिलियत के साथ जुझारू शख्सियत

एक आम महिला के विपरीत सुनीता की दूसरी छवियां उनकी काबिलियत साबित करती हैं। क्या कोई यह सोच सकता है कि वे पृथ्वी से सैकड़ों मील ऊपर अंतरिक्ष में पांच मील प्रति सेकेंड की रफ्तार से तैरते इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को अकेले ही संभालने की कूवत रखती हैं। यह कहना कि गलत होगा कि सुनीता के कई कारनामे ऐसे हैं जो उन्हें एक साइंटिस्ट से आगे बढ़कर जुझारू शख्सियत के रूप में स्थापित करते हैं। क्या कोई यह नहीं जानता होगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर भेजे जाने के लिए एक वैज्ञानिक में क्या योग्यताएं होनी चाहिए? कितनी परीक्षाओं और कितने कठिन प्रयोगों का दौर पार करके सुनीता इस काबिल बनी होंगी कि वे स्पेस स्टेशन पर जा सकें, वहां प्रयोग कर सकें और भावी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए तथ्य और प्रेरणाएं जुटा सकें? जून, 2006 में सुनीता ने अटलांटिस शटल से स्पेस स्टेशन पहुंचे दो रूसी कमांडरों के सफल स्पेस वॉक के लिए जरूरी सहयोग किया था। यह जानकारी भी अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा ने जारी की थी कि सुनीता ने अंतरिक्ष में प्रयोगों के दौरान कई नमूने एकत्र किए, जिन्हें वे अपने साथ पृथ्वी पर लाईं। उन्होंने न्यूट्रिशन स्टेटस एसेसमेंट के लिए रक्त और मूत्र के नमूने भी जमा किए, जिनकी जांच से शोधकर्ताओं को अंतरिक्ष में होने वाले शारीरिक बदलावों का पता चला। इन नमूनों की जांच से शोधकर्ताओं को अंतरिक्ष में मौजूद होने पर मानव शरीर के मेटाबॉलिज्म (चयापचय), ऑक्सीकरण की प्रक्रिया, शरीर में विटामिन और खनिज तत्वों की स्थिति और हार्मोन्स से जुड़े बदलावों को जानने का अवसर मिला। इस शोध यह जानने में मदद मिली कि अंतरिक्ष में हमारी अंग प्रणालियां कैसे काम करती हैं और मेटाबॉलिज्म पर इसका क्या असर पड़ता है। पर सिर्फ यही नहीं, वापसी के वक्त शटल अटलांटिक के तापरोधी कवच में जब दरार का मामला सामने आया, तो उसकी सिलाई यानी उसे रफू करके दोष दूर करने की जिम्मेदारी भी सुनीता को निभाने को कहा गया था। उम्मीद है कि इस बार तमाम मुश्किलों से लड़कर जिस तरह सुनीता पृथ्वी पर सुरक्षित लौट रही हैं, उनके जीवट की कहानियां दुनिया भर में महिलाओं के हिस्से आने वाले आसमान में मौजूद सुराखों को बेहतर ढंग से रफू करने का काम करेंगी। सुनीता, इसके लिए तुम्हें हमारा सलाम! -लेखक मीडिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

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