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तिरुमला की पहाड़ियों से प्रभु के द्वार तक श्रद्धा यात्रा

वेंकटेश्वर धाम
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जब भगवान वेंकटेश्वर का बुलावा आता है, तभी तिरुपति की यात्रा संभव हो पाती है क्योंकि कहा जाता है कि तीर्थ हमें नहीं बुलाते, वो हमें चुनते हैं। दक्षिण भारत की तिरुमला पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि आत्मिक शांति और भक्ति का एक अलौकिक अनुभव भी है। 'गोविंदा गोविंदा' के गूंजते जयकारों के बीच यह यात्रा हर श्रद्धालु के लिए जीवनभर की स्मृति बन जाती है।

अलका ‘सोनी’

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कहा जाता है कि तीर्थ स्थल हम नहीं चुनते, बल्कि वे हमें बुलाते हैं। लाख प्रयासों के बाद भी जब तक भगवान का बुलावा न हो, वहां जाना संभव नहीं होता। ऐसे ही तीर्थस्थलों में से एक है ‘तिरुपति बाला जी’ मंदिर। जो कि दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में पड़ता है। जहां की सुरम्यता और आध्यात्मिकता मन मोह लेती है। तिरुपति बालाजी मंदिर को श्री वेंकटेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और धनवान मंदिरों में से एक है। यह मंदिर तिरुमाला की पहाड़ियों पर स्थित है, जो तिरुपति शहर के पास है।

तिरुपति मंदिर जाने के क्रम में गाड़ी से आप पहाड़ी वादियों और बेहद घुमावदार मोड़ों की खूबसूरत और रोमांचक यात्रा का अनुभव करेंगे। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर (बालाजी, गोविंदा, श्रीनिवास) को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर ही लोगों के दुखों का निवारण करते हैं।

यहां आते ही ‘गोविंदा’, ‘गोविंदा’ के जयकारे लगाते कतारबद्ध श्रद्धालुओं की पंक्ति के दर्शन होने लगेंगे। यह भारत का सबसे अधिक दर्शनार्थी वाला मंदिर है।

तिरुपति मंदिर दर्शन

भगवान वेंकटेश्वर के स्वर्णमंडित मंदिर के दर्शन आपको यूं तो मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते ही होने लगेंगे। लेकिन उनके भव्य रूप के साक्षात दर्शन हेतु आपको थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी। यह प्रतीक्षा भगवान वेंकटेश्वर से मिलने और उनके दर्शन की आकांक्षा को और बढ़ा देता है। फिर उनके दर्शन करने के बाद मन में और कोई कामना बाकी नहीं रहती। मन बिल्कुल शांत हो जाता है।

इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। इसका प्रारंभिक निर्माण करीब 9वीं शताब्दी में पल्लव वंश द्वारा किया गया था। बाद में चोल, पांड्य और विजयनगर साम्राज्य ने इसे और विस्तार दिया। विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय (16वीं सदी) ने यहां अनेक निर्माण कराये और भारी दान भी दिया। तिरुपति बालाजी मंदिर (श्री वेंकटेश्वर मंदिर) न केवल धार्मिक महत्व का केंद्र है, बल्कि स्थापत्य कला, परंपराओं और आस्था का अद्भुत संगम है।

बालों का समर्पण

हर दिन लाखों लोग यहां दर्शन, पूजन और बालों के दान (मुंडन) के लिए यहां आते हैं। मान्यता है कि यहां बालों को दान करना आपकी वेंकटेश्वर प्रभु के प्रति समर्पण को दर्शाता है। यहां बने विश्रामालय में निःशुल्क आराम व प्रसाधन की व्यवस्था रहती है। यहां से मंदिर की तरफ अंदर जाने के क्रम में आपको मुफ्त में भरपेट भोजन (खिचड़ी या पोंगल) बांटते स्वयंसेवी मिल जाएंगे। साथ ही यहां बहने वाली ठंडी हवा आपकी थकान मिटा देती है। इसके अलावा जगह-जगह खाने पीने की अच्छी व्यवस्था है। जहां दक्षिण भारतीय व्यंजन के साथ रोटी, चावल और छाछ भी मिल जाती है। तिरुपति के आसपास पहुंचते ही आपको ऐसे कई स्त्री-पुरुष के दर्शन होने लगेंगे जिन्होंने अपने बालों को तिरुपति बाला जी को समर्पित किया हुआ हो। भगवान वेंकटेश्वर को अपने बालों को समर्पित करने की यहां परंपरा है। बच्चों के मुंडन भी यहां किए जाते हैं।

लड्डू प्रसादम‍्

यहां की एक और चीज जो आपको कहीं नहीं मिलेगी, वह है ‘लड्डू प्रसादम‌्’। शुद्ध घी, आटे, इलायची और ढेर सारे मेवों के साथ बने लड्डू। जिनका स्वाद अनुपम होता है और एक लड्डू खाने से ही क्षुदा तृप्त हो जाती है। यह लड्डू भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर निकलते समय लड्डू काउंटर से लिए जा सकते हैं।

स्थापत्य और आकर्षण

दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित श्री वेंकटेश्वर स्वामी जी का यह मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर लगभग 2,000 वर्षों से अधिक प्राचीन माना जाता है और दक्षिण भारत के सबसे समृद्ध मंदिरों में गिना जाता है। मंदिर का उल्लेख प्राचीन पौराणिक ग्रंथों जैसे वराह पुराण और भागवत में भी आता है। यह स्थान भक्तों के लिए केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक शांति प्राप्त करने का माध्यम भी है।

मुख्य गर्भगृह में भगवान वेंकटेश्वर की काले रंग की भव्य मूर्ति स्थित है, जिसकी आंखों को हमेशा चंदन की पट्टी से ढका जाता है, ताकि भक्त उनकी तेजस्वी दृष्टि को सहन कर सकें।

अन्य आकर्षक

ध्वजस्तंभ और गोपुरम : मंदिर के गोपुरम की ऊंचाई और नक़्क़ाशी मन को मंत्रमुग्ध कर देती है।

स्वर्ण द्वार : यह मंदिर का सोने का मुख्य द्वार है, जिसे ‘स्वर्ण द्वारम’ कहा जाता है।

दर्शनीय स्थल

श्रीकालहस्ती मंदिर : श्रीकालहस्ती, तिरुपति से लगभग 36 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे ‘दक्षिण का काशी’ कहा जाता है। वायु तत्व (पंचभूत) का यह प्रमुख मंदिर है।

कानिपक्कम विनायक मंदिर : इसकी दूरी तिरुपति से लगभग 75 किलोमीटर है। यह भगवान गणेश को समर्पित प्राचीन मंदिर है और इसकी मूर्ति स्वयंभू (स्वतः उत्पन्न) मानी जाती है।

चंद्रगिरी किला : तिरुपति से करीब 15 किलोमीटर दूर चंद्रगिरि किला पड़ता है। यह ऐतिहासिक किला विजयनगर साम्राज्य से संबंधित है और अब यहां एक संग्रहालय भी है।

श्री वेंकटेश्वर राष्ट्रीय उद्यान : इसमें सुंदर घाटियां, जलप्रपात और विविध जैव विविधता देखने को मिलती है। तालाकोना भी इसी क्षेत्र में आता है।

पद्मावती अम्मावरु मंदिर : यह तिरुपति से कुछ किलोमीटर दूर, देवी लक्ष्मी (पद्मावती) को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पद्मावती देवी की भव्य प्रतिमा स्थापित है।

इस्कॉन मंदिर तिरुपति : यह मंदिर अपनी सुंदर वास्तुकला और आध्यात्मिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यहां राधा रानी और भगवान कृष्ण के भव्य झांकियों के दर्शन होते हैं। मंदिर के चारों तरफ सुंदर हरितिमा है।

श्री वारि पदालू : तिरुपति में श्री वारि पदालू एक पवित्र स्थल है, जो तिरुमला की पहाड़ियों में स्थित है। यह स्थान भगवान वेंकटेश्वर के पवित्र चरण चिन्हों के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान वेंकटेश्वर धरती पर अवतरित हुए थे तो उन्होंने सबसे पहले तिरुमला की इन पहाड़ियों पर अपने चरण रखे थे।

कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति एयरपोर्ट है। जो तिरुपति शहर से लगभग 15 किमी दूर है। यह एयरपोर्ट हैदराबाद, चेन्नई, बैंगलोर और अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस द्वारा आप तिरुमला तक पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग : तिरुपति रेलवे स्टेशन एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है। यह स्टेशन हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर आदि से अच्छी तरह जुड़ा है। स्टेशन से तिरुमला (मंदिर) लगभग 20 किमी दूर है। वहां टैक्सी, एपीआरसीटीसी बसें या शेयर ऑटो से जा सकते हैं।

सड़क मार्ग : तिरुपति तक सड़क मार्ग से पहुंचना भी आसान है। यह एनएच716 और 69 से जुड़ा है। आप बस, टैक्सी या अपनी निजी गाड़ी से भी पहुंच सकते हैं।

तिरुपति से तिरुमला : तिरुपति से नियमित बसें उपलब्ध हैं हर 5-10 मिनट में चलती हैं। हालांकि टैक्सी या प्राइवेट वाहन गाड़ी के लिए स्पेशल परमिट लेना पड़ता है।

पैदल यात्रा : अलिपिरी या श्रीवारी मेट्टू से श्रद्धालु पैदल चढ़ाई करते हैं। यह नौ से ग्यारह किलोमीटर का पैदल रास्ता है।

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