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पता चलते ही शुरू करें उपचार

विश्व एलजाइमर्स दिवस कल

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सेहत

डॉ़. हितेश खुराना

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डिमेंशिया मस्तिष्क के कुछ ऐसे रोगों का नाम हैं जिनमें याददाश्त खो जाना मुख्य लक्षण है। इस रोग में मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। यह एक प्रकार से अदृश्य रोग है क्योंकि इसके शारीरिक लक्षण न के बराबर होते हैं। व्यावहारिक लक्षण तभी पता चल पाते हैं जब रोगी से मेलजोल होता है या उसे कोई काम करना पड़ता है। यह रोग अकसर वृद्धावस्था में लगभग 60 वर्ष की आयु में सामने आता है। विश्व में लगभग 5-8 फीसदी लोग इस रोग से ग्रसित हैं जबकि भारत में इसके सर्वाधिक रोगी हैं। एलजाइमर्स डिमेंशिया सभी डिमेंशिया रोगों में प्रमुख है जो इसके 70-80 फीसदी रोगियों में पाया जाता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में इस रोग की सम्भावना अधिक होती है।

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अकसर डिमेंशिया को रोग समझने की बजाय वृद्धावस्था के लक्षण समझ कर उपेक्षित कर दिया जाता है। इसीलिए इस बीमारी के बारे में जागरूक होना आवश्यक है ताकि इसकी रोकथाम की जा सके। एलजाइमर्स डीसीज़ इंटरनेशनल संस्था द्वारा हर वर्ष 21 सितंबर का दिन लोगों को इस रोग के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व एलजाइमर्स दिवस तथा सितम्बर महीने को विश्व डिमेंशिया माह के रूप में मनाया जाता है। डिमेंशिया की जागरूकता व रोकथाम के लिए कभी भी प्रयास किया जा सकता है। इसलिए एडीआई ने इस वर्ष जागरूकता का विषय ‘नेवर टू अर्ली, नेवर टू लेट’ चुना है

डिमेंशिया के लक्षण

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लक्षणों की गंभीरता के अनुसार इस रोग को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया है।

प्रथम अवस्था : पहले लगभग दो वर्ष व्यक्ति को कुछ भूलने की समस्या होती है। रोज़मर्रा की सामान्य घटनाएं जैसे कि नाश्ता, किसी से बातचीत या काम करने में भूल लगने लगती है। किसी कार्य को संयोजित करने में जैसे कि लेन-देन, लेखा-जोखा रखने में मुश्किल होती है। बातचीत में शब्दों के चयन में कठिनाई व रास्ता भूलने की सम्भावना भी बनी रहती है।

मध्य अवस्था : आगामी दो से चार वर्षों तक व्यक्ति की कार्य क्षमता में भी कमी आने लगती है। रोज़मर्रा के काम जैसे कि खाना बनाना व खाना, कपड़े बदलना, नहाना-धोना आदि में कठिनाई महसूस होती है। इन कामों में परिवार के सदस्यों की सहायता लेनी पड़ती है। बातचीत समझनी भी मुश्किल लगती है जिस वजह से व्यक्ति गुमसुम रहने लगता है।

अंतिम अवस्था : व्यक्ति धीरे-धीरे वर्तमान का संज्ञान खो देता है तथा खुद को अतीत में महसूस करता है। काल्पनिक लोगों का भय भी महसूस हो सकता है, किसी अवास्तविक आवाज़ की कल्पना करता है और डरता है। खाने-पीने सम्बन्धी दिक्कतें बढ़ जाती हैं, कई बार व्यक्ति खाने को निगलने में असमर्थ होता है। शरीर का अहसास न होने के कारण कहीं पर भी मूत्र-विसर्जन हो सकता है। चलने में असंतुलन की वजह से गिरने का खतरा रहता है। इनमें से किसी भी लक्षण की सम्भावना होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

कारण जिनकी रोकथाम है संभव

कुछ अपरिवर्तनीय कारणों को छोड़ दें तो डिमेंशिया रोग के कई कारण हैं जिनकी रोकथाम संभव है। इनमें हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, हृदय रोग, पैरालिसिस, विटामिन बी12 या डी की कमी, नशा, अवसाद, अकेलापन, निष्क्रिय जीवनशैली, अधिक तैलीय व कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन (फास्ट फूड) व वायु प्रदूषण शामिल हैं। यदि आप को किसी प्रकार का रोग जैसे कि रक्तचाप, मधुमेह आदि है तो इसकी नियमित जांच व उपचार डिमेंशिया रोग की रोकथाम के लिए अति आवश्यक है । दरअसल, डिमेंशिया रोग से बचाव या रोकथाम ही सबसे उत्तम उपचार है जिसकी कोशिश व्यक्ति जीवन की किसी भी अवस्था से कर सकता है। युवावस्था से ये प्रयत्न आरम्भ कर देने चाहिए। जानिये वे उपाय जिनसे डिमेंशिया से बचाव की कोशिश हो सकती है।

संतुलित आहार

दिन में 3 बार भोजन अवश्य करें जिसमें सभी पौष्टिक तत्व शरीर की ज़रूरत अनुसार शामिल हों। ये पोषक तत्व फल, हरी सब्जी, गेहूं, चावल, बाजरा, मछली,अंडे व दूध आदि से मिल सकते हैं। इस प्रकार विटामिन व अन्य पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है।

व्यायाम

विश्व सवास्थ्य संगठन के अनुसार व्यक्ति को प्रतिदिन 150 मिनट आयु अनुरूप व्यायाम करना चाहिए।

हॉबी या शौक

कुछ करते रहने या कुछ सीखते रहने का शौक व्यक्ति को डिमेंशिया से दूर रखने में बहुत लाभदायक है। कोई नई भाषा, संगीत, चित्रकारी, लेखन आदि मस्तिष्क को सक्रिय रखते हैं।

प्रदूषण रहित जीवन

यथासंभव पेट्रोल-डीज़ल वाले वाहनों के बजाय पैदल या साइकिल का उपयोग न केवल प्रदूषण कम कर सकता है बल्कि व्यायाम के लिए भी लाभकारी है।

सामाजिक सरोकार

अपने परिवार व मित्रों से संपर्क बनाये रखें। आजकल युवाओं में अध्ययन या व्यवसाय के लिए किसी दूसरे शहर या विदेश जाने का प्रचलन बढ़ रहा है जिससे वृद्धावस्था में अकेलापन बढ़ रहा है। ऐसे में मित्रों से संपर्क, पार्टी या आयोजनों में शिरकत आदि सामाजिक तालमेल के अच्छे तरीके हो सकते हैं। वहीं समाजसेवा के कार्य में भी शामिल हो सकते हैं।

-लेखक पीजीआई, रोहतक में कार्यरत हैं।

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