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मानसून के रोमांच से भरपूर सर्प नौका दौड़

धीरज बसाक केरल में मानसून के आते ही मनोहारी सर्प नौका दौड़ शुरू हो जाती है। उसका आगाज गुजरे 22 जून से हो चुका है। इन्हें देखने के लिए यहां देश-विदेश के लाखों पर्यटक पहुंचते हैं। ‘चुंडनवल्लम’ या ‘स्नेक बोट’...
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धीरज बसाक

केरल में मानसून के आते ही मनोहारी सर्प नौका दौड़ शुरू हो जाती है। उसका आगाज गुजरे 22 जून से हो चुका है। इन्हें देखने के लिए यहां देश-विदेश के लाखों पर्यटक पहुंचते हैं। ‘चुंडनवल्लम’ या ‘स्नेक बोट’ वास्तव में फुंफकारते सांप-सी दिखने वाली एक लंबी पारंपरिक डोंगी शैली की नाव होती है, जो अमूमन 100 से 120 फीट तक लंबी होती है और इसमें 4 नाविक, 25 गायक से लेकर 100 नाविक, 125 गायक तक भी हो सकते हैं जो नदी या बैक वाटर में बहुत तेज नाव भगाते हुए केरल के पारंपरिक वाद्ययंत्रों की संगत में ‘वंचिपट्टू’ यानी सामूहिक लय वाला नौका गीत गाते हैं।

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यह गायन नाविकों का उत्साह बढ़ाने के लिए होता है और गायक या नाविक अक्सर एक ही होते हैं, इसलिए कोई नाविक नाव चलाते (खेते हुए) हुए अगर महसूस करता है कि उसकी तरफ का संगीत कमजोर हो रहा है, तो वह कोई वाद्य बजाने लग सकता है या कोई गाना या बजाना छोड़कर चप्पू भी थाम सकता है ताकि प्रतिद्वंद्वी नाव से उसकी नाव पीछे न रहे। जिन सर्प नौका दौड़ों को केरल सहित पूरी दुनिया में बहुत उत्सुकता से देखा जाता है, ऐसी चार नौका दौड़ें होती हैं।

लगभग 400 सालों से केरल में स्नैक बोट रेस की परंपरा है। इसके पीछे एक प्रसिद्ध किंवदंती यह है कि प्राचीनकाल में एलेप्पी (अलप्पुझा) और उसके आसपास के इलाकों के जलमार्गों का यहां की विभिन्न रियासतों के राजा आपस में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ने के लिए इस्तेमाल करते थे। इन जलयुद्धों के दौरान वे दूसरों पर भारी पड़ने के लिए सटीक हल्की और पानी को तीव्रता से काटने वाली डोंगीनुमा नावों का विकास किया करते थे, जिनका अगला सिरा फुंफकारते सांप के फन जैसा बनाया जाता था और इसे खूंखार दर्शाने के लिए इसे लाल, काले और गेरुए रंग से रंगते थे।

धीरे-धीरे इतिहास के ये जलयुद्ध तो खत्म हो गए, लेकिन बेहतरीन नाव निर्माताओं द्वारा बनायी गई स्नैक बोट बची रहीं, जिनके चलते यह आधुनिक स्नैक बोट रेस विकसित हुई। नतीजा यह हुआ कि जलयुद्धों का कौशल अब सर्प नौका दौड़ों में दिखने लगा। रेस के जरिये हार-जीत का रोमांच भी महसूस किया। आज पूरे केरल में इस सर्प नौका दौड़ का चलन है और इसे अपनी विशिष्ट पर्यटन यूएसपी के रूप में पेश किया है।

देश-विदेश को आकर्षित करने वाली केरल की ये चार प्रसिद्ध सर्प नौका दौड़े हैं। चंपाकुलम सर्प नौका दौड़, नेहरू ट्राफी स्नैक बोट रेस, अरनमुला स्नैक बोट रेस और पयिप्पड़ जलोत्सवम। चंपाकुलम दौड़ सबसे पहले शुरू होती है। यह सबसे प्राचीन और लोकप्रिय स्नैक बोट रेस है। इस स्नैक बोट रेस में, अंबलप्पुषा के श्रीकृष्ण मंदिर मंे भगवान की मूर्ति की स्थापना का जश्न मनाया जाता है। इस जश्न के दौरान 25 किलोमीटर की यह सर्प नौका दौड़ भी होती है, जो एलेप्पी से शुरू होकर चंपक्कुलम नदी में चंगनास्सेरी तक जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों, रंगीन छतरियों आदि का नौका रेस में उमड़ना है।

इसके अलावा नेहरू ट्राफी स्नैक बोट रेस का चलन 1952 मंे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पुन्नमदा झील पर आयोजित इस रेस को देखने आने से हुआ। तीसरी मशहूर स्नैक बोट रेस अरनमुला की है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की दो दिवसीय धार्मिक उत्सव की परंपरा शामिल है। यह त्रिवेंद्रम से 116 किलोमीटर दूर आयोजित होती है। अंतिम और चौथी स्नैक बोट रेस पयिप्पड़ जलोत्सवम है। यह भी एलेप्पी से 35 किलोमीटर दूर सम्पन्न होता है। इस तरह मानसून में केरल स्नैक बोट रेस के चारों तरफ रोमांच से भरपूर रहता है।

इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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