नए उपभोक्ता कानून में घटिया उत्पादों से निपटने की व्यवस्था है। तभी तो जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग- द्वितीय, लखनऊ की खंडपीठ ने एक शूज कंपनी को सेवा में कमी का उत्तरदायी ठहराया है। खरीदे गए दोषपूर्ण जूते बदलने या वापस करने में विफल रहने को उपभोक्ता सेवा में कमी माना। कंपनी को मुकदमा खर्च के लिए 2,000 रु. और 2,000 रु.के मुआवजे के साथ जूते की कीमत अदा करने का निर्देश दिया है।
मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के एक व्यक्ति ने वर्ष 2013 में जूते खरीदे थे। लेकिन जूते कुछ दिन बाद ही खराब हो गए। पीड़ित उपभोक्ता दुकानदार के पास शिकायत लेकर गया और खराब जूता बदलकर देने की मांग की, लेकिन दुकानदार ने जूता बदलने से इन्कार कर दिया। जिस पर उपभोक्ता ने जिला उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहां दो महीने में समाधान नहीं मिला तो वह उपभोक्ता राज्य आयोग गया। राज्य आयोग में 11 वर्ष तक सुनवाई चली,तब जाकर छह सौ रुपये के जूते के बदले उपभोक्ता को खर्च-ब्याज समेत बीते सितंबर माह में तीन हजार रुपये दिलवाए गए। हालांकि साल 2019 में आए नए उपभोक्ता कानून में शिकायतों का निपटारा विपक्षी पार्टी को नोटिस प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर कर लेने का प्रावधान है।
लंबित मामलों में आयी कमी
नये उपभोक्ता कानून के मुताबिक, आयोग में किसी मुकदमे के दौरान उत्पाद के विश्लेषण या जांच की स्थिति में अधिकतम पांच महीने से ज्यादा नहीं लगना चाहिए। वहीं खाद्य मंत्रालय के अनुसार हाल की तत्परता से उपभोक्ता आयोगों में लंबित मामलों में कमी आई है। इसे न्यूनतम स्तर पर लाने का प्रयास किया जा रहा है।
निर्माता को सेवा में कमी का पाया दोषी
नए उपभोक्ता कानून में घटिया उत्पादों से निपटने की जिम्मेवारी, मध्यस्थता और विज्ञापनों के जरिये छल से बचने की व्यवस्था है। तभी तो जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग – द्वितीय, लखनऊ की खंडपीठ ने एक शूज कंपनी को सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार का उत्तरदायी ठहराया। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा शूज़ ब्रांड को बार-बार अनुरोध और रिमाइंडर भेजने के बावजूद, उपभोक्ता द्वारा खरीदे गए दोषपूर्ण जूते की लागत को बदलने या वापस करने में विफल रहने को उपभोक्ता सेवा में कमी माना गया।
यह था मामला
शिकायतकर्ता योगेंद्र कुमार दुबे ने संबंधित कंपनी के शूज स्टोर से 2,999 रुपये में काले जूते खरीदे थे। कंपनी के जिम्मेदार अधिकारी ने उन्हें आश्वासन दिया कि एक साल की वारंटी है और यदि वारंटी अवधि के भीतर कोई दोष उत्पन्न होता है, तो वह या तो जूते को एक नई जोड़ी के साथ बदल देगा या पूरी राशि वापस कर देगा। लेकिन जूता खरीदने के कुछ ही समय बाद खराब हो गया। जूते में सिलाई के पास छेद हो गये। शिकायतकर्ता ने संबंधित कंपनी से शिकायत दर्ज कराई। कंपनी ने शिकायतकर्ता को उन जूतों की अनुपलब्धता के बारे में सूचित किया और स्टॉक में वापस आने के बाद शिकायतकर्ता की जोड़ी को बदलने का वादा किया। एक महीने तक इंतजार करने के बाद, शिकायतकर्ता ने फिर से शूज़ कंपनी से संपर्क किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। बाद में, शिकायतकर्ता ने ईमेल के माध्यम से शिकायत भेजी, जो अनुत्तरित रही।
कंपनी के विरुद्ध एकपक्षीय कार्रवाई
व्यथित होकर शिकायतकर्ता ने कंपनी के खिलाफ जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग – द्वितीय, लखनऊ के समक्ष उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई। लेकिन शूज निर्माता सुनवाई के समय जिला आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। इसलिए,उनके विरुद्ध एकपक्षीय कार्रवाई की गई। जिला उपभोक्ता आयोग ने विधिक निष्कर्ष दिया कि खुदरा चालान ने पुष्टि की कि जूते संबंधित शूज़ कंपनी से 2,999 रुपये और 130 रुपये जीएसटी के लिए खरीदे गए थे, कुल 3,129 रुपये अदा किए गए थे। इसके अलावा, शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत क्षतिग्रस्त जूतों के फोटोग्राफिक साक्ष्य भी साबित करते हैं कि वास्तव में क्षति हुई थी।
कीमत, मुआवजा व खर्च अदा करने के आदेश
जिला आयोग ने माना कि उक्त शूज़ कंपनी एक प्रतिष्ठित ब्रांड है, और शिकायतकर्ता ने अपनी सद्भावना और वारंटी पर भरोसा करते हुए जूते खरीदे। वारंटी वैध होने के बावजूद, संबंधित शूज़ ब्रांड ने दोषपूर्ण उत्पाद को बदलने या मरम्मत करने की कार्यवाही न कर सेवा में उपेक्षा की है। जिस कारण शिकायतकर्ता जूते के उपयोग से वंचित हो गया है। इसलिए, जिला आयोग ने सेवा में कमी के लिए शूज कंपनी को उत्तरदायी ठहराया। जिला उपभोक्ता आयोग ने उक्त कंपनी को मुकदमा खर्च के लिए 2,000 रुपये और 2,000 रुपये के मुआवजे के साथ जूते की कीमत 3,129 रुपये अदा करने का निर्देश दिया है। यानि उपभोक्ता जागरूक रहे तो उसे न्याय मिलता ही है।
-लेखक उपभोक्ता मामलों के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।
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