साइकिलों की राजधानी में भी शाही ठाठ
नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम नहरों, साइकिलों और सांस्कृतिक खुलेपन के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह शहर इतिहास, प्रकृति और आधुनिकता का सुंदर संगम पेश करता है। रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट, ब्राउन कैफे, फूलों से सजे गार्डंस और साइकिल ट्रैक्स इसकी पहचान हैं। हर मोड़ पर रचनात्मकता और जीवनशैली का नया रंग दिखता है।
अमिताभ स.
यूं तो यूरोप का हर देश एक से एक हसीन है, लेकिन नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम क्या बात है। नीदरलैंड को पवन चक्कियों और साइकिलों का देश कहते हैं। एम्स्टर्डम नहरों का शहर भी है। करीब 160 नहरें शहर में फैली हैं और 1250 पुलों से आरपार आते-जाते हैं। इसीलिए यह ‘वीनस ऑफ नॉर्थ’ भी कहलाता है। नहरों में बोटिंग के जरिए भी एम्स्टर्डम घूम सकते हैं। एक से एक बोट टूर मिलते हैं। बाग-बगीचों में सबसे नामी वोनर्डल पार्क है। है सन् 1865 से और अगर शहरी दुनिया से दूर एकांत में कुछ घंटे गुजारना चाहें, तो सर्वश्रेष्ठ जगह है।
एम्स्टर्डम की रेड लाइट डिस्ट्रिक तो दुनियाभर में मशहूर है। रेलवे स्टेशन से महज 10 मिनट की पैदल दूरी पर है। एम्स्टर्डम छोटा-सा है, इसलिए पैदल चलते-चलते ही मेहराबदार पुलों को पार करते-करते सारा शहर मजे-मजे घूम सकते हैं। रेड लाइट डिस्ट्रिक तो शहर का सबसे पुराना हिस्सा है- सन् 1385 से बना है। आधा वर्ग किलोमीटर में फैले रेड लाइट डिस्ट्रिक में, यूरोप ही नहीं, अफ्रीका और एशिया की सुन्दरियां इस कारोबार से जुड़ी हैं। रतिकर्म का पूरा म्यूजियम ‘रेड लाइट सिक्रेट्स’ भी यहां है। यहां कहीं-कहीं फोटो खींचने की मनाही है। सो, शंका हो, तो पूछ लेना बेहतर है, वरना कैमरा छीना जा सकता है।
सत्तर फ़ीसदी लोग साइकिलों पर
एम्स्टर्डम को कोना-कोना ट्राम से जुड़ा है। बस सर्विस भी उम्दा है, लेकिन साइकिल पर एम्स्टर्डम घूमना सबसे बढ़िया रहता है। आमतौर पर, एम्स्टर्डम में 70 फीसदी लोग साइकिल पर ही आते-जाते हैं। यानी साइकिलों पर इधर-उधर जाने-आने का बड़ा चलन है। सड़क के साथ-साथ बाकायदा साइकिल ट्रैक हैं। ज्यादातर सड़कें चौड़ी नहीं हैं, फिर भी, ट्रैफिक कम ही होता है। लोगबाग कारों से ज्यादा साइकिल चलाना ज्यादा आरामदेह मानते हैं। घूमने-फिरने के लिए किराए पर साइकिलें मिलती हैं। कहीं-कहीं घोड़ा बग्घी भी सवारी के लिए इस्तेमाल की जाती है।
डच कंट्री साइड की सैर के बगैर नीदरलैंड या एम्स्टर्डम की सैर अधूरी समझिए। पवन चक्की के गांव-खेतों में टहलना और फोटो खींचना-खिंचवाना करना अनुभव है। ऐसा ही एक खूबसूरत गांव जानसे सचानज है। हिस्टोरिकल वॉकिंग टूर की बदौलत एम्स्टर्डम के 800 साल के इतिहास से रू-ब-रू होने का मौका मिलता है। वाकई जानना दिलचस्प है कि कैसे एमर्स्टल नदी किनारे बसा छोटा-सा गांव दुनिया के बेहतरीन शहरों में शुमार हो गया।
हर तरफ रौनकें ही रौनकें हैं। अन्य यूरोपीय देशों की तरह यहां भी लोग ईमानदार है और साफ नीयत के हैं। कहने और करने में ज़रा फर्क नहीं है। सरकार और जनता में आपसी विश्वास है। आजकल दिल्ली में मकानों के नक्शे पास करवाने के लिए पार्किंग लाजिमी है। लेकिन एम्स्टर्डम में ऐसा नहीं है। अगर घर में पार्किंग का इंतजाम नहीं करेंगे, तो नक्शा पास करवाने की जरूरत ही नहीं है। क्योंकि आप देश के हित में सोचते हैं। आप कार नहीं रखेंगे, तो एक तो सड़क पर ट्रैफिक बढ़ेगा नहीं और साथ-साथ आबोहवा साफ रहेगी। ऐसा मुमकिन नहीं कि आप घर में पार्किंग न बनवाएं और कार खरीद लें। या कहें, वहां तय माना जाता है कि घर में पार्किंग न बनाने वाले ताउम्र साइकिल का इस्तेमाल ही करेंगे।
ख़रीदारी का जलवा कम कहां है। दो प्रमुख शॉपिंग स्ट्रीट्स हैं- लेइडस्ट्रे और केइजीस्ट्रे। मॉल में शापिंग का मज़ा लेना चाहें, तो स्वयूस्ट्रे नाम की सड़क पर ‘मेगना प्लाजा’ है। उधर एल्बर्ट सूयूप नम्बर वन स्ट्रीट मार्केट है। खरीदारी से पहले बराबर भाव-तौल कर सकते हैं। है ‘हेनिकेन’ बीयर फैक्टरी के पीछे। विश्वविख्यात बीयर ब्रैंड ‘हेनिकेन’ ठेठ नीदरलैंड की पेशकश है। एम्स्टर्डम में ‘हेनिकेन’ बीयर फैक्टरी में जाना और घंटों बीयर बनते-पैक होते देखना सैलानियों को भाता है। एम्स्टर्डम में बीयर के अलावा ‘जिन’ पीने का भी खासा प्रचलन है। बताते हैं कि ‘जिन’ सबसे पहले सन् 1650 में नीदरलैंड में ही बनना शुरू हुई। वहां सर्दियों में ठिठुरन बढ़ती है, ठंडी हवाएं बहती हैं, तो जिन पीने के दिन आते हैं।
और हां, एक स्ट्रीट फूड भी बड़े चाव से खाया जाता है। नाम है- पैन केक। दूसरा हरदिल अज़ीज़ स्ट्रीट फूड ‘फ्राइज़’ है। आलू के मोटे-मोटे चिप्स पर म्योनिस सॉस डाल कर सर्व फ्राइज हरेक बंदा खाना पसन्द करता है। कागज के कोन में डाल कर फ्राइज खास आकार के टुथपिक के साथ पकड़ कर, चलते-फिरते खाते जाते हैं।
ज्यादातर टूरिस्ट डेम स्क्वेयर और रेड लाइट डिस्ट्रिक ही घूमते हैं। हैं भी सबसे रौनकी इलाके। जबकि जोरडन, डी पीप, न्यू मार्केट और नाइन स्ट्रीट भी जबरदस्त हैं। न्यू मार्केट के पीछे है एम्स्टर्डम का चाइना टाउन। नाइन स्ट्रीट में सेंकड हैंड सामान की दुकानें हैं। रोज सुबह 11 और दोपहर बाद 3 बजे डेम स्क्वेयर में फ्री वॉकिंग टूर चलते हैं। इसमें शामिल होकर, एम्स्टर्डम की बारीकियों को जानने का बखूबी मौका मिलता है। एम्स्टर्डम में हर देश का फूड ट्राई कर सकते हैं। इनकी अपनी फास्ट फूड चैन ‘फेबो’ भी हर बाजार में है।
’ब्राउन कैफे’ तो एम्स्टर्डम की जान और पहचान है। ‘ब्राउन कैफे’ या कहिए पुराने-पुराने कैफे। असल में, सालोंसाल से इन कैफे की दीवारों और छतों पर सिगरेट के धुएं के ब्राउन या भूरे-मटमैले दाग और निशान पड़-पड़ कर, इनका नाम ही ‘ब्राउन कैफे’ हो गया। इन पुराने-पुराने कैफे आज भी बच्चों, बूढ़ों और जवानों से खचाखच भरे रहते हैं। कैफे चीरिस तो सन् 1624 से है और सबसे पुराना ‘ब्राउन कैफे’ है। कॉफी की बेशुमार वैरायटीज से सराबोर रहता है।
एम्स्टर्डम के आसपास भी कई आकर्षण हैं। नजदीक ही 80 एकड़ पर फैले फूलों ही फूलों के खेत ‘कोकेनहुफ गार्डंस’ की रंगत वाकई बेमिसाल है। जहां-जहां तक निगाहें जाएं, बस फूलों की कतारें ही कतारें हैं। लाखों ट्यूलिप्स, ड्रेफोडिल्स और न जाने कैसे-कैसे फूल। बीच- बीच में लगी विंड मिल्स यानी पवन चक्कियां दिलकश नजारा बन कर उभरती हैं। अस्सी के दशक में राज कपूर की ‘प्रेम रोग’ का गीत ‘भंवरे ने खिलाया फूल...’ यहीं फिल्माया गया। फिर ‘सिलसिला’ फिल्म में भी कोकेनहुफ गार्डंस छाए रहे। नज़दीकी आकर्षण में ‘मधुरोडेम-मिनीएचर नीदरलैंड’ शुमार है। सन् 1952 में बसा पूरा शहर ही आदम कद से काफी छोटे आकार का है। एकदम छोटी-छोटी ट्रेन, एयरपोर्ट, समुद्र, नदियां, पुल, चर्च, स्टेडियम, शॉपिंग सेंटर और न जाने क्या-क्या में घूमना- फिरना बच्चों और बड़ों को सपना लगता है। पूरे शहर को अपने पैरों से लांघ सकते है। मानो लिलिपुट के कथालोक में पहुंच गए हैं। एम्स्टर्डम और मधुरोडेम के रास्ते में पर्यटक रोटरमैन शू फैक्ट्री में घूमना पसंद करते हैं। यहां लकड़ी के एक से एक जूते बनते हैं।
कैसे पहुंचे
सीधी उड़ान से दिल्ली से एम्स्टर्डम पहुंचने में करीब 8 घंटे लगते हैं। समय के लिहाज से दिल्ली से साढ़े 3 घंटे पीछे है।
एम्स्टर्डम में सारा साल कभी भी जाएं, घूमने-फिरने का बेशुमार लुत्फ है। हालांकि, अप्रैल से जुलाई के बीच ज़रा ज्यादा ही मजा है। क्योंकि फुल टूरिस्ट सीजन होता है।
करेंसी यूरो चलती है। आजकल एक यूरो करीब 98 रुपये के बराबर है। ज्यादातर लोग डच बोलते-लिखते हैं। बोलचाल में अंग्रेजी में चलती है।